छुहारा (खजूर)
हम भोजन में यूं तो कई पदार्थ खाते हैं, लेकिन कुछ पदार्थ ऐसे होते हैं,
जिन्हें मौसम विशेष के अलावा वर्षभर प्रयोग किया जा सकता है। ऐसे ही
पदार्थों की जानकारी इस कॉलम के माध्यम से हम देना चाहते हैं। इस बार खारक
के संबंध में जानिए।
छुहारे को खारक भी कहते हैं। यह पिण्ड खजूर का
सूखा हुआ रूप होता है, जैसे अंगूर का सूखा हुआ रूप किशमिश और मुनक्का होता
है। छुहारे का प्रयोग मेवा के रूप में किया जाता है। इसके मुख्य भेद दो
हैं- 1. खजूर और 2. पिण्ड खजूर।
गुण : यह शीतल, रस तथा पाक में
मधुर, स्निग्ध, रुचिकारक, हृदय को प्रिय, भारी तृप्तिदायक, ग्राही,
वीर्यवर्द्धक, बलदायक और क्षत, क्षय, रक्तपित्त, कोठे की वायु, उलटी, कफ,
बुखार, अतिसार, भूख, प्यास, खांसी, श्वास, दम, मूर्च्छा, वात और पित्त और
मद्य सेवन से हुए रोगों को नष्ट करने वाला होता है। यह शीतवीर्य होता है,
पर सूखने के बाद छुहारा गर्म प्रकृति का हो जाता है।
परिचय : यह 30
से 50 फुट ऊंचे वृक्ष का फल होता है। खजूर, पिण्ड खजूर और गोस्तन खजूर
(छुहारा) ये तीन भेद भाव प्रकाश में बताए गए हैं। खजूर के पेड़ भारत में
सर्वत्र पाए जाते हैं। सिन्ध और पंजाब में इसकी खेती विशेष रूप से की जाती
है। पिण्ड खजूर उत्तरी अफ्रीका, मिस्र, सीरिया और अरब देशों में पैदा होता
है। इसके वृक्ष से रस निकालकर नीरा बनाई जाती है।
रासायनिक संघटन :
इसके फल में प्रोटीन 1.2, वसा 0.4, कार्बोहाइड्रेट 33.8, सूत्र 3.7, खनिज
द्रव्य 1.7, कैल्शियम 0.022 तथा फास्फोरस 0.38 प्रतिशत होता है। इस वृक्ष
के रस से बनाई गई नीरा में विटामिन बी और सी पर्याप्त मात्रा में पाया जाता
है। कुछ समय तक रखने पर नीरा मद्य में परिणत हो जाती है। पके पिण्ड खजूर
में अपेक्षाकृत अधिक पोषक तत्व होते हैं और शर्करा 85 प्रतिशत तक पाई जाती
है।
उपयोग : खजूर के पेड़ से रस निकालकर 'नीरा' बनाई जाती है, जो
तुरन्त पी ली जाए तो बहुत पौष्टिक और बलवर्द्धक होती है और कुछ समय तक रखी
जाए तो शराब बन जाती है। इसके रस से गुड़ भी बनाया जाता है। इसका उपयोग वात
और पित्त का शमन करने के लिए किया जाता है।
यह पौष्टिक और मूत्रल है,
हृदय और स्नायविक संस्थान को बल देने वाला तथा शुक्र दौर्बल्य दूर करने
वाला होने से इन व्याधियों को नष्ट करने के लिए उपयोगी है। कुछ घरेलू इलाज
में उपयोगी प्रयोग इस प्रकार हैं-
दुर्बलता : 4 छुहारे एक गिलास दूध
में उबाल कर ठण्डा कर लें। प्रातः काल या रात को सोते समय, गुठली अलग कर
दें और छुहारें को खूब चबा-चबाकर खाएं और दूध पी जाएं। लगातार 3-4 माह सेवन
करने से शरीर का दुबलापन दूर होता है, चेहरा भर जाता है, सुन्दरता बढ़ती
है, बाल लम्बे व घने होते हैं और बलवीर्य की वृद्धि होती है। यह प्रयोग
नवयुवा, प्रौढ़ और वृद्ध आयु के स्त्री-पुरुष, सबके लिए उपयोगी और लाभकारी
है।
घाव और गुहेरी : छुहारे की गुठली को पानी के साथ पत्थर पर
घिसकर, इसका लेप घाव पर लगाने से घाव ठीक होता है। आंख की पलक पर गुहेरी हो
तो उस पर यह लेप लगाने से ठीक होती है।
शीघ्रपतन : प्रातः खाली पेट
दो छुहारे टोपी सहित खूब चबा-चबाकर दो सप्ताह तक खाएं। तीसरे सप्ताह से 3
छुहारे लेने लगें और चौथे सप्ताह से चार छुहारे खाने लगें। चार छुहारे से
ज्यादा न लें। इस प्रयोग के साथ ही रात को सोते समय दो सप्ताह तक दो
छुहारे, तीसरे सप्ताह में तीन छुहारे और चौथे सप्ताह से बारहवें सप्ताह तक
यानी तीन माह पूरे होने तक चार छुहारे एक गिलास दूध में उबाल कर, गुठली हटा
कर, खूब चबा-चबा कर खाएं और ऊपर से दूध पी लें। य प्रयोग स्त्री-पुरुषों
को अपूर्व शक्ति देने वाला, शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने वाला तथा पुरुषों
में शीघ्रपतन रोग को नष्ट करने वाला है। परीक्षित है।
दमा : दमा के
रोगी को प्रतिदिन सुबह-शाब 2-2 छुहारे खूब चबाकर खाना चाहिए। इससे फेफड़ों
को शक्ति मिलती है और कफ व सर्दी का प्रकोप कम होता है।