गुरुवार, 16 अगस्त 2012

छुहारे से रोग हारे

उपयोग : खजूर के पेड़ से रस निकालकर 'नीरा' बनाई जाती है, जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। लेकिन यह शराब नुकसान करती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है।

दमा : दमा के रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाम 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।

छुहारे की गुठली निकाल कर दूध में उबाल कर गाढ़ा कर लें। छुहारे गलने के उपरांत सूखे मेवे डाल कर ओटा लें। यह तैयार दूध बढ़ते बच्चों के लिए गुणकारी होता है।

4 छुहारे एक गिलास दूध में उबाल कर ठण्डा कर लें। प्रातः काल या रात को सोते समय, गुठली अलग कर दें और छुहारे को खूब चबा-चबाकर खाएँ और दूध पी जाएँ। लगातार 3-4 माह सेवन करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है, चेहरा भर जाता है। सुन्दरता बढ़ती है, बाल लम्बे व घने होते हैं और बलवीर्य की वृद्धि होती है।

बला (खिरैटी)

बला जिसे खिरैटी भी कहते हैं, यह जड़ी-बूटी वाजीकारक एवं पौष्टिक गुण के साथ ही अन्य गुण एवं प्रभाव भी रखती है अतः यौन दौर्बल्य, धातु क्षीणता, नपुंसकता तथा शारीरिक दुर्बलता दूर करने के अलावा अन्य व्याधियों को भी दूर करने की अच्छी क्षमता रखती है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- बला। हिन्दी- खिरैटी, वरियारा, वरियारा, खरैटी। मराठी- चिकणा। गुजराती- खरेटी, बलदाना। बंगला- बेडेला। तेलुगू- चिरिबेण्डा, मुत्तबु, अन्तिस। कन्नड़- किसंगी, हेटुतिगिडा। तमिल- पनियार तुट्टी। मलयालम- वेल्लुरुम। इंग्लिश- कण्ट्री मेलो। लैटिन- सिडा कार्डिफोलिया।

गुण : चारों प्रकार की बला शीतवीर्य, मधुर रसयुक्त, बलकारक, कान्तिवर्द्धक, स्निग्ध एवं ग्राही तथा वात रक्त पित्त, रक्त विकार और व्रण (घाव) को दूर करने वाली होती है।

परिचय : बला चार प्रकार की होती है, इसलिए इसे 'बलाचतुष्ट्य' कहते हैं। यूं इसकी और भी कई जातियां हैं पर बला, अतिबला, नागबला, महाबला- ये चार जातियां ही ज्यादा प्रसिद्ध और प्रचलित हैं।

मुख्यतः इसकी जड़ और बीज को उपयोग में लिया जाता है। यह झाड़ीनुमा 2 से 4 फीट ऊंचा क्षुप होता है, जिसका मूल और काण्ड (तना) सुदृढ़ होता है। पत्ते हृदय के आकार के 7-9 शिराओं से युक्त, 1 से 2 इंच लंबे और आधे से डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे पीले या सफेद तथा 7 से 10 स्त्रीकेसर युक्त होते हैं। बीज छोटे-छोटे, दानेदार, गहरे भूरे रंग के या काले होते हैं। यह देश के सभी प्रांतों में वर्षभर पाया जाता है।

उपयोग : अपने गुणों के कारण यह शारीरिक दुर्बलता, यौन शक्ति की कमी, प्रमेह, शुक्रमेह, रक्तपित्त, प्रदर, व्रण, मूत्रातिसार, सोजाक, उपदंश, हृदय दौर्बल्य, कृशता (दुबलापन), वात प्रकोप के कारण गृध्रसी, सिर दर्द, अर्दित, अर्धांग आदि वात विकारों को दूर करने के लिए उपयोगी सिद्ध होती है।

दुर्बलता : आधा चम्मच मात्रा में इसकी जड़ का महीन पिसा हुआ चूर्ण सुबह-शाम मीठे कुनकुने दूध के साथ लेने और भोजन में दूध-चावल की खीर शामिल कर खाने से शरीर का दुबलापन दूर होता है। शरीर सुडौल बनता है, सातों धातुएं पुष्ट व बलवान होती हैं तथा बल, वीर्य तथा ओज की खूब वृद्धि होती है।

खूनी बवासीर : बवासीर के रोगी को मल के साथ रक्त भी गिरे, इसे रक्तार्श यानी खूनी बवासीर कहते हैं। बवासीर रोग का मुख्य कारण खानपान की बदपरहेजी के कारण कब्ज बना रहना होता है। बला के पंचांग को मोटा-मोटा कूटकर डिब्बे में भरकर रख लें। प्रतिदिन सुबह एक गिलास पानी में 2 चम्मच (लगभग 10 ग्राम) यह जौकुट चूर्ण डालकर उबालें। जब चौथाई भाग पानी बचे तब उतारकर छान लें। ठण्डा करके एक कप दूध मिलाकर पी पाएं। इस उपाय से खून गिरना बंद हो जाता है।

कालसर्प दोष दूर करने के कुछ उपाय

यह है कालसर्प दोष शांति का अचूक काल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग पूजा का विशेष काल है। यह घड़ी ज्योतिष विज्ञान की दृष्टि से भी बहुत अहम मानी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचमी तिथि के देवता शेषनाग हैं। इसलिए जन्म कुण्डली में राहु और केतु की विशेष स्थिति से बनने वाले कालसर्प योग की शांति के लिए यह दिन बहुत शुभ फल देने वाला माना जाता है।
कालसर्प योग का बुरा प्रभाव जीवन में अनेक तरह से पीड़ा और हर कार्य में बाधा पहुंचाता है। इसलिए अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में कालसर्प दोष हो तो इसकी शांति के लिए नागपंचमी का दिन नहीं चूकना
चाहिए।
नागपंचमी के दिन कालसर्प दोष शांति के लिए नाग और शिव की विशेष पूजा और उपासना जीवन में आ रही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों और बाधाओं को दूर कर सुखी और शांत जीवन की राह आसान बनाती
है।
नागपंचमी पर्व पर कालसर्प योग, उसके अलग-अलग रुप, फल और दूर करने के उपायों पर विशेष लेख पढ़े इसी साईट पर आने वाले दिनों में -
कालसर्प दोष दूर करने के कुछ छोटे उपाय
1.श्रावण मास में 30 दिनों तक महादेव का अभिषेक करें।
2.सोमवार को शिव मंदिर में चांदी के नाग की पूजा करें, पितरों का स्मरण करें तथा श्रध्दापूर्वक बहते पानी या समुद्र में नागदेवता का विसर्जन करें।
3.प्रत्येक सोमवार को दही से भगवान शंकर पर - ओउम् हर हर महादेव' कहते हुए अभिषेक करें। ऐसा हर रोज श्रावण के महिने में करें।
4.सवा महीने जौ के दाने पक्षियों को खिलाएं।
5.सवा महीने देवदारु, सरसों तथा लोहवान - इन तीनों को जल में उबालकर उस जल से स्नान करें।
6.किसी शुभ मुहूर्त में ओउम् नम: शिवाय' की 11 माला जाप करने के उपरांत शिवलिंग का गाय केदूध से अभिषेक करें और शिव को प्रिय बेलपत्रा आदि सामग्रियां श्रध्दापूर्वक अर्पित करें। साथ ही तांबे का बना सर्प विधिवत पूजन के उपरांत शिवलिंग पर समर्पित करें।
7.हनुमान चालीसा का 108 बार पाठ करें और मंगलवार के दिन हनुमान जी की प्रतिमा पर लाल वस्त्रा सहित सिंदूर, चमेली का तेल व बताशा चढ़ाएं।
8.काल सर्प दोष निवारण यंत्रा घर में स्थापित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करें और भोजनालय में ही बैठकर भोजन करें अन्य कमरों में नहीं।
9.किसी शुभ मुहूर्त में नागपाश यंत्रा अभिमंत्रित कर धारण करें और शयन कक्ष में बेडशीट व पर्दे लाल रंग के प्रयोग में लायें।
10.शुभ मुहूर्त में मुख्य द्वार पर अष्टधातु या चांदी का स्वस्तिक लगाएं और उसके दोनों ओर धातु निर्मित नाग
11. अमावस्या के दिन पितरों को शान्त कराने हेतु दान आदि करें तथा कालसर्प योग शान्ति पाठ कराये।

12. शनिवार को पीपल पर शिवलिंग चढ़ाये व मंत्र जाप करें (ग्यारह शनिवार तक)
13. 108 राहु यंत्रों को जल में प्रवाहित करें।

कालसर्प दोष की शान्ति हेतु नक्षत्र, योग, दिन, दिशा एवं समय का विशेष ध्यान रखा जाता है, तभी उपाय भी फलीभूत होते है।
कालसर्प दोष दूर करने के कुछ छोटे उपाय

1. यदि पति-पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका में क्लेश हो रहा हो, आपसी प्रेम की कमी हो रही हो तो भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या बालकृष्ण की ‍मूर्ति जिसके सिर पर मोरपंखी मुकुट धारण हो घर में स्थापित करें एवं प्रति‍दिन उनका पूजन करें एवं ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय अथवा ऊँ नमो वासुदेवाय कृष्णाय नम: शिवाय का यथाशक्ति जाप करे। कालसर्प योग की शांति होगी।
2. यदि रोजगार में तकलीफ आ रही है अथवा रोजगार प्राप्त नहीं हो रहा है तो पलाश के फूल गोमूत्र में डूबाकर उसको बारीक करें। फिर छाँव में रखकर सुखाएँ। उसका चूर्ण बनाकर चंदन के पावडर में मिलाकर शिवलिंग पर त्रिपुण्ड बनाएँ। 21 दिन या 25 दिन में नौकरी अवश्य मिलेग‍ी।
3. यदि कुंडली में कालसर्प दोष है तो नित्य प्रति भगवान शिव के परिवार का पूजन करें। आपके हर काम होते चले जाएँगे।
4. यदि शत्रु से भय है तो चाँदी के अथवा ताँबे के सर्प बनाकर उनकी आँखों में सुरमा लगा दें, फिर किसी भी शिवलिंग पर चढ़ा दें, भय दूर होगा व शत्रु का नाश होगा।
5. शिवलिंग पर प्रतिदिन मीठा दूध (मिश्री मिली हो तो बहुत अच्‍छा) उसी में भाँग डाल दें, फिर चढ़ाएँ इससे गुस्सा शांत होता है, साथ ही सफलता तेजी से मिलने लगती है।
6. नारियल के गोले में सप्त धान्य(सात प्रकार का अनाज), गुड़, उड़द की दाल एवं सरसों भर लें व बहते पानी में बहा दें अथवा गंदे पानी में (नाले में) बहा दें। आपका चिड़चिड़ापन दूर होगा। यह प्रयोग राहूकाल में करें।
7. सबसे सरल उपाय- कालसर्प योग वाला युवा श्रावण मास में प्रतिदिन रूद्र-अभिषेक कराए एवं महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज करें। जीवन में सुख शांति अवश्य आएगी और रूके काम होने लगेंगे।

दुबलापन दूर करने के उपाय

छुहारा (खजूर)

हम भोजन में यूं तो कई पदार्थ खाते हैं, लेकिन कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं, जिन्हें मौसम विशेष के अलावा वर्षभर प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे ही पदार्थों की जानकारी इस कॉलम के माध्यम से हम देना चाहते हैं। इस बार खारक के संबंध में जानिए।

छुहारे को खारक भी कहते हैं। यह पिण्ड खजूर का सूखा हुआ रूप होता है, जैसे अंगूर का सूखा हुआ रूप किशमिश और मुनक्का होता है। छुहारे का प्रयोग मेवा के रूप में किया जाता है। इसके मुख्य भेद दो हैं- 1. खजूर और 2. पिण्ड खजूर।

गुण : यह शीतल, रस तथा पाक में मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही, वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ, बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खांसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह शीतवीर्य होता है, पर सूखने के बाद छुहारा गर्म प्रकृति का हो जाता है।

परिचय : यह 30 से 50 फुट ऊंचे वृक्ष का फल होता है। खजूर, पिण्ड खजूर और गोस्तन खजूर (छुहारा) ये तीन भेद भाव प्रकाश में बताए गए हैं। खजूर के पेड़ भारत में सर्वत्र पाए जाते हैं। सिन्ध और पंजाब में इसकी खेती विशेष रूप से की जाती है। पिण्ड खजूर उत्तरी अफ्रीका, मिस्र, सीरिया और अरब देशों में पैदा होता है। इसके वृक्ष से रस निकालकर नीरा बनाई जाती है।

रासायनिक संघटन : इसके फल में प्रोटीन 1.2, वसा 0.4, कार्बोहाइड्रेट 33.8, सूत्र 3.7, खनिज द्रव्य 1.7, कैल्शियम 0.022 तथा फास्फोरस 0.38 प्रतिशत होता है। इस वृक्ष के रस से बनाई गई नीरा में विटामिन बी और सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। कुछ समय तक रखने पर नीरा मद्य में परिणत हो जाती है। पके पिण्ड खजूर में अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्व होते हैं और शर्करा 85 प्रतिशत तक पाई जाती है।

उपयोग : खजूर के पेड़ से रस निकालकर 'नीरा' बनाई जाती है, जो तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग वात और पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है।
यह पौष्टिक और मूत्रल है, हृदय और स्नायविक संस्थान को बल देने वाला तथा शुक्र दौर्बल्य दूर करने वाला होने से इन व्याधियों को नष्ट करने के लिए उपयोगी है। कुछ घरेलू इलाज में उपयोगी प्रयोग इस प्रकार हैं-

दुर्बलता : 4 छुहारे एक गिलास दूध में उबाल कर ठण्डा कर लें। प्रातः काल या रात को सोते समय, गुठली अलग कर दें और छुहारें को खूब चबा-चबाकर खाएं और दूध पी जाएं। लगातार 3-4 माह सेवन करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है, चेहरा भर जाता है, सुन्दरता बढ़ती है, बाल लम्बे व घने होते हैं और बलवीर्य की वृद्धि होती है। यह प्रयोग नवयुवा, प्रौढ़ और वृद्ध आयु के स्त्री-पुरुष, सबके लिए उपयोगी और लाभकारी है।

घाव और गुहेरी : छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर, इसका लेप घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है। आंख की पलक पर गुहेरी हो तो उस पर यह लेप लगाने से ठीक होती है।

शीघ्रपतन : प्रातः खाली पेट दो छुहारे टोपी सहित खूब चबा-चबाकर दो सप्ताह तक खाएं। तीसरे सप्ताह से 3 छुहारे लेने लगें और चौथे सप्ताह से चार छुहारे खाने लगें। चार छुहारे से ज्यादा न लें। इस प्रयोग के साथ ही रात को सोते समय दो सप्ताह तक दो छुहारे, तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे और चौथे सप्ताह से बारहवें सप्ताह तक यानी तीन माह पूरे होने तक चार छुहारे एक गिलास दूध में उबाल कर, गुठली हटा कर, खूब चबा-चबा कर खाएं और ऊपर से दूध पी लें। य प्रयोग स्त्री-पुरुषों को अपूर्व शक्ति देने वाला, शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने वाला तथा पुरुषों में शीघ्रपतन रोग को नष्ट करने वाला है। परीक्षित है।

दमा : दमा के रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाब 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।