बुधवार, 7 दिसंबर 2011

सुख सम्रद्धि

1‌‌‍॰ यदि परिश्रम के पश्चात् भी कारोबार ठप्प हो, या धन आकर खर्च हो जाता हो तो यह टोटका काम में लें। किसी गुरू पुष्य योग और शुभ चन्द्रमा के दिन प्रात: हरे रंग के कपड़े की छोटी थैली तैयार करें। श्री गणेश के चित्र अथवा मूर्ति के आगे “संकटनाशन गणेश स्तोत्र´´ के 11 पाठ करें। तत्पश्चात् इस थैली में 7 मूंग, 10 ग्राम साबुत धनिया, एक पंचमुखी रूद्राक्ष, एक चांदी का रूपया या 2 सुपारी, 2 हल्दी की गांठ रख कर दाहिने मुख के गणेश जी को शुद्ध घी के मोदक का भोग लगाएं। फिर यह थैली तिजोरी या कैश बॉक्स में रख दें। गरीबों और ब्राह्मणों को दान करते रहे। आर्थिक स्थिति में शीघ्र सुधार आएगा। 1 साल बाद नयी थैली बना कर बदलते रहें।

2॰ किसी के प्रत्येक शुभ कार्य में बाधा आती हो या विलम्ब होता हो तो रविवार को भैरों जी के मंदिर में सिंदूर का चोला चढ़ा कर “बटुक भैरव स्तोत्र´´ का एक पाठ कर के गौ, कौओं और काले कुत्तों को उनकी रूचि का पदार्थ खिलाना चाहिए। ऐसा वर्ष में 4-5 बार करने से कार्य बाधाएं नष्ट हो जाएंगी।

3॰ रूके हुए कार्यों की सिद्धि के लिए यह प्रयोग बहुत ही लाभदायक है। गणेश चतुर्थी को गणेश जी का ऐसा चित्र घर या दुकान पर लगाएं, जिसमें उनकी सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई हो। इसकी आराधना करें। इसके आगे लौंग तथा सुपारी रखें। जब भी कहीं काम पर जाना हो, तो एक लौंग तथा सुपारी को साथ ले कर जाएं, तो काम सिद्ध होगा। लौंग को चूसें तथा सुपारी को वापस ला कर गणेश जी के आगे रख दें तथा जाते हुए कहें `जय गणेश काटो कलेश´।

4॰ सरकारी या निजी रोजगार क्षेत्र में परिश्रम के उपरांत भी सफलता नहीं मिल रही हो, तो नियमपूर्वक किये गये विष्णु यज्ञ की विभूति ले कर, अपने पितरों की `कुशा´ की मूर्ति बना कर, गंगाजल से स्नान करायें तथा यज्ञ विभूति लगा कर, कुछ भोग लगा दें और उनसे कार्य की सफलता हेतु कृपा करने की प्रार्थना करें। किसी धार्मिक ग्रंथ का एक अध्याय पढ़ कर, उस कुशा की मूर्ति को पवित्र नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें। सफलता अवश्य मिलेगी। सफलता के पश्चात् किसी शुभ कार्य में दानादि दें।

5॰ व्यापार, विवाह या किसी भी कार्य के करने में बार-बार असफलता मिल रही हो तो यह टोटका करें- सरसों के तैल में सिके गेहूँ के आटे व पुराने गुड़ से तैयार सात पूये, सात मदार (आक) के पुष्प, सिंदूर, आटे से तैयार सरसों के तैल का रूई की बत्ती से जलता दीपक, पत्तल या अरण्डी के पत्ते पर रखकर शनिवार की रात्रि में किसी चौराहे पर रखें और कहें -“हे मेरे दुर्भाग्य तुझे यहीं छोड़े जा रहा हूँ कृपा करके मेरा पीछा ना करना।´´ सामान रखकर पीछे मुड़कर न देखें।

6॰ सिन्दूर लगे हनुमान जी की मूर्ति का सिन्दूर लेकर सीता जी के चरणों में लगाएँ। फिर माता सीता से एक श्वास में अपनी कामना निवेदित कर भक्ति पूर्वक प्रणाम कर वापस आ जाएँ। इस प्रकार कुछ दिन करने पर सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है।

7॰ किसी शनिवार को, यदि उस दिन `सर्वार्थ सिद्धि योग’ हो तो अति उत्तम सांयकाल अपनी लम्बाई के बराबर लाल रेशमी सूत नाप लें। फिर एक पत्ता बरगद का तोड़ें। उसे स्वच्छ जल से धोकर पोंछ लें। तब पत्ते पर अपनी कामना रुपी नापा हुआ लाल रेशमी सूत लपेट दें और पत्ते को बहते हुए जल में प्रवाहित कर दें। इस प्रयोग से सभी प्रकार की बाधाएँ दूर होती हैं और कामनाओं की पूर्ति होती है।

८॰ रविवार पुष्य नक्षत्र में एक कौआ अथवा काला कुत्ता पकड़े। उसके दाएँ पैर का नाखून काटें। इस नाखून को ताबीज में भरकर, धूपदीपादि से पूजन कर धारण करें। इससे आर्थिक बाधा दूर होती है। कौए या काले कुत्ते दोनों में से किसी एक का नाखून लें। दोनों का एक साथ प्रयोग न करें।

9॰ प्रत्येक प्रकार के संकट निवारण के लिये भगवान गणेश की मूर्ति पर कम से कम 21 दिन तक थोड़ी-थोड़ी जावित्री चढ़ावे और रात को सोते समय थोड़ी जावित्री खाकर सोवे। यह प्रयोग 21, 42, 64 या 84 दिनों तक करें।

10॰ अक्सर सुनने में आता है कि घर में कमाई तो बहुत है, किन्तु पैसा नहीं टिकता, तो यह प्रयोग करें। जब आटा पिसवाने जाते हैं तो उससे पहले थोड़े से गेंहू में 11 पत्ते तुलसी तथा 2 दाने केसर के डाल कर मिला लें तथा अब इसको बाकी गेंहू में मिला कर पिसवा लें। यह क्रिया सोमवार और शनिवार को करें। फिर घर में धन की कमी नहीं रहेगी।


11॰ आटा पिसते समय उसमें 100 ग्राम काले चने भी पिसने के लियें डाल दिया करें तथा केवल शनिवार को ही आटा पिसवाने का नियम बना लें।

12॰ शनिवार को खाने में किसी भी रूप में काला चना अवश्य ले लिया करें।

13॰ अगर पर्याप्त धर्नाजन के पश्चात् भी धन संचय नहीं हो रहा हो, तो काले कुत्ते को प्रत्येक शनिवार को कड़वे तेल (सरसों के तेल) से चुपड़ी रोटी खिलाएँ।

14॰ संध्या समय सोना, पढ़ना और भोजन करना निषिद्ध है। सोने से पूर्व पैरों को ठंडे पानी से धोना चाहिए, किन्तु गीले पैर नहीं सोना चाहिए। इससे धन का क्षय होता है।

15॰ रात्रि में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है। अत: समृद्धि चाहने वालों को तथा जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात्रि भोज में नहीं करना चाहिये।

16॰ भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर के करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए।

17॰ सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं। जूठे हाथों से या पैरों से कभी गौ, ब्राह्मण तथा अग्नि का स्पर्श न करें।

18॰ घर में देवी-देवताओं पर चढ़ाये गये फूल या हार के सूख जाने पर भी उन्हें घर में रखना अलाभकारी होता है।

19॰ अपने घर में पवित्र नदियों का जल संग्रह कर के रखना चाहिए। इसे घर के ईशान कोण में रखने से अधिक लाभ होता है।

20॰ रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो, तब गूलर के वृक्ष की जड़ प्राप्त कर के घर लाएं। इसे धूप, दीप करके धन स्थान पर रख दें। यदि इसे धारण करना चाहें तो स्वर्ण ताबीज में भर कर धारण कर लें। जब तक यह ताबीज आपके पास रहेगी, तब तक कोई कमी नहीं आयेगी। घर में संतान सुख उत्तम रहेगा। यश की प्राप्ति होती रहेगी। धन संपदा भरपूर होंगे। सुख शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होगी।

21॰ `देव सखा´ आदि 18 पुत्रवर्ग भगवती लक्ष्मी के कहे गये हैं। इनके नाम के आदि में और अन्त में `नम:´ लगाकर जप करने से अभीष्ट धन की प्राप्ति होती है। यथा - ॐ देवसखाय नम:, चिक्लीताय, आनन्दाय, कर्दमाय, श्रीप्रदाय, जातवेदाय, अनुरागाय, सम्वादाय, विजयाय, वल्लभाय, मदाय, हर्षाय, बलाय, तेजसे, दमकाय, सलिलाय, गुग्गुलाय, ॐ कुरूण्टकाय नम:।

22॰ किसी कार्य की सिद्धि के लिए जाते समय घर से निकलने से पूर्व ही अपने हाथ में रोटी ले लें। मार्ग में जहां भी कौए दिखलाई दें, वहां उस रोटी के टुकड़े कर के डाल दें और आगे बढ़ जाएं। इससे सफलता प्राप्त होती है।

23॰ किसी भी आवश्यक कार्य के लिए घर से निकलते समय घर की देहली के बाहर, पूर्व दिशा की ओर, एक मुट्ठी घुघंची को रख कर अपना कार्य बोलते हुए, उस पर बलपूर्वक पैर रख कर, कार्य हेतु निकल जाएं, तो अवश्य ही कार्य में सफलता मिलती है।

24॰ अगर किसी काम से जाना हो, तो एक नींबू लें। उसपर 4 लौंग गाड़ दें तथा इस मंत्र का जाप करें : `ॐ श्री हनुमते नम:´। 21 बार जाप करने के बाद उसको साथ ले कर जाएं। काम में किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी।

25॰ चुटकी भर हींग अपने ऊपर से वार कर उत्तर दिशा में फेंक दें। प्रात:काल तीन हरी इलायची को दाएँ हाथ में रखकर “श्रीं श्रीं´´ बोलें, उसे खा लें, फिर बाहर जाए¡।

26॰ जिन व्यक्तियों को लाख प्रयत्न करने पर भी स्वयं का मकान न बन पा रहा हो, वे इस टोटके को अपनाएं।
प्रत्येक शुक्रवार को नियम से किसी भूखे को भोजन कराएं और रविवार के दिन गाय को गुड़ खिलाएं। ऐसा नियमित करने से अपनी अचल सम्पति बनेगी या पैतृक सम्पति प्राप्त होगी। अगर सम्भव हो तो प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात् निम्न मंत्र का जाप करें। “ॐ पद्मावती पद्म कुशी वज्रवज्रांपुशी प्रतिब भवंति भवंति।।´´

27॰ यह प्रयोग नवरात्रि के दिनों में अष्टमी तिथि को किया जाता है। इस दिन प्रात:काल उठ कर पूजा स्थल में गंगाजल, कुआं जल, बोरिंग जल में से जो उपलब्ध हो, उसके छींटे लगाएं, फिर एक पाटे के ऊपर दुर्गा जी के चित्र के सामने, पूर्व में मुंह करते हुए उस पर 5 ग्राम सिक्के रखें। साबुत सिक्कों पर रोली, लाल चन्दन एवं एक गुलाब का पुष्प चढ़ाएं। माता से प्रार्थना करें। इन सबको पोटली बांध कर अपने गल्ले, संदूक या अलमारी में रख दें। यह टोटका हर 6 माह बाद पुन: दोहराएं।

28॰ घर में समृद्धि लाने हेतु घर के उत्तरपश्चिम के कोण (वायव्य कोण) में सुन्दर से मिट्टी के बर्तन में कुछ सोने-चांदी के सिक्के, लाल कपड़े में बांध कर रखें। फिर बर्तन को गेहूं या चावल से भर दें। ऐसा करने से घर में धन का अभाव नहीं रहेगा।

29॰ व्यक्ति को ऋण मुक्त कराने में यह टोटका अवश्य सहायता करेगा : मंगलवार को शिव मन्दिर में जा कर शिवलिंग पर मसूर की दाल “ॐ ऋण मुक्तेश्वर महादेवाय नम:´´ मंत्र बोलते हुए चढ़ाएं।

30॰ जिन व्यक्तियों को निरन्तर कर्ज घेरे रहते हैं, उन्हें प्रतिदिन “ऋणमोचक मंगल स्तोत्र´´ का पाठ करना चाहिये। यह पाठ शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से शुरू करना चाहिये। यदि प्रतिदिन किसी कारण न कर सकें, तो प्रत्येक मंगलवार को अवश्य करना चाहिये।

31॰ सोमवार के दिन एक रूमाल, 5 गुलाब के फूल, 1 चांदी का पत्ता, थोड़े से चावल तथा थोड़ा सा गुड़ लें। फिर किसी विष्णुण्लक्ष्मी जी के मिन्दर में जा कर मूर्त्ति के सामने रूमाल रख कर शेष वस्तुओं को हाथ में लेकर 21 बार गायत्री मंत्र का पाठ करते हुए बारी-बारी इन वस्तुओं को उसमें डालते रहें। फिर इनको इकट्ठा कर के कहें की `मेरी परेशानियां दूर हो जाएं तथा मेरा कर्जा उतर जाए´। यह क्रिया आगामी 7 सोमवार और करें। कर्जा जल्दी उतर जाएगा तथा परेशानियां भी दूर हो जाएंगी।

32॰ सर्वप्रथम 5 लाल गुलाब के पूर्ण खिले हुए फूल लें। इसके पश्चात् डेढ़ मीटर सफेद कपड़ा ले कर अपने सामने बिछा लें। इन पांचों गुलाब के फुलों को उसमें, गायत्री मंत्र 21 बार पढ़ते हुए बांध दें। अब स्वयं जा कर इन्हें जल में प्रवाहित कर दें। भगवान ने चाहा तो जल्दी ही कर्ज से मुक्ति प्राप्त होगी।

34॰ कर्ज-मुक्ति के लिये “गजेन्द्र-मोक्ष´´ स्तोत्र का प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व पाठ अमोघ उपाय है।

35॰ घर में स्थायी सुख-समृद्धि हेतु पीपल के वृक्ष की छाया में खड़े रह कर लोहे के बर्तन में जल, चीनी, घी तथा दूध मिला कर पीपल के वृक्ष की जड़ में डालने से घर में लम्बे समय तक सुख-समृद्धि रहती है और लक्ष्मी का वास होता है।

33॰ अगर निरन्तर कर्ज में फँसते जा रहे हों, तो श्मशान के कुएं का जल लाकर किसी पीपल के वृक्ष पर चढ़ाना चाहिए। यह 6 शनिवार किया जाए, तो आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त होते हैं।

36॰ घर में बार-बार धन हानि हो रही हो तों वीरवार को घर के मुख्य द्वार पर गुलाल छिड़क कर गुलाल पर शुद्ध घी का दोमुखी (दो मुख वाला) दीपक जलाना चाहिए। दीपक जलाते समय मन ही मन यह कामना करनी चाहिए की `भविष्य में घर में धन हानि का सामना न करना पड़े´। जब दीपक शांत हो जाए तो उसे बहते हुए पानी में बहा देना चाहिए।

37॰ काले तिल परिवार के सभी सदस्यों के सिर पर सात बार उसार कर घर के उत्तर दिशा में फेंक दें, धनहानि बंद होगी।

38॰ घर की आर्थिक स्थिति ठीक करने के लिए घर में सोने का चौरस सिक्का रखें। कुत्ते को दूध दें। अपने कमरे में मोर का पंख रखें।

39॰ अगर आप सुख-समृद्धि चाहते हैं, तो आपको पके हुए मिट्टी के घड़े को लाल रंग से रंगकर, उसके मुख पर मोली बांधकर तथा उसमें जटायुक्त नारियल रखकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।

40॰ अखंडित भोज पत्र पर 15 का यंत्र लाल चन्दन की स्याही से मोर के पंख की कलम से बनाएं और उसे सदा अपने पास रखें।

41॰ व्यक्ति जब उन्नति की ओर अग्रसर होता है, तो उसकी उन्नति से ईर्ष्याग्रस्त होकर कुछ उसके अपने ही उसके शत्रु बन जाते हैं और उसे सहयोग देने के स्थान पर वे ही उसकी उन्नति के मार्ग को अवरूद्ध करने लग जाते हैं, ऐसे शत्रुओं से निपटना अत्यधिक कठिन होता है। ऐसी ही परिस्थितियों से निपटने के लिए प्रात:काल सात बार हनुमान बाण का पाठ करें तथा हनुमान जी को लड्डू का भोग लगाए¡ और पाँच लौंग पूजा स्थान में देशी कर्पूर के साथ जलाएँ। फिर भस्म से तिलक करके बाहर जाए¡। यह प्रयोग आपके जीवन में समस्त शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होगा, वहीं इस यंत्र के माध्यम से आप अपनी मनोकामनाओं की भी पूर्ति करने में सक्षम होंगे।

42॰ कच्ची धानी के तेल के दीपक में लौंग डालकर हनुमान जी की आरती करें। अनिष्ट दूर होगा और धन भी प्राप्त होगा।

43॰ अगर अचानक धन लाभ की स्थितियाँ बन रही हो, किन्तु लाभ नहीं मिल रहा हो, तो गोपी चन्दन की नौ डलियाँ लेकर केले के वृक्ष पर टाँग देनी चाहिए। स्मरण रहे यह चन्दन पीले धागे से ही बाँधना है।

44॰ अकस्मात् धन लाभ के लिये शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार को सफेद कपड़े के झंडे को पीपल के वृक्ष पर लगाना चाहिए। यदि व्यवसाय में आकिस्मक व्यवधान एवं पतन की सम्भावना प्रबल हो रही हो, तो यह प्रयोग बहुत लाभदायक है।

45॰ अगर आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे हों, तो मन्दिर में केले के दो पौधे (नर-मादा) लगा दें।

46॰ अगर आप अमावस्या के दिन पीला त्रिकोण आकृति की पताका विष्णु मन्दिर में ऊँचाई वाले स्थान पर इस प्रकार लगाएँ कि वह लहराता हुआ रहे, तो आपका भाग्य शीघ्र ही चमक उठेगा। झंडा लगातार वहाँ लगा रहना चाहिए। यह अनिवार्य शर्त है।

47॰ देवी लक्ष्मी के चित्र के समक्ष नौ बत्तियों का घी का दीपक जलाए¡। उसी दिन धन लाभ होगा।

48॰ एक नारियल पर कामिया सिन्दूर, मोली, अक्षत अर्पित कर पूजन करें। फिर हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएँ। धन लाभ होगा।

49॰ पीपल के वृक्ष की जड़ में तेल का दीपक जला दें। फिर वापस घर आ जाएँ एवं पीछे मुड़कर न देखें। धन लाभ होगा।

50॰ प्रात:काल पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएँ तथा अपनी सफलता की मनोकामना करें और घर से बाहर शुद्ध केसर से स्वस्तिक बनाकर उस पर पीले पुष्प और अक्षत चढ़ाए¡। घर से बाहर निकलते समय दाहिना पाँव पहले बाहर निकालें।

51॰ एक हंडिया में सवा किलो हरी साबुत मूंग की दाल, दूसरी में सवा किलो डलिया वाला नमक भर दें। यह दोनों हंडिया घर में कहीं रख दें। यह क्रिया बुधवार को करें। घर में धन आना शुरू हो जाएगा।

52॰ प्रत्येक मंगलवार को 11 पीपल के पत्ते लें। उनको गंगाजल से अच्छी तरह धोकर लाल चन्दन से हर पत्ते पर 7 बार राम लिखें। इसके बाद हनुमान जी के मन्दिर में चढ़ा आएं तथा वहां प्रसाद बाटें और इस मंत्र का जाप जितना कर सकते हो करें। `जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करो गुरू देव की नांई´ 7 मंगलवार लगातार जप करें। प्रयोग गोपनीय रखें। अवश्य लाभ होगा।

53॰ अगर नौकरी में तरक्की चाहते हैं, तो 7 तरह का अनाज चिड़ियों को डालें।

54॰ ऋग्वेद (4/32/20-21) का प्रसिद्ध मन्त्र इस प्रकार है -
`ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि। ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।´
(हे लक्ष्मीपते ! आप दानी हैं, साधारण दानदाता ही नहीं बहुत बड़े दानी हैं। आप्तजनों से सुना है कि संसारभर से निराश होकर जो याचक आपसे प्रार्थना करता है उसकी पुकार सुनकर उसे आप आर्थिक कष्टों से मुक्त कर देते हैं - उसकी झोली भर देते हैं। हे भगवान मुझे इस अर्थ संकट से मुक्त कर दो।)

51॰ निम्न मन्त्र को शुभमुहूर्त्त में प्रारम्भ करें। प्रतिदिन नियमपूर्वक 5 माला श्रद्धा से भगवान् श्रीकृष्ण का ध्यान करके, जप करता रहे -
“ॐ क्लीं नन्दादि गोकुलत्राता दाता दारिद्र्यभंजन।
सर्वमंगलदाता च सर्वकाम प्रदायक:। श्रीकृष्णाय नम:।।´´

52॰ भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष भरणी नक्षत्र के दिन चार घड़ों में पानी भरकर किसी एकान्त कमरे में रख दें। अगले दिन जिस घड़े का पानी कुछ कम हो उसे अन्न से भरकर प्रतिदिन विधिवत पूजन करते रहें। शेष घड़ों के पानी को घर, आँगन, खेत आदि में छिड़क दें। अन्नपूर्णा देवी सदैव प्रसन्न रहेगीं।

53॰ किसी शुभ कार्य के जाने से पहले -
रविवार को पान का पत्ता साथ रखकर जायें।
सोमवार को दर्पण में अपना चेहरा देखकर जायें।
मंगलवार को मिष्ठान खाकर जायें।
बुधवार को हरे धनिये के पत्ते खाकर जायें।
गुरूवार को सरसों के कुछ दाने मुख में डालकर जायें।
शुक्रवार को दही खाकर जायें।
शनिवार को अदरक और घी खाकर जाना चाहिये।

54॰ किसी भी शनिवार की शाम को माह की दाल के दाने लें। उसपर थोड़ी सी दही और सिन्दूर लगाकर पीपल के वृक्ष के नीचे रख दें और बिना मुड़कर देखे वापिस आ जायें। सात शनिवार लगातार करने से आर्थिक समृद्धि तथा खुशहाली बनी रहेगी।

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सोमवार, 15 अगस्त 2011

मालिश की कार्य प्रणाली

परिचय-

प्राचीनकाल से ही मनुष्य मालिश को अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए इस्तेमाल करता आ रहा है। भारत में ही नहीं, विश्व के अन्य देशों में भी मालिश का उपयोग बहुत पहले से होता आ रहा है। कई हजार साल पहले चीन मे मालिश को बहुत महत्त्व दिया जाता था तथा इसे रोगों को दूर करने की अचूक पद्धति माना जाता था। चीन के लोगों का मानना था कि शरीर को स्वस्थ और सुन्दर रखने में मालिश बहुत सहायक सिद्ध होती है। जो लोग मालिश करते थे, उन्हें समाज में बड़ा आदर-सम्मान मिलता था। आज जो आदर व सम्मान डॉक्टरों को प्राप्त है, वही आदर-सम्मान उस समय मालिश-विशेषज्ञों को प्राप्त था।

जापान ने चीन से यह विद्या सीखी तथा उसे अपने देश के कोने-कोने तक पहुंचाया। इन देशों में आज भी मालिश का विशेष स्थान है। जापान में मालिश करने का ढंग सबसे अलग है। वहां चिकोटी भरना, मुक्के मारना और कसकर हाथ से रगड़ना आदि अनेकों प्रकार से मालिश की जाती है। आराम से या हल्के से मालिश करना न उन्हें आता है और न ही उन्हें इस प्रकार से मालिश करने से कोई सुख मिलता है।

भारत, चीन और जापान के अलावा यूनान, रोम, तुर्की, मिस्त्र और फारस जैसे देश भी मालिश की महत्ता को जानते थे तथा उसका उपयोग करते थे। ईसा से 500 साल पहले जिम्नास्टिक का आविष्कार करने वाले `हीरोडिक्स´ अपने रोगियों को मालिश कराने का सुझाव देते थे। ईसा से 460 साल पहले यूनान के पास स्थित कासद्वीप में जन्मे तथा कुछ आधुनिक दवाइयों के आविष्कारक हिप्पोकेटीज ने भी अपने ग्रंथों में मालिश के गुणों को बढ़ चढ़कर बताया है। उन्होंने मालिश द्वारा कई प्रकार के रोगों को दूर करने के उपचार भी बताए है। यूनानियों के प्राचीन साहित्य, उनके बुतों और चित्रों को देखकर आसानी ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वे मालिश के किस कदर शौकीन रहें होगे। मालिश और व्यायाम ही उनके अच्छे और स्वस्थ शरीर का राज था। यह भी कहा जाता है कि उन्हें मालिश तथा व्यायाम का बहुत शौक था। बाद में स्त्रियों से मालिश कराने की प्रथा चल पड़ी। यूनान के होमर नामक एक प्रसिद्व कवि ने अपने `ओडिसी´ नामक महाकाव्य में मालिश की लोकिप्रयता का वर्णन किया है तथा लिखा है कि उस समय जब योद्धा युद्ध के मैदान से लौटकर आते थे, तो उनकी पत्नियां तथा दासियां उनके शरीर की मालिश किया करती थीं। शरीर की थकावट और कसावट को दूर करने के लिए हल्की थपकी के रूप में उनकी मालिश की जाती थीं।

इतिहास में देखने से पता चलता है कि इन देशों में जब योद्धा युद्ध के बाद वापस घर लौटते थे तो स्त्रियों से अपने शरीर की मालिश कराते थे। उस समय इन देशों में दास-प्रथा का भी प्रचलन था। राजा-महाराजा अपने शरीर को सुन्दर और बलिष्ठ बनाने के लिए अपनी खूब मालिश कराया करते थे। जिससे उनका शरीर सुन्दर और सुडौल यानी आकर्षक हो जाता था। सुन्दर और स्वस्थ शरीर को गर्व का प्रतीक माना जाता था।

एक यूनानी चिकित्सक ने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम के साथ मालिश करने की आवश्यकता के बारे में काफी विस्तार से बताया था।

ईसा से काफी साल पहले इस मशहूर राजा न्यूरेल्जिया (नाड़ी-संस्थान का एक रोग) से पीड़ित था। वह इस रोग से निजात पाने के लिए प्रतिदिन अपने शरीर पर एक खास किस्म की मालिश कराया करता था।

एक रोमन डॉक्टर ने बताया था कि सूरज के प्रकाश में खड़ें होकर मालिश कराने से पुराने दर्द और बीमारियों आदि से छुटकारा पाया जा सकता है। साथ ही उसने यह भी बताया था कि अधंरग (शरीर के आधे भाग में लकवा आना) आदि रोगों से ग्रस्त टांगों, बाजुओं आदि को शक्ति देने तथा उनमे जान पैदा करने के लिए मालिश करना बहुत लाभदायक होता है। उसका मानना था कि इससे रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं।

तुर्क लोग स्नान करने से पहले अपने शरीर की मालिश किया करते थे, परन्तु यह मालिश वैज्ञानिक ढंग की न होकर साधारण होती थी। प्राचीनकाल में अफ्रीकी लोगों में विवाह से 1 महीने पहले से वर-वधू की प्रतिदिन मालिश करने की प्रथा थी। उनका मानना था कि इससे यौवन फूट पड़ता है, जो सच भी है। हमारे देश में भी ऐसी ही एक प्रथा पाई जाती है, जिसे हल्दी की रस्म कहते है। काफी हजार साल पहले मेडागास्कर नामक अफ्रीकी जंगली जाति के लोग रोगियों के शरीर में खून के दौरे (रक्त-संचार) के लिए मालिश का उपयोग किया करते थे।

पुराने समय में मिस्रवासियों को मालिश का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था। मिस्रवासियों ने ही रोमनों तथा यूनानियों को मालिश की कला सिखाई थी। मिस्र की एक बहुत प्रसिद्ध रानी अपने बालों में जैतून के तेल की मालिश कराया करती थी जिस कारण उसके बाल अपने समय के बहुत ही आकर्षक तथा सौन्दर्य-सम्पन्न बाल थे। एक बहुत ही महान विद्वान ने लिखा है कि आधुनिक शब्द `मसाज´ अरबी शब्द `मास´ से बना है, जिसका अर्थ मांसपेशियों को हाथ से दबाने तथा जोड़ों पर मालिश करने की एक कला है। यह अंगों को लचीला और कर्मशील बनाने तथा आलस्य को समाप्त करके शरीर में फुर्ती का संचार करता है।

फ्रांसीसियों ने मालिश करने की कला अरबवासियों से सीखी थी, जिसे उन्होंने अपने देश और अन्य यूरोपीय देशों तक पहुंचाया।

इतिहास से यह भी पता चलता है कि हीरोनिमस फेबरीक्स ए.बी. एक्यूपेण्डट (1537-1619) ने यूरोप में मालिश के चिकित्सात्मक पहलू के महत्त्व को दोबारा जीवित किया था। पेरासेल्सस नामक एक लेखक ने अपनी पुस्तक द मेडिसिन अगियपशन -1591 में मालिश करने की अनेक विधियों को विभिन्न प्रयोगों के द्वारा समझाने की कोशिश की है।

उसके यह अनुभव मिस्र में प्रचलित मालिश की पद्धति पर आधारित थे। इसके अलावा अनेक फ्रांसीसी लेखकों ने भी मालिश को अपने साहित्य में स्थान दिया है। सन् 1818 में प्रकाशित फ्रांस के पहले विश्व-कोष में पियोरे ने मालिश के गुणों पर एक विस्तृत विवेचना की है।

इंग्लैण्ड के इतिहास से पता चलता है कि वहां मालिश का प्रयोग प्राय: चिकित्सा की दृष्टि से ही होता रहा है तथा वहां मालिश मेडिकल रबिंग नाम से जानी जाती है। कहा जाता है कि वहां मालिश करने वाले वेतन पर काम किया करते थे और धनी और बड़े जमींदारों के यहां स्थाई तौर पर मालिश करते थे।

सन् 1863 में मालिश पर आधारित एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी जो लोगों द्वारा बहुत पसन्द की गई तथा बहुत अधिक संख्या में बिकी भी थी। परगैमस के `स्कूल ऑफ ग्लेडियेटर´ के एक डॉक्टर गैलेन, 1830 ने व्यायाम से पहले शरीर को तैयार करने के लिए तब तक रगड़ने का नियम निकाला था, जब तक कि शरीर लाल न हो जाए।

एक महान चिकित्सक ने लगभग सन 1575 में मोटापा दूर करने, रक्त-संचार (खून का बहाव) बढ़ाने और जोड़ों के स्थानांतरित हो जाने पर उन्हें उनके स्थान पर लाने आदि के लिए हल्की और तेज मालिश का आविष्कार किया था, जिसके परिणाम उनकी आशा के साथ ठीक मिले थे।

फारस के बादशाह का डॉक्टर हॉफमैन ने भी मालिश और व्यायाम करने पर बहुत जोर दिया करता था। उसका मानना था कि इससे शरीर स्वस्थ रहता है, रोगों से छुटकारा मिलता है तथा शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है।

ऑक्सफोर्ड के सर्जन ग्रासवेनर ने मालिश द्वारा जोड़ों के दर्द तथा अकड़न का सफल इलाज करके ख्याति प्राप्त की थी। उन्हीं दिनों लगभग 1800 ई. में एडिनबरा के मिस्टर बॉलफोर ने मालिश, ठोकना और दबाव क्रिया से गठिया, जोड़ों के दर्द और अनेक प्रकार की बीमारियों को ठीक किया था।

सन् 1813 में स्टॉकहोम में रॉयल इंस्टीट्यूट स्थापित की गई और डॉक्टर पीटर हैनरी लिंग ने मालिश करने के लिए एक नए ढंग की खोज की। बाद में यह पद्धति मालिश के नाम से प्रसिद्ध हुई। उन्होंने मालिश को वैज्ञानिक रूप दिया तथा शरीर-रचना के अनुसार उपयुक्त मालिश करने की पद्धति आरम्भ की। कहा जाता है कि हैनरी लिंग ने मालिश करने के नए ढंग की खोज निकालने में चीनी ग्रंथ कांग फो से सहायता ली थी और हैनरी लिंग ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वदेशी जिमनास्टिक पद्धति का आविष्कार किया था। हैनरी लिंग ने मालिश को मुख्य रूप से 3 भागों में बांटा गया है।

पहला- सक्रिय अंग-विक्षेप (एक्टिव मूवमेंट्स), दूसरा- निष्क्रिय अंग-विक्षेप (पैसिव मूवमेंट्स) और तीसरा- दुष्क्रिय अंग-विक्षेप (रेजिस्टिव मूवमेंट्स)।

  • सक्रिय अंग-विक्षेप :- तेल से या सूखे हाथों से पूरे ‘शरीर की मालिश की जाती है या मांसपेशियों को रगड़कर कोमल बनाया जाता है।
  • निष्क्रिय अंग-विक्षेप :- हल्की थपकी, कंपन और ताल आदि क्रियाओं के माध्यम से जोड़ों, रक्त की नलिकाओं और नाड़ी-तन्त्र पर प्रभाव डाला जाता है।
  • दुष्क्रिय अंग-विक्षेप :- इसमें दबाव डालकर धीरे-धीरे मालिश करनी होती है। इससे शरीर के रोगों को दूर करने में विशेष सहायता मिलती है तथा गठिया (जोड़ों का दर्द), अधरंग (शरीर के आधे भाग में लकवा आना) और दर्द आदि बीमारियों में भी इस क्रिया का लाभ मिलता है।

वर्णन-

डॉक्टर मज्गर के शिष्यों प्रोफेसर मोनसन जिल, बेरहम तथा हेलडे आदि ने भी मालिश की नई-नई तकनीके निकालीं और उनसे अनेक प्रकार के रोगियों को रोग से मुक्त किया। इसके बाद हर तरफ मालिश को अपनाया जाने लगा।

सन् 1877 में अमरीकी डॉक्टर वेयर मिचेल ने भी मालिश को एक लाभदायक पद्धति साबित करने में खासा योगदान दिया था। उन्होने `न्युरस्थिनियां´ के रोगियों को मालिश से ठीक करके इसकी उपयोगिता सिद्ध की। उसके बाद मालिश का चिकित्सा के रूप में प्रयोग किया जाने लगा तथा सभी देशों के प्रसिद्ध डॉक्टरों तथा सर्जनों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया।

इसके अलावा मालिश के बारे में अनेक विदेशी डॉक्टर हुए, जिन्होंने मालिश के बारे में अनेक साहित्य लिखे और मालिश की उपयोगिता को समझाया। एक प्रसिद्ध पश्चिमी लेखक `मैकन्जी´ ने अपनी लोकिप्रय किताब शिक्षा और औषधियों के प्रयोग´ में मालिश के गुणों की विस्तृत रूप से व्याख्या की। मैकन्जी का कहना था की स्नायु-संस्थान के लिए मालिश सबसे उपयोगी कसरत है, जिससे शरीर में होने वाले चार प्रधान कार्य होते हैं जैसे (रक्त-संचालन (खून का उचित बहाव), श्वास-क्रिया (सांस लेना), पाचन और मल को त्यागने में सहायक होना।

म्युनिक विश्वविद्यालय के प्लास्टिक सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉक्टर केलर ने मालिश और सर्जरी को सगी बहनें बताया है। एक बार मालिश के बारे में समझाते हुए केलर ने कहा कि जिस प्रकार सर्जरी द्वारा हम शरीर के अन्दर के गंदे भाग को काटकर बाहर फेंक देते हैं, उसी प्रकार मालिश भी शरीर के विकारों को रक्त के द्वारा फेंक देती है। सामान्य शब्दों में कहने से तात्पर्य यह है कि मालिश से स्वास्थ्य और सौन्दर्य दोनों में ही काफी बढोत्तरी होती है। डॉक्टर केलर ने खुद भी मालिश के कई प्रयोगों द्वारा अनेक बदसूरत महिलाओं को सुन्दरता प्राप्त करते हुए देखा है।

सिंपल ब्यूटी टिप्स

सिंपल ब्यूटी टिप्स

* बादाम, गुलाब के फूल, चिरौंजी और पिसा जायफल रात को दूध में भिगो दें। सुबह इसे पीसकर इसका उबटन लगाएँ। इससे चेहरे के दाग-धब्बे मिटते हैं और त्वचा कांतिमय बनती है।

* चंदन, गुलाब जल, पोदीने का रस एवं अंगूर का रस मिलाकर पेस्ट बनाएँ और उसे चेहरे पर लगाएँ। कुछ देर बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें। इस फेस पैक से चेहरे की झुर्रियाँ मिटती हैं।

* धूप में अक्सर हमारी त्वचा झुलस जाती है और काली पड़ जाती है। त्वचा के रंग को पहले की तरह बनाने के लिए आम के पत्ते, जामुन, दारूहल्दी, गुड़ और हल्दी की बराबर मात्रा मिलाकर उसका पेस्ट बनाकर पूरे शरीर पर लगाएँ। कुछ समय रखने के बाद स्नान कर लें। इस लेप से त्वचा की रंगत निखरती है।

* दो चम्मच सोयाबीन का आटा, एक बड़ा चम्मच दही व शहद मिलाकर पेस्ट बनाएँ तथा इस मिश्रण को कुछ देर चेहरे पर लगाकर चेहरा धो लें। इससे त्वचा में कसावट आती है।

* नीम की पत्तियाँ, गुलाब की पत्तियाँ, गेंदे का फूल सभी को एक कटोरी पानी में उबालें तथा इस रस को चेहरे पर लगाएँ। इससे मुहाँसे निकलना बंद हो जाते हैं।

बालों की देखभाल के टि‍प्‍स

बालों की देखभाल के टि‍प्‍स


1. बालों में मसाज जरूर करें।

2. स्टीम बाथ लें।

3. सूर्य स्नान करें।

4. गर्दन के व्यायाम करें।

5. प्राणायाम और मेडिटेशन करें।

6. भरपूर पानी पिएँ।

7. भरपूर नींद लें।

8. बालों को स्वच्छ रखने के लिए दिन में दो तीन बार कंघी करें।

9. दूसरों की कंघी, तौलिया आदि कभी भी इस्तेमाल नहीं करें।

बाल काला करने के घरेलू उपचार

बाल काला करने के घरेलू उपचार

* आमलकी रसायन आधा चम्मच प्रतिदिन सेवन करने से बाल प्राकृतिक रूप से जड़ से काले हो जाते हैं।

* एक छोटी कटोरी मेहँदी पावडर लें, इसमें दो बड़े चम्मच चाय का पानी, दो चम्मच आँवला पावडर, शिकाकाई व रीठा पावडर, एक चम्मच नीबू का रस, दो चम्मच दही, एक अंडा (जो अंडा न लेना चाहें वे न लें), आधा चम्मच नारियल तेल व थोड़ा-सा कत्था। यह सामग्री लोहे की कड़ाही में रात को भिगो दें। सुबह हाथों में दस्ताने पहनकर बालों में लगाएँ, त्वचा को बचाएँ, ताकि रंग न लगने पाए। दो घंटे बाद धो लें। यह आयुर्वेदिक खिजाब है, इससे बाल काले होंगे, लेकिन इन्हें कोई नुकसान नहीं होगा।

* सफेद बालों को कभी भी उखाड़ें नहीं, ऐसा करने से ये ज्यादा संख्या में बढ़ते हैं। सफेद बाल निकालना हों तो कैंची से काट दें या उन्हें काला करने वाला उपाय अपनाएँ।

* त्रिफला, नील, लोहे का बुरादा- तीनों 1-1 चम्मच लेकर भृंगराज पौधे के रस में डालकर रात को लोहे की कड़ाही में रख दें। प्रातः इसे बालों में लगाकर, सूख जाने के बाद धो डालें।

* रात को सोते समय नाक में दोनों तरफ षडबिन्दु तेल की 2-2 बूँद नियमित रूप से टपकाते रहें।

ये सभी प्रयोग धीरे-धीरे बालों को काला करने वाले हैं। कोई भी एक प्रयोग लगातार 5-6 माह तक करते रहें। षडबिन्दु तेल का प्रयोग अन्य प्रयोग करते हुए भी कर सकते हैं।

तो होंठ नहीं फटेंगे

तो होंठ नहीं फटेंगे !

मौसम कोई भी हो,ठंडी बयार जब त्वचा से टकराती या उसको छूती है तो त्वचा शुष्क हो जाती है। इसका अधिक असर होंठों पर पड़ता। खासकर सितंबर आते-आते अजीब सा मौसम हो जाता है। कभी ठंडा, कभी गर्म। ऐसे में होंठों का फटना आम समस्या बन जाती है। होंठों के फटने से पूरे चेहरे का सौंदर्य चौपट हो जाता है। चेहरे की खूबसूरती को बनाए रखने के लिए होंठों का स्वस्थ होना जरूरी है। ठंडी हवा के अतिरिक्त और कारण भी हो सकते हैं, जिनसे होंठ की त्वचा खराब होकर फट जाती है, उन पर पपड़ी जमी रहती है या दरारें पड़ जाती हैं।

होंठों की त्वचा बहुत ही कोमल और पतली होती है। इस जगह कोई ऐसी ग्रंथि नहीं होती, जो इन्हें चिकना बनाए रख सके। नमी की कमी ही होंठों के सूखने और फटने का मुख्य कारण होती है। यदि आपका खानपान गलत है और किसी रोग से पीड़ित हैं तो आपके होंठ ही इसका सबूत दे देते हैं। पर यदि आप सचेत हैं तो अपनी इस समस्या को आने से पहले ही रोक सकती हैं।

यदि आपके होंठ फट चुके हैं तो उन्हें ठीक करने पर ध्यान दें। जैतून का तेल और वैसलीन मिलाकर दिन में तीन या चार बार फटे होंठों पर लगाएँ। तीन-चार दिन नियमित उपचार करने पर आपके होंठों की दरारें भरने लगेंगी या भर जाएँगी।

दरारें होने पर थोड़ा-सा शहद लेकर होंठों पर उँगली से धीरे-धीरे मलें। कुछ ही दिनों के प्रयास से आपके होंठ पहले की तरह चमकदार और मुलायम हो जाएँगे। दो बड़े चम्मच कोकोआ बटर, आधा छोटा चम्मच मधु वैक्स लें। उबलते पानी पर एक बर्तन में वैक्स डालकर पिघला लें। इसमें कोकोआ बटर मिलाएँ। अब इस मिश्रण को ठंडा होने दें। इसे लिप ब्रश की मदद से होंठों पर लगाएँ। इससे होंठों का सौंदर्य बना रहेगा।

पपड़ी का जमा रहना होंठों का रोग ही बन गया है तो आप इससे भी निजात पा सकती हैं। इसके लिए एक छोटा चम्मच मेहँदी की जड़, करीब 60 मि.ग्रा. बादाम का तेल, 15 ग्राम बीज वैक्स लें। मेहँदी की जड़ को कूट लें और दस दिन तक इसे बादाम के तेल में भिगोएँ। दस दिन बाद तेल को छान लें। मोम को पहली विधि के अनुसार ही गरम पानी पर रखकर पिघला लें। अच्छी तरह से फेंटें। इसे लिप ब्रश से होंठों पर लगाना शुरू कर दें।

होंठों की त्वचा खुरदरी हो गई हो तो रात को सोने से पहले चेहरे को धोकर होंठों को अच्छी तरह से साफ कर लें। इसके बाद होंठों पर क्रीम, मलाई, मक्खन या देशी घी हल्के हाथों से कुछ देर मलें। होंठों की त्वचा इससे एक जैसी होकर मुलायम बनी रहेगी।

होंठ कुछ ज्यादा ही फटे-फटे से रहते हैं तो टमाटर के रस में घी या मक्खन मिलाकर लगाएँ। जब तक होंठों की त्वचा चिकनी नहीं हो जाती, यह उपाय जारी रखें।

मौसम कोई भी हो, होंठों पर इसका प्रभाव न हो इसके लिए शरीर में विटामिन ए व बी कॉम्प्लेक्स की कमी न होने दें। इसके लिए अपने दैनिक आहार में हरी सब्जी, दूध, घी, मक्खन, ताजे फल और ज्यूस लेती रहें। आप लिपस्टिक लगाने की शौकीन हैं तो एक बात का ध्यान हमेशा रखें।

यदि लिपस्टिक हर समय लगी रही तो होंठों पर दरारें तो पड़ेंगी ही, साथ ही उनकी गुलाबी रंगत भी बदल जाएगी। यदि होंठ ज्यादा ही कटे-फटे हो रहे हैं तो उन पर सीधी लिपस्टिक न लगाएँ। इससे होंठों पर पपड़ी और धब्बे बन सकते हैं। पहले उन्हें चिकना करने के लिए लिप ब्रश से वैसलीन की हल्की परत लगाएँ। उसके बाद केवल अच्छी क्वॉलिटी की लिपस्टिक का ही प्रयोग करें।

यदि आप अपने होंठों को हर मौसम में ही स्वस्थ रखना चाहती हैं तो देशी गुलाब की भीगी हुई पत्तियों को होंठों पर कुछ देर तक नियमित मलें। इससे आपके होंठ बिना लिपस्टिक के भी नेचुरल गुलाबी आभा लिए चमकते रहेंगे। अँगरेजी के 'ओ' और 'ई' अक्षर को कुछ देर तक बोलें। धीरे-धीरे सीटी बजाना भी होंठों के लिए अच्छी कसरत है। इन दिनों रात को सोते समय पेट्रोलियम जेली या एंटीसेप्टिक क्रीम लगाकर सोने से भी होंठ नहीं फटेंगे।

गर्म-ठंडी मसाज

परिचय-

किसी भी व्यक्ति के शरीर पर गर्म-ठंडी मालिश करने से पहले उसके शरीर को गर्म कर लिया जाता है। इसके बाद शरीर को ठंडा करके मालिश की जाती है। यह मालिश उन रोगियों के लिए विशेष लाभदायक है, जो नाड़ी की कमजोरी के रोग से पीड़ित हों या जिनकी नस-नाड़ियां बहुत कमजोर हो गई हों, जिस कारण वे सर्दी-गर्मी सहन न कर सकते हों। ऐसे रोगियों के लिए यह मालिश काफी लाभदायक होती है। जुड़े हुए जोड़ों, गठिया, वात रोगों तथा अधरंग आदि रोगों में भी यह मालिश विशेष लाभकारी होती हैं।

यदि आप किसी रोगी की यह मालिश करने जा रहे हैं, तो सबसे पहले रोगी के शरीर को गर्म पानी की बोतल से सेंक कर गर्म कर लें। फिर इसके बाद ठंडी मालिश आरम्भ करें। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि ठंडी-गर्म मालिश में ठंडी मालिश की तरह जोर से घर्षण नहीं दिया जाता, बल्कि ये घर्षण बहुत धीरे-धीरे देने चाहिए। इसमें बाकी सभी नियम ठंडी मालिश से मिलते-जुलते हैं। रोगी को सूखे तौलिए से अच्छी तरह रगड़कर व अच्छी तरह गर्म करके भी ठंडी मालिश दी जाती है, परन्तु इस क्रिया का प्रयोग किसी कमजोर रोगी पर कभी भी नहीं करना चाहिए। उनके अंगों को गर्म बोतल की सेंक देकर ही उनकी ठंडी मालिश करनी चाहिए। गठिया तथा जुड़े हुए जोड़ों वाले रोगियों के शरीर पर हाथ चलाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि आपके घर्षण से उन्हें पीड़ा का एहसास न होने पाए, इसलिए ठंडी मालिश को काफी सावधानी से करना चाहिए।

स्वस्थ व्यक्ति भी घर बैठे-बैठे इस मालिश का लाभ उठा सकते हैं, जैसे कि हर व्यक्ति सुबह स्नान करता है तो स्नान करते समय वह अपनी मालिश थोड़े समय में ही कर सकता है। सुबह स्नान करने से पहले अपने शरीर को हाथों से या किसी सूखे तौलिए से घर्षण देकर गर्म कर लें। घर्षण मात्र 5-7 मिनट तक ही दें, उसके बाद ठंडे पानी से स्नान कर लें। ठंडे पानी से भी अपने शरीर को रगड़कर मल लें। इस प्रकार की मालिश और स्नान से शरीर के रोमकूप खुल जाते हैं। शरीर का मैल धुल जाता है तथा चर्मरोग से सम्बंधी रोग दूर हो जाते हैं। त्वचा में शुद्ध खून का संचार तेजी से होता है, जिससे किसी तरह के चर्मरोग नहीं हो सकते। यह भी एक प्रकार की गर्म-ठंडी मालिश करने का ढंग है।

तेल मालिश-

तेल मालिश एक ऐसा उपचार है, जिसमें पूरे शरीर पर तेल मलकर सिलसिलेवार ढंग से गूंथा जाता है। मरीज को आराम की अवस्था में इस तेल मालिश के लिए विशेष रूप से बनाई गई एक गद्देदार मेज पर लिटाया जाता है। मालिश करने का यह काम हाथों से किया जाता है। मालिश शरीर के उस भाग में की जाती है, जिसका इलाज किया जाना होता है। आधे घंटे तक शरीर को थपका जाता है, रगड़ा जाता है, एक प्रकार से गूंथा जाता है, हल्के-हल्के दबाया जाता है तथा हिलाया-डुलाया जाता है।

ये क्रियाएं खून के बहने की दिशा से की जाती है। मालिश की शुरुआत शरीर में दाहिनी ओर दाहिने पैर के साथ होती है और अन्त में सिर और गर्दन की बारी आती है।

असली मालिश तो असल में तेल से ही की जा सकती है। तेल की सहायता से हम अपना हाथ पूरे शरीर पर आसानी से चला सकते हैं। तेल मालिश मांसपेशियों को ढीला करती है, त्वचा को सीधी खुराक पहुंचाती है तथा शरीर में लचक पैदी करती है। रोगों में अधिकतर तेल की मालिश ही करनी चाहिए। वात रोगों, अधरंग (आधे शरीर में लकवा होना), पोलियो, चोट, हड्डी टूटने आदि रोगों में तेल की मालिश काफी लाभकारी होती है।

ठंडी मालिश

ठंडी मालिश तेल से की जाती है। तेल की मालिश से कहने का अभिप्राय यह है कि हम खून को दिल की तरफ ले जाएं, इसलिए यह मालिश नीचे से ऊपर की ओर करते हुए चलते हैं और नसों को तेज करते हैं, परन्तु ठीक इसके विपरीत ठंडी मालिश में हमें धमनियों को तेज करना होता है और उन्हें चलाना होता है। इसलिए यह नीचे से ऊपर की ओर की जाती है। तेल मालिश दिल से नीचे की तरफ की जाती है। कहने का अभिप्राय हैं कि शरीर का यह नियम है कि शरीर के जिस अंग को ठंडा कर दिया जाएगा, रक्त वहां तेजी से भागकर आएगा तथा ठंडे अंग को गर्म करेगा।

उदाहरण के लिए आपने सुना या देखा ही होगा कि बुखार यानी ज्वर से पीड़ित रोगी के माथे पर ठंडे पानी की पटि्टयां रखी जाती हैं तथा पेट पर भी ठंडी पटि्टयां रखी जाती है तो वह गर्म हो जाती है क्योंकि जब वे पटि्टयां अंग को ठंडा करती हैं, तो रक्त उन अंगों को गर्म कर देता है, जिससे पटि्टयां भी गर्म हो जाती है। यदि हम गीले कपड़े को अपने किसी अंग से लगाकर रखते हैं, तो वह गीला कपड़ा गर्म हो जाता है। इसका भी कारण यही है कि जब अंग ठंडा हो जाता है तो धमनियों का खून वहां तेज हो जाता है और खून उस अंग को अधिक गर्मी देकर जल्दी गर्म कर देता है। इसलिए ठंडी मालिश हमेशा धमनियों को तेज करती है। जब शुद्ध रक्त एक स्थान पर जाएगा तो उस अंग को शक्ति मिलेगी, उस अंग में छिपे विकार को वहां से हटना पड़ेगा। इसी को ठंडी मालिश कहते हैं।

तेल मलना :-

इस क्रिया में तेल को रोग वाले अंग पर लगाकर धीरे-धीरे नीचे से ऊपर की ओर दबाव डालकर मलना होता है। तेल सभी अंगों पर लगाना चाहिए, परन्तु दबाव केवल मांसपेशियों पर ही देना चाहिए, हडि्डयों पर नहीं।

लाभकारी-

तेल मलने से शरीर में समा जाता है, त्वचा नर्म होती है, रक्त-संचार में वृद्वि होती है तथा मांसपेशियों शिथिल होती है। इससे मालिश के आधुनिक तरीकों को अपनाने के लिए आपका शरीर तैयार हो जाता है।

मर्दन करना, टांगों की मालिश

परिचय-

मालिश करना एक प्रकार की क्रिया होती है, जो विशेषज्ञों की देखरेख में ही करनी चाहिए परन्तु यहां पर हम `स्वयं अपनी मालिश के ढंग´ या तरीको को समझा रहे हैं जैसे हाथों, पैरो और टांगों आदि की मालिश जो इस प्रकार से हैं।

  • सबसे पहले टांगों पर तेल मलने के बाद जमीन पर बैठ जाएं। अब अपना दायां हाथ दोनों टांगों के बीच ले जाकर बाएं पांव के टखने पर गोलाई में जमाएं। अब अपनी दाई टांग का दबाव दाएं हाथ की कोहनी पर तथा बाएं हाथ का दबाव बाएं घुटने पर डालें। इससे टांग एक अवस्था में स्थिर रहेगी। अब अपना दायां हाथ ऊपर की तरफ घुटनों तक धीरे-धीरे मालिश करते हुए ले जाएं। आपका हाथ बाई टांग के स्थान पर रहने दें। बाजू पर दाई टांग का दबाव होने के कारण हाथ खुद ही फिसलता जाएगा। यह क्रिया 4-5 बार करें।
  • अब अपने बाएं हाथ को बाईं टांग के घुटने से हटा लें तथा उसी टांग के टखने पर जमाएं। अब दबाव डालकर हाथ से मालिश करते हुए घुटने तक ले जाएं। इस समय आप बाई टांग के दूसरे भाग की मालिश कर रहे हैं, इस क्रिया को भी 2-3 बार करें।
  • हर क्रिया के बाद अपने दोनों हाथ ढीले रखकर पूरी टांग पर ऊपर-नीचे घर्षण करें। इससे आपके हाथ और टांगों में ढीलापन आ जाता हैं।
  • अब पहले वाली स्थिति में आ जाएं। फिर अपने हाथों को एक दूसरे के ऊपर रखकर बाएं घुटने के पास जांघ पर रखें। उसके बाद दबाव डालते हुए अपने हाथों से जांघों पर मालिश करते हुए नीचे की तरफ ले जाएं। अपने हाथों को थोड़ा दाएं-बाएं करके भी यह क्रिया करें। ऐसा केवल आप 3 से 4 बार कर सकते हैं।
  • अब बाई टांग को सामने की तरफ ऊंची करके फैलाएं। उसके बाद अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर हाथ बांध लें तथा अब अपने हाथों को टांग के नीचे से पांव के तलवे पर रखें। हाथ इस प्रकार गोल होने चाहिए कि वे टांग के नीचे से पांव के तलवे पर बैठ जाएं। अब जोर लगाते हुए धीरे-धीरे हाथों को जांघों की तरफ लाएं। हाथों को पीछे खींचते समय आपको थोड़ा लेटना भी पड़ेगा, तथा आप अच्छी तरह जोर लगा सकेंगें तथा आपका हाथ भी टांगों पर ठीक प्रकार चल सकेगा। इस क्रिया को 3 से 4 बार कर सकते हैं।
  • अब फिर से पहले की तरह बैठ जाएं। इस क्रिया में आपको अपना हाथ घुटने के पास जांघों पर नहीं रखना है बल्कि अपनी बाईं बाजू को जांघों के नीचे से निकालकर अन्दर-बाहर रखें। दूसरी बाजू भी इसी प्रकार निकालें। अब अपने दोनों बाजुओं को अन्दर-बाहर करते हुए जांघों के निचले भाग की मालिश करें।
  • इस क्रिया में भी पहले की ही तरह बैठे रहें। फिर अपने एक हाथ को चूड़ी का आकार देकर टखने को पकड़ लें। उसके बाद हाथ की चूड़ी को दबाकर घुमाते हुए घुटनों तक लाएं। इस क्रिया को `मरोड़ना क्रिया´ के नाम से भी जानते हैं। अब घुटनों पर चारों तरफ से मालिश करें फिर दोबारा अपने हाथ की चूड़ी बनाकर दबाव के साथ पूरी जांघ पर चलाएं। यह क्रिया भी 4-5 बार करें। इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि पिण्डलियों के ऊपर की हड्डी पर दबाव नहीं पड़ना चाहिए बल्कि केवल पिंडली और आस-पास की मांसपेशियों पर ही दबाव पड़ना चाहिए। एक स्थान पर चूड़ी चलाते समय उसी स्थान पर 2 से 3 बार अन्दर-बाहर चूड़ी घुमाएं और उसके बाद आगे बढ़ें।
  • पूरी टांग पर एक ही तरह से हाथ चलाना चाहिए।
  • जब टांगों की मालिश पूरी हो जाए, तो आखिर में आकृति 3 की भांति खड़ी ठोक, मुक्का मारना और कंपन आदि क्रियाओं को करना चाहिए।

इस प्रकार से आपकी एक टांग की मालिश पूरी हो जाएगी। इसके बाद आप दूसरी टांग की मालिश भी इसी तरह से कर सकते हैं।

घरेलू ब्यूटी स्क्रब

घरेलू ब्यूटी स्क्रब

बादाम को पीसकर उसका पेस्‍ट बना लें। अब इसमें एक चम्‍मच चावल का आटा व दही मि‍लाकर उबटन तैयार कर लें। इस उबटन को चेहरे पर लगाकर 15 मि‍नट बाद चेहरा धो लें। आधा कटोरी बेसन में दो चम्‍मच दही मि‍लाकर पेस्‍ट तैयार करें। इस पेस्‍ट को कुछ देर चेहरे पर लगाकर ठंडे पानी से चेहरा धो लें।

संतरे और नींबू के छि‍लकों को सुखाकर बारीक पीस लें। अब इन दोनों को दो-दो चम्‍मच पावडर मि‍लाकर इसमें एक चम्‍मच बादाम पावडर और गुलाब जल मि‍लाकर उबटन बना लें। अब इस उबटन को चेहरे पर 15 मि‍नट लगाकर ठंडे पानी से चेहरा धो लें।

मसूर की दाल को रात को दूध में भिगोकर पीस लें तथा सुबह इस लेप को चेहरे पर लगाएँ। आधा कटोरी दही में एक चम्मच नींबू का रस तथा एक चम्मच संतरे का रस मिलाकर चेहरे पर लगाएँ। गुलाब जल में रुई भिगोकर प्रतिदिन अपना चेहरा साफ करें। नीम के पत्ते, संतरे के छिलके तथा हल्दी को थोड़ा पानी मिलाकर पीस लें अब इस पेक में दही मिलाकर चेहरे पर लगाएँ।

ब्यूटी के घरेलू नुस्खे

ब्यूटी के घरेलू नुस्खे

तरबूज के सफेद भाग का रस निकालकर उसमें थोड़ा-सा शहद मिलाकर चेहरे पर लगाएँ। सूखने पर इसे दोबारा चेहरे पर लगाएँ। ऐसा 10-15 मिनट तक करें। चाहें तो इस रस में कॉटन भिगोकर चेहरे पर फैला लें। उसके बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें। इससे आपकी त्वचा कोमल व मुलायम होगी तथा त्वचा के दाग-धब्बे भी धीरे-धीरे कम होते जाएँगे।

पपीते का पैक बनाने के लिए पपीते के बीज निकाल कर 2-3 स्लाइस काट लें। अब इनके टुकड़े करके इन्हें मिक्सी में थोड़ा दरदरा मोटा) पीस लें। अब इसमें 1/2 कप दही मिलाकर फिर से इस मिश्रण को पीस लें। इस तरह तैयार पपीते और दही के पैक को चेहरे और गर्दन पर 20 मिनट तक लगाकर रखें। उसके बाद चेहरा धो लें। इस पैक को लगाने से आपको ठंडक महसूस होगी तथा आपकी थकान कम होगी।

1 लाल टमाटर लेकर उसे काटकर मिक्सी में डाल दें। अब इसमें 1 चम्मच जई का आटा और 1 चम्मच नींबू का रस मिलाकर हल्का गाढ़ा पीस लें। इस तरह से तैयार इस पेस्ट को 10 मिनट के लिए चेहरे पर लगाएँ और सूखने के बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो लें। इस पैक को रोजाना लगाने से धीरे-धीरे आपकी त्वचा पहले से अधिक मुलायम व बेदाग हो जाएगी।

लड़कों के लिए खास 'ब्यूटी' टिप्स

लड़कों के लिए खास 'ब्यूटी' टिप्स

सौंदर्य के प्रति स्त्री-पुरुष दोनों का ही झुकाव पहले भी रहा है और आज भी है। यह कहना गलत न होगा कि पहले की तुलना में स्त्री-पुरुष आज अपने सौंदर्य और स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हैं। उनमें एक दूसरे से अधिक सुंदर देखने की जो होड़ मची है, वह वाजिब भी है क्योंकि सुंदरता ही स्वास्थ्य की सही पहचान है।

जड़ी-बूटियाँ कुदरत ने जो हमें दी है,उनमें सौंदर्य और स्वास्थ्य को बनाए रखने की गजब की ताकत है। आप इन सहज-सुलभ सस्ती जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल कर किसी भी मौसम में अपने आप को सुंदर और स्वस्थ बनाए रख सकते हैं। जड़ी-बूटियों के मिश्रण से तैयार इन सौंदर्य प्रसाधनों का इस्तेमाल स्त्री-पुरुष दोनों ही समान रूप से बेहिचक कर सकते हैं।

झुर्रियाँ : आपके चेहरे पर, गले पर, बाँहों पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं तो आप अंडे को सौंदर्य प्रसाधन के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। अंडे की सफेदी को फेंटें और उसमें थोड़ा नींबू को भी निचोड़ दें। अब इस फेस पैक को आँखों के हिस्से को छोड़कर पूरे चेहरे पर,बाँहों पर,गले पर लगाएँ। दस मिनट के बाद ठंडे पानी से इसे धो दें। अंडे की सफेदी त्वचा के खुले रोम छिद्रों को कसती है,जिससे ढीली त्वचा कस जाती है। झुर्रियों वाली त्वचा के लिए यह एक बढ़िया फेस पैक है।

चिकनी त्वचा : चेहरे की त्वचा को चिकनी और कोमल बनाए रखने के लिए जौ के आटे को फेस पैक के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि यह कुदरती तौर पर त्वचा को कोमल, गोरा और चमकदार बनाता है। जौ के आटे को पहले गर्म पानी में दस मिनट तक भिगोकर रखें। ‍िफर चेहरे पर लगाएँ या चार चम्मच जौ का आटा या चने का बेसन लें और इसमें आठ चम्मच दूध तथा एक नींबू का रस डालकर पानी में रात भर के लिए भिगो दें। सुबह इसे फेंट कर चेहरे पर लगाएँ,गले पर भी लगाएँ। दस पंद्रह मिनट के बाद इसे हल्के हाथों से रगड़ कर छुड़ा दें। आपकी त्वचा चिकनी होकर दमक उठेगी। कुछ सप्ताह ऐसा करने से चेहरा गोरा और कोमल हो जाता है।

तैलीय त्वचा : आपकी त्वचा तैलीय है तो टमाटर तथा नींबू से बना फेस पैक अच्छा रहेगा। एक टमाटर को नींबू के रस के साथ मसल दें। इस प्रसाधन को आँखों के हिस्से को छोड़कर पूरे चेहरे पर लगाएँ। और दस मिनट बाद गुनगुने पानी से चेहरा धो दें। त्वचा की तैलियता गायब हो जाएगी।

सफेद बालों से पाएँ छुटकारा

सफेद बालों से पाएँ छुटकारा

*पिसी हुई सूखी मेहँदी एक कप, कॉफी पावडर पिसा हुआ 1 चम्मच, दही 1 चम्मच, नीबू का रस 1 चम्मच, पिसा कत्था 1 चम्मच, ब्राह्मी बूटी का चूर्ण 1 चम्मच, आँवला चूर्ण 1 चम्मच और सूखे पोदीने का चूर्ण 1 चम्मच। इतनी मात्रा एक बार प्रयोग करने की है। इसे एक सप्ताह में एक बार या दो सप्ताह में एक बार अवकाश के दिन प्रयोग करना चाहिए।

*सभी सामग्री पर्याप्त मात्रा में पानी लेकर भिगो दें और दो घण्टे तक रखा रहने दें। पानी इतना लें कि लेप गाढ़ा रहे, ताकि बालों में लगा रह सके। यदि बालों में रंग न लाना हो तो इस नुस्खे से कॉफी और कत्था हटा दें। पानी में दो घण्टे तक गलाने के बाद इस लेप को सिर के बालों में खूब अच्छी तरह, जड़ों तक लगाएँ और घंटे भर तक सूखने दें।

*इसके बाद बालों को पानी से धो डालें। बालों को धोने के लिए किसी भी प्रकार के साबुन का प्रयोग न करके, खेत या बाग की साफ मिट्टी, जो कि गहराई से ली गई हो, पानी में गलाकर, कपड़े से पानी छानकर, इस पानी से बालों को धोना चाहिए। मिट्टी के पानी से बाल धोने पर एक-एक बाल खिल जाता है जैसे शैम्पू से धोए हों।

*जपा (जवाकुसुम या जास्बंद) के फूल और आँवला, एक साथ कूट-पीसकर लुगदी बनाकर, इसमें बराबर वजन में लौह चूर्ण मिलाकर पीस लें। इसे बालों में लगाकर सूखने के बाद धो डालें।

ये हैं सुहागनों के 16 श्रृंगार

ये हैं सुहागनों के 16 श्रृंगार

भारतीय संस्कृति में सुहागनों के लिए 16 श्रृंगार बहुत अहम माने जाते थे पर अब 16 में से 4 भी कोई अपना ले तो गनीमत है। फैशन की खुमारी कुछ इस तरह चढ़ी है की 16 श्रृंगार के मायने पूरी तरह से बदल चुके हैं।

अब कोई इन परंपराओं को नहीं मानता और कोई मान्यता देता भी है तो उसे अपनी सहूलियत के हिसाब से बदल देता है। इसमें भी कोई ताज्जुब नहीं कि कामकाजी महिलाओं को 16 श्रृंगार के नाम तक भी नहीं मालूम होंगे। तो चलिए कम से कम जान तो लें ये नाम...

सिंदूर

चूड़ियाँ

बिछुए

पाजेब

नेलपेंट

बाजूबंद

लिपस्टिक

आँखों में अंजन

कमर में तगड़ी

नाक में नथनी

कानों में झुमके

बालों में चूड़ा मणि

गले में नौलखा हार

हाथों की अंगुलियों में अंगुठियाँ

मस्तक की शोभा बढ़ाता माँग टीका

बालों के गुच्छों में चंपा के फूलों की माला

शरीर के अंगों की मालिश

परिचय-

शरीर की मालिश कई विधियों से की जाती है। जिस तरह पूरे शरीर की मालिश के लियें कुछ नियम व विधियां बनाई गई है उसी तरह शरीर के कुछ अंगों की मालिश के लियें भी नियम व विधियां बनाई गई है। इन क्रियाओं का लाभ मालिश करने के तरीके व मालिश करने वाले चिकित्सक के ऊपर पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार से मालिश करता है।

सिर की मालिश के लिए :-

  1. सिर की मालिश हमेशा हल्के रूप में ही करनी चाहिए।
  2. मालिश करने की क्रियाएं थोड़ी-थोड़ी देर के बाद बदलते रहनी चाहिए।
  3. सिर की मालिश कुछ इस प्रकार करें कि बालों की जड़ों को शक्ति मिल सके। मालिश करते समय तेल बालों की जड़ों तक जाना चाहिए न कि सिर्फ ऊपर-ऊपर ही रह जाए।
  4. मालिश का अधिक लाभ लेने के लिए सिर की मालिश रात को करनी चाहिए क्योंकि रात की मालिश से दिमाग पर चढ़ी दिनभर की थकावट दूर हो जाती है और सिर हल्का हो जाता है। मालिश सोने से ठीक पहले करनी चाहिए ताकि मालिश के बाद नींद अच्छी आ सके।
  5. यदि प्रतिदिन सिर की मालिश करवाना सम्भव न हो तो कम-से-कम सप्ताह में 1 बार तो अवश्य करनी चाहिए। इससे बुद्धि का अच्छा विकास होता है तथा जुकाम और सिर के दर्द में आराम मिलता है। और बाल भी जल्दी सफेद नहीं होते।

मालिश करने की विधियां :-

  • हाथों की अंगुलियों की कंघी के रूप में बनाकर पूरे सिर के बालों की जड़ों तक मालिश करें।
  • अपने हाथों को दाईं-बाईं तरफ खोलकर अन्दर-बाहर और आगे-पीछे पूरे सिर की मालिश करें।
  • मालिश करते समय सिर को थपथपाना चाहिए।
  • दोनों हाथों की सहायता से सिर के पिछले भाग की ऊपर-नीचे कई बार मालिश करनी चाहिए।
  • दोनों हाथों को चूड़ी का आकार देकर और माथे के ऊपर सिर के भाग को घुमाकर मरोड़ें।
  • दोनों हाथों को इस प्रकार जोड़ें कि आपकी सभी अंगुलियां खुली हों। अब हाथों से सिर को ठोकें और दोनों हाथों से सिर को चारों तरफ से दबाएं।

आंखों की मालिश-

आंखों के भीतरी और ऊपरी कोनों से आंखों के चारों ओर बाहर की ओर हल्की मसाज करें। हाथों की तीसरी उंगली का प्रयोग करते हुए नाक के दोनों किनारों और कनपटी पर हल्का दबाव देते हुए मसाज करें। आंखों के आस-पास की त्वचा बहुत कोमल होती है इसलिए ध्यान रखें कि त्वचा को खिंचने न दे। नाक से शुरू करके ऊपर की ओर भौंहों पर चुटकी काटते हुए मसाज करें। तर्जनी और अंगूठे की सहायता से भौंहों पर हल्की ऐंठन दें। 5 बार ऐसा करने से आंखों की थकान दूर होती है। भौंहों पर सीजर मसाज से भी आंखों की थकान दूर होती है।

चेहरे की मालिश :-

चेहरे की मालिश की शुरूआत गालों से करनी चाहिए। इससे जबड़े को विश्राम मिलता है तथा गाल सुडौल होते हैं। अपने दोनों अंगूठों को ठोढ़ी के बीच में रखकर बाहर की ओर जबड़े के अन्त तक मसलते हुए ले जाएं। अंगुलियों के पोरों को मिलाकर गालों को हल्के से कानों की ओर दबाएं। दोनों हाथों को क्रमबद्ध तरीके से मुंह के किनारों से कान की ओर धीरे-धीरे सरकाने का प्रयास करें।

आंखों के नीचे वाले हिस्से की मालिश नहीं करनी चाहिए। यह बेहद नाजुक स्थान होता है। जिसकी मांसपेशियां कमजोर होती है। भौहों के बीच से लेकर आंखों के चारों ओर गोलाई की दिशा में नाक के ऊपरी सिरे तक मालिश करें। माथे की सलवटें (भृकुटि) को दो पद्धतियों द्वारा तनाव से छुटकारा दिलाया जा सकता है। भौहों के बीच के भाग से दोनों तरफ अंगुलियों की पोरों को सरकाते हुए दोनों कानों के ऊपरी भाग तक लाएं और धीरे-धीरे अंगुलियों को ऊपर के भाग में बढ़ाते हुए माथे पर यही प्रक्रिया दोहराएं और कनपटी तक ले जाएं। इसके बाद वर्टिकल यानी खड़ी दिशा में मालिश करें। इसमें अंगुलियों को भौहों के बीच से बालों की तरफ ऊपर ले जाएं। सलवटें (भृकुटि) लाइन को कभी नीचे की दिशा में न खींचे। हमेशा ऊपर की ओर या तिरछी दिशा में मालिश करें। कनपटी का तनाव दूर करने के लिए गोलाई में हल्के-हल्के अंगुलियां चलाएं। धीरे-धीरे दबाव बढ़ाएं। इसके बाद में 10 से 15 मिनट तक आराम करने से लाभ होगा।

मुंह की मालिश के लिए :-

मुंह की मालिश यदि सिर की मालिश के साथ ही की जाए तो बहुत अच्छा रहता है। सबसे पहले थोड़ा-सा तेल हाथों पर चुपड़कर पूरे चेहरे पर मलें। उसके बाद माथे पर हाथ से सिर की तरफ तेल मलें। गर्दन ऊपर करके ठोढ़ी के नीचे भी तेल मलें। अंगुलियों तथा अंगूठे की सहायता से आंखों के चारों तरफ हल्का-हल्का घर्षण दें। नाक के दोनों तरफ अंगुलियों से मालिश करते हुए हाथ कानों तक ले जाएं। गालों पर हाथ गोलाकार नीचे की तरफ चलाएं।

आंखों को सहलाएं, कंपन दें तथा गालों पर भी गोलाई से घर्षण देकर कंपन दें। कानों में 2-2 बूंद तेल डालें तथा उनके ऊपर हाथ से कंपन दें। नाक में भी दोनों तरफ 2-2 बूंद तेल डालें तथा नाक की बाहरी ओर मालिश करें तथा जोर से सांस लें। यह क्रिया आंखों की रोशनी तथा जुकाम के लिए काफी लाभकारी होती है।

वैसे सरसों के तेल को अंगुलियों की मदद से गुदा में लगाना बहुत लाभदायक है। अण्डकोष और गुदा के बीच पौरूष ग्रंथि (प्रोस्टेट ग्लैण्ड) पर भी तेल की मालिश करनी चाहिए। अण्डकोष के आस-पास के भाग पर मालिश करने से पेशाब सम्बंधी रोगों से बचा जा सकता है। गुदा में तेल लगाने की क्रिया को `गणेश क्रिया´ कहा जाता है। इससे कब्ज रोग नहीं होता और बवासीर नामक बीमारी से भी बचा जा सकता है।

मुख की मालिश करते आंखों पर अधिक दबाव नहीं देना चाहिए, क्योंकि आंखे कोमल अंग होती हैं। यदि भोजन के बाद अपनी हथेलियों से आंखों को सहलाया जाए, आंखों को चारों तरफ से मसला जाए तथा पूरे चेहरे पर हाथ फेरा जाए तो इन क्रियाओं द्वारा बहुत लाभ उठाया जा सकता है। इससे आंखों की रोशनी में बढोत्तरी होती है। चेहरे पर भी यदि हम स्नान से पहले प्रतिदिन सूखे हाथों से मालिश करें तो भी लाभ उठा सकते हैं, क्योंकि इससे चेहरे पर मुहांसे नहीं निकलते और चेहरे की सुन्दरता बनी रहती है।

महिलाओं को अपनी सुन्दरता बनाए रखने के लिए मालिश का सहारा लेना चाहिए।

हाथों की मालिश के लिए :

हाथों की मालिश करने के लिए सबसे पहले हाथों पर तेल लगाकर दोनों हथेलियों को आपस में रगडे़। हाथ के ऊपरी भाग को दूसरे हाथ के अंगूठे से मसलें। गांठें घुमाएं, जोड़ों को चलाएं तथा दूसरे हाथ की मदद से हाथ की प्रत्येक अंगुली को पकड़कर हल्का झटका दें। अंगुलियों के ऊपर की मांसपेशियों को घर्षण दें। कलाई को दूसरे हाथ की मदद से गोलाकार मसलें और घुमा दें।

बाजू की मालिश :-

  • सबसे पहले अपनी बाजुओं पर अच्छी तरह से तेल मलकर नीचे दिखाई गई आकृति की तरह बैठकर अपना आधा हाथ अन्दर से दूसरे पांव के नीचे दबा लें। अब दूसरे हाथ को उसी हाथ के पास गोलाई में टिका लें और टांग का दबाव डालते हुए हाथ से मालिश करते हुए नीचे से ऊपर की ओर चलें। ध्यान रहे कि दूसरी टांग को भी बाजू को पूरा सहारा मिलना चाहिए तभी दबाव अच्छा पड़ेगा।
  • अपनी अंगुलियों और हथेली की अच्छी तरह मालिश करके घुमाएं। फिर कोहनी से बाजू को कई बार घुमाएं। इसी तरह कंधे को भी इसी तरह घुमाएं।
  • अब अपना वह हाथ जो आपने पांव के नीचे दबा रखा है निकाल लें तथा हाथ उल्टा करके फिर वहीं दबा लें। इससे आपका बाजू उल्टा हो जाएगा। जिस प्रकार आपने बाजू के दूसरे भाग पर मालिश की है, उसी प्रकार इस भाग पर भी मालिश करें। इस भाग पर भी वही क्रिया 3 से 4 बार ही करें।
  • अपने हाथ को टांग से बाहर निकाल लें और नीचे दी गई आकृति की तरह एक हाथ की चूड़ी बनाकर दूसरी बाजू पर घुमाते हुए चलें। जिस बाजू की आप मालिश कर रहे हैं, चूडी के साथ-साथ उसे भी घुमाते रहें।
  • टांगों की भांति बाजू को भी झकझोरें। ताल से हाथ चलाना, खड़ी ठोक देना, मुक्का मारना और कंपन देना आदि क्रियाओं का प्रयोग करें। इस तरह आपकी एक बाजू की मालिश हो जाएगी। इसी प्रकार दूसरी बाजू की भी मालिश करें।

गर्दन की मालिश :-

हर व्यक्ति के शरीर के कंधे और गर्दन पर सबसे अधिक तनाव रहता है क्योंकि गर्दन पर सिर का भार रहता है। इसके अलावा कंधे अधिक झुकाकर बैठने से भी गर्दन के दोनों ओर की मांसपेशियां तन जाती हैं। गर्दन की मालिश करने के लिए रोगी को पेट के बल लिटाकर दोनों कंधों पर `नीडिंग´ क्रिया करनी चाहिए। यह `नीडिंग´ क्रिया गर्दन से खोपड़ी के नीचे तक करने से लाभ होता है।

गर्दन और चेहरे की मालिश के लिए :-

  • गर्दन पर तेल लगाकर दोनों हाथों से गर्दन को पकड़ें और दबाव देकर चारों तरफ हाथ घुमाते हुए मालिश करें।
  • अपना दायां हाथ बाईं ओर से घुमाकर गर्दन के पीछे के भाग से थोड़ा ऊपर रखें तथा वहां से दबाव डालते हुए हाथों को कंठ तक लाएं। अच्छा हो, यदि हाथ के साथ ही गर्दन को भी घुमाते जाएं, इससे दबाव ठीक बनेगा व हाथ आसानी से चलेगा। ठीक इसी तरह बाएं हाथ से गर्दन के पिछले भाग से कंठ तक मालिश करें।
  • हाथ को ठोड़ी के नीचे रखें तथा ऊपर से नीचे की तरफ गर्दन और गले पर मालिश करें। यह क्रिया 4 से 5 बार होनी चाहिए।
  • अपने दोनों हाथों की सहायता से पूरे चेहरे को ढक लें। फिर चेहरे को हाथों से धीरे-धीरे मसलते हुए मालिश करें। ध्यान रखें कि इस क्रिया में आपकी आंखों पर किसी प्रकार का कोई दबाव न पड़ने पाए। आंखों को हथेली की मदद से हल्का-हल्का मसल लें। अंगुलियों से आंखों के चारों तरफ मालिश करें।

गर्दन और कंधों की मालिश-

मालिश की शुरूआत गर्दन और कंधों से करें, जहां ज्यादा तनाव उत्पन्न होता है। दाहिने हाथ को छाती पर बीच में रखकर ऊपर तक मसलते हुए गर्दन और कंधे के बाई तरफ ले जाएं। इसी प्रकार बाएं हाथ को छाती पर रखकर दाईं ओर ले जाएं। इस प्रक्रिया को बारी-बारी से दोहराएं। इसी तरह दोनों हाथों से गर्दन के पीछे का तनाव दूर करें। अपने दोनों हाथों को कटोरा आकार बनाकर एक हाथ गर्दन के निचले हिस्से पर तथा दूसरा जबड़े के नीचे रखें। फिर दोनों हाथों को हल्के दबाव के साथ जबड़े के पीछे ले जाएं। इसी प्रकार हाथ नबदलकर प्रक्रिया दोहराएं तथा हाथों को गर्दन के चारों ओर घुमाएं। गर्दन के अगले हिस्से पर अंगुलियों के नीचे से ऊपर जबड़े तक मालिश करें।

छाती की मालिश :-

मनुष्य की छाती में 2 अंग काफी महत्त्वपूर्ण होते है। फेफड़े और हृदय। जिगर और आमाशय छाती के निचले भाग में होते हैं। जिगर दाईं तरफ और आमाशय बाईं तरफ, जो आधा पसलियों के नीचे और आधा पेट में होता है।

सबसे पहले तेल लगाकर रोगी की छाती की मालिश करें। फिर दोनों तरफ की बगलों की तरफ की मांसपेशियों को पकड़कर मसलें। उसके बाद बारी-बारी से प्रत्येक को रगड़ें। स्तनों और हृदय पर गोलाकार मालिश करें। उसके बाद दोनों हाथों को छाती के बीच रखकर बगल की तरफ से हृदय की ओर मालिश करें। और छाती को थपथपाएं। कटोरी थपकी क्रिया का प्रयोग करें। पूरी छाती पर अच्छा घर्षण दें, हल्की-हल्की मुक्कियां मारें और कंपन दें।

पेट की मालिश करने के लिए :-

पेट की मालिश करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपना पेट बिल्कुल ढीला छोड़ देना चाहिए। जिस समय पेट की मालिश की जा रही हो, उस समय पेट एकदम खाली होना चाहिए, यानी रोगी ने कुछ खाया-पीया नहीं होना चाहिए। यदि कुछ खाया-पिया भी हो, तो वह कम-से-कम 4 से 5 घण्टे पहले खाया हो।

यदि पेट भरा हो, तो मालिश बिल्कुल भी नहीं करानी चाहिए। इसके अलावा मालिश करने वाले को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि यदि रोगी के पेट पर सूजन या घाव हो तो ऐसी अवस्था में पेट की मालिश बिल्कुल नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे रोगी को लाभ के स्थान पर हानि ही पहुंचेगी। पेट की मालिश बहुत महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि हमारा पेट पोषण-संस्थान होता है तथा इसमें यकृत (जिगर), प्लीहा (तिल्ली), आमाशय, पक्वाशय, क्लोम ग्रंथि, छोटी-बड़ी आंतें आदि होती हैं इसलिए पेट की मालिश को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

मालिश के शुरू करने से पहले पेट पर तेल लगाकर मालिश करनी चाहिए। पेट की बड़ी आंत से मालिश आरम्भ करके हाथ को धीरे-धीरे दबाते हुए जिगर तक ले जाना चाहिए। फिर हाथ को बाईं तरफ मोड़कर आमाशय के पास ले जाएं, उसके बाद हाथ को प्लीहा पर दबाते हुए नीचे की तरफ लाएं, फिर वहां से दाईं तरफ चलें, इसके बाद हाथ को दबाव के साथ ऊपर ले जाकर बीच में लाएं तथा नीचे की तरफ पेड़ू के निचले भाग पर दबाव समाप्त करें। पेट के जिस-जिस भाग पर हमारा हाथ चलता है, बड़ी आंत भी इसी प्रकार चलती है जो दाईं तरफ पेट के निचले कोने से होकर जिगर के नीचे से होती हुई आमाशय की तरफ बढ़ती है। फिर वहां से दाईं तरफ को नीचे जाती है, फिर थोड़ा दाएं जाकर ऊपर को बढ़ती है, उसके बाद दाएं से नीचे मुड़कर सीधी गुदा से जा मिलती है।

पहले 5 से 6 बार मालिश का हाथ पीछे बताए अनुसार चलाना चाहिए। एक बार इस क्रिया से हाथ चलाने के बाद पेट पर थोड़ा घर्षण दें तथा झकझोरें, फिर दोबारा हाथ चलाएं। पेट की मांसपेशियों को मसलें और बेलन क्रिया का प्रयोग करें।

इस क्रिया के बाद अपने हाथ को पेट की नाभि पर रखें तथा वहीं से हाथ दाएं से बाएं चक्राकार घुमाएं। धीरे-धीरे उस चक्र को घुमाते हुए बड़ा करते जाएं तथा बड़ी आंत तक आ जाएं। बड़ी आंत पर भी यह चक्र चलाएं। यह क्रिया 2 से 3 बार करें। उसके बाद पेट को रगड़ें, इससे आपके हाथ के साथ रोगी का पेट भी ढीला हो जाता है।

अपने दाहिने हाथ की पांचों उंगुलियों को आपस मे मिलाकर नाभि पर रखें तथा रोगी की स्थिति के अनुसार कंपन देते हुए अपनी उंगुलियों को दबाव देकर नीचे पेट के अन्दर ले जाएं, फिर ढीला छोड़कर हल्के हाथ से दाएं से बाएं और चलाएं। उसके बाद दोबारा अपनी उंगुलियों को आपस में मिलाकर हाथ पसलियों के बीच में खाली जगह पर रखें। फिर दबाव देते हुए अपने हाथ को वहां से सीधे नीचे की तरफ ले जाएं और पेड़ू के निचले भाग पर आकर दबाव समाप्त करें।

यदि आप जरूरत महसूस करें तो अपने दूसरे हाथ का दबाव भी उस हाथ पर डाल सकते हैं। इस क्रिया का प्रयोग 2 से 3 बार ही करना चाहिए। हाथों का दबाव उतना ही रखें, जितना कि रोगी सहजता से सहन कर सके। बाद में पेट पर हल्की थपकी देकर झकझोर दें। बेलना, थपथपाना, दलना, और कंपन देना आदि क्रियाएं बारी-बारी से करते रहें।

पेट और छाती की मालिश के लिए :-

पेट और छाती की मालिश करने के लिए मालिश करने वाले को निम्न प्रकार की बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है जैसे-

पहला :- सबसे पहले पेट और छाती पर अच्छी तरह तेल लगा लें। उसके बाद नीचे दिखाई आकृति की भांति अपने दोनों हाथों को बड़ी आंत के ऊपर दाएं-बाएं रखकर दाएं से बाएं घुमाएं। पहले दाईं ओर का हाथ थोड़ा ऊपर ले जाएं, फिर बाई ओर का हाथ ऊपर ले जाएं। फिर वहां से वापस नीचे ले जाएं। ऐसा 4 से 5 बार करें। हाथों को धीरे-धीरे और दबाव के साथ चलाएं। पेट की मालिश उसी प्रकार करें।

दूसरा :- अपने हाथों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर पसलियों के बीच पेट के ऊपर से दबाव के साथ नीचे की तरफ लाएं। इस क्रिया में आप अपने हाथों को सीधे या लम्बे आकार में दोनों तरह चला सकते हैं।

तीसरा :- अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को नाभि यानी पेट के बीच के केन्द्र पर रखें तथा दाएं से बाएं चक्राकार चलाएं। फिर धीरे-धीरे इस चक्र को बड़ा करते चले जाएं।

चौथा :- अपने पेट पर थोड़ा दबाव डालें तथा नीचे से ऊपर, दाएं से बाएं धीरे-धीरे मसलें, झकझोरे तथा बेलन क्रिया और कंपन क्रिया करें।

पांचवा :- अपना दायां हाथ बाएं कंधे पर रखकर दबाव के साथ नीचे छाती की ओर लाएं, फिर बायां हाथ दाएं कंधे पर रखकर दबाव के साथ नीचे छाती पर लाएं। यह क्रिया भी कई बार करें।

छठा :- अब नीचे दिखाई गई आकृति की भांति अपने हाथ को छाती पर रखें तथ दबाव डालते हुएं अन्दर की ओर इस प्रकार लाएं कि आपके दोनों हाथ मिल जाएं। हाथों को ऊपर-नीचे करके छाती की मालिश करें और पसलियों पर घर्षण दें। फिर हाथों को अन्दर-बाहर करके पूरी छाती पर मालिश करें। हृदय और स्तनों पर गोलाकार मालिश करें।

पीठ की मालिश :-

कमर के ऊपर के भाग को पीठ के नाम से जाना जाता है। मालिश के द्वारा शरीर की थकावट को कम किया जा सकता है क्योंकि नाड़ी-जाल मेरुदण्ड (रीढ़ की हडि्डयों) से होकर हमारे शरीर में फैलता है, अत: पीठ की मालिश में इन नाड़ियों को शक्ति देकर शरीर की थकान दूर की जा सकती है।

  • पीठ की मालिश करने के लिए सबसे पहले पीठ पर तेल लगाएं तथा फिर मालिश शुरू करें। दलन और ताल से हाथ चलाना आदि क्रियाओं का प्रयोग करे। पीठ के ऊपरी भाग की नीचे की तरफ और नीचे वाले भाग की ऊपर की तरफ मालिश करें। ध्यान रहें कि नीचे से ऊपर की तरफ जो मालिश हो, वो दिल की तरफ होनी चाहिए।
  • बाद में रोगी की पीठ पर सवार हो जाएं तथा अपने दाएं हाथ को सीधा रीढ़ की हड्डी पर रखें। अब अपने दूसरे हाथ को भी पहले हाथ के ऊपर रख लें तथा रोगी की शारीरिक स्थिति के अनुसार अपने शरीर का दबाव डालकर हाथों को सीधा ऊपर की तरफ गर्दन तक ले जाएं। रोगी के लेटने की अवस्था में उसका माथा जमीन पर टिका होना चाहिए तथा मुंह नीचे की ओर और गर्दन सीधी होनी चाहिए। ऊपर बताई गई क्रिया को 2 से 3 बार किया जाना चाहिए। उसके बाद पीठ पर घर्षण दें तथा उसे झकझोरें तथा अपने हाथ और पीठ को ढीला छोड़ दें।
  • दूसरी क्रिया :- अपने दोनों हाथों को पीठ के नीचे की तरफ रीढ़ से मिलाकर दाएं-बाएं रखें। दोनों हाथों के अंगूठे इस प्रकार रहने चाहिए कि वे रीढ़ को मसलते हुए चल सकें। अंगुलियों तथा हथेलियों का दबाव एक साथ रहना चाहिए। अब अपने हाथों को दबाव के साथ ऊपर की तरफ फिसलाते हुए ले जाएं। हाथ कंधों तक ले जाकर, कंधों की मांसपेशियों को पकड़कर मसल लें। इस प्रकार मसलने पर रोगी को दर्द महसूस होता है। इस क्रिया में सिर सीधा रखने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि रोगी चाहे तो अपना सिर एक तरफ रख सकता है। इस मालिश में रोगी के बाजू मुड़े हुए, बगल से थोड़ा हटकर, जमीन पर टिके होने चाहिए और हथेलियां रोगी के मुंह के पास नीचे की तरफ रहनी चाहिए। इस प्रकार लेटने से पीठ की मांसपेशियों पर तनाव नहीं पड़ता है।
  • तीसरी क्रिया :- अपने दोनों हाथों को रीढ़ के दाएं-बाएं इस प्रकार रखें कि आपके दोनों अंगूठे रीढ़ पर मालिश करते हुए चल सकें तथा हथेलियां बगल की तरफ से पूरी पीठ की मालिश करते हुई कंधों तक जा सकें। हाथों को इस प्रकार रखने के बाद अपने शरीर का दबाव देते हुए ऊपर की तरफ मालिश करें। कंधों तक हाथों को कोहनियों तक ले जाएं। इस क्रिया को भी 3 से 4 बार करना चाहिए। एक बार क्रिया करने के बाद पीठ पर घर्षण करें और शरीर को झकझोरें। अपनी अंगुलियों को भी बार-बार रीढ़ की हड्डी (मेरुदण्ड) पर चलाना चाहिए।
  • चौथी क्रिया :-अपने दोनों हाथ रीढ़ की हड्डी के दाएं-बाएं रखें जिसे कि अंगुलियां नीचे की तरफ रहें तथा हथेलियां रीढ़ के ऊपर एक-दूसरे से मिली हुई हों। हाथों को ऐसा आकार देने के बाद पहले कुल्हों (नितंबो) पर हथेलियों की मदद से दलन-क्रिया का प्रयोग करें। उसके बाद अपने हाथों को शरीर के दबाव से बगल की तरफ फिसलाते हुए चलें। रीढ़ से बगल की तरफ मांसपेशियों को मसलते हुए हाथों को ऊपर की तरफ लेकर चलें।

उसके बाद रोगी की पीठ से उतरकर बाई तरफ पुरानी बताई गई आकृति की तरह बैठ जाएं। इस स्थिति में बैठने पर आपका हाथ पूरी सुगमता के साथ रोगी के सिर से पांव की तरफ चलेगा।

पांचवीं क्रिया :-

इस क्रिया में हाथ को रीढ़ के ऊपर लम्बे आकार में रखा जाता है। इस प्रकार हाथ रखने के बाद अपने शरीर के दबाव से हाथ को फिसलाते हुए ऊपर की तरफ ले जाएं। पेट के ठीक ऊपर एक झटके के साथ डालें, फिर आगे चलें और 4 से 5 इंच ऊपर जाकर फिर झटके के साथ दबाव डालें। ऐसे दबाव से रोगी की सांस तेजी से बाहर निकलेगी। हाथ को उसी प्रकार से आगे बढ़ाते हुए छाती के ऊपर ठीक पीठ पर जाकर दोबारा झटके से दबाव डालें, इससे फेफड़ें सिकुडेंगे तथा सांस बाहर निकलेगी। ऐसा करते हुए अपने हाथ गर्दन तक ले जाएं। नाभिचक्र, फुफ्फुस और पसलियों को इस प्रकार के दबाव से बहुत लाभ पहुंचता है।

अब पीठ की मांसपेशियों को मसलें तथा बेलन क्रिया का प्रयोग करें। खड़ी थपकी का प्रयोग पीठ, नितम्बों (कुल्हों), जांघों और पिण्डलियों पर करें। सभी अंगों पर अंगुलियों से ठोक दें तथा कटोरी थपकी, थपथपाना, मुक्की मारना, कंपन देना आदि क्रियाओं का प्रयोग बारी-बारी से करें।

कमर की मालिश के लिए :-

वैसे तो मानव शरीर में सभी अंगों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं होती हैं, परन्तु कमर की योग्यता को नजर अदांज नहीं किया जा सकता क्योंकि उठने, बैठने, झुकने आदि से सम्बंधित सभी क्रियाओं में कमर का उपयोग किया जाता है। इसके लिए कमर लचीली बनी रहनी चाहिए, मगर इसकी ही सबसे अधिक उपेक्षा की जाती है। इसी कारण से 10 में से 8 व्यक्ति कमरदर्द से पीड़ित रहते हैं। उन्हें किसी न किसी प्रकार की कमर में तकलीफ होती रहती है। केवल कमर की सही देखभाल न करने के कारण बाद में यही छोटी-छोटी तकलीफें भंयकर दर्द या बीमारी का रूप धारण कर लेती है, तब उन्हें अपनी कमर के बारे में ध्यान न देने का अर्थ समझ में आता है। कमर से शरीर का तंत्रिकातंत्र (नर्वस सिस्टम) जुड़ा रहता है इसलिए कमर की कमर की मालिश से पूरे शरीर को लाभ पहुंचता है।

पांव की मालिश के लिए :-

सामान्य रूप से तेल की मालिश की शुरूआत पांवों से करनी चाहिए। पहले पांवों की अंगुलियों पर अच्छी तरह तेल लगाएं फिर उन्हें अंगूठे से मसलें, जोड़ों को थोड़ा बहुत हिलाएं, ताकि उनमें हलचल सी हो जाए। पांव को पूरी तरह से ढीला छोड़ दें उसके बाद बारी-बारी से पांवों की 1-1 अंगुली को पकड़कर झटका दें। उसके बाद तलवे पर तेल की मालिश करें, फिर हाथ और अंगूठे की सहायता से पांव से ऊपर तेल मसलें। टखनों को गोलाई से मलें, गांठों को घुमाएं और जोड़ों को कसरत दें तथा उंगुलियों मे हल्की-हल्की ठोक लगाएं।

बिजली से मालिश

इस प्रकार की बिजली की मालिश बिजली के छोटे-बड़ें कई प्रकार के यंत्रों से की जाती है और इसका प्रयोग शरीर के अवयवों पर गहरा प्रभाव डालने के लिए किया जाता है। वैसे ये यंत्र बाजार में उपलब्ध हो जाते हैं, जो कि बहुत महंगे हैं। इन यंत्रों में शरीर के अलग-अलग अंगों की मालिश के लिए अलग-अलग पुर्जे लगे होते हैं। यंत्र में एक पुर्जे को उतारकर दूसरा पुर्जा लगाया जा सकता है। इस मालिश का उद्देश्य भी शरीर में रक्तसंचार तेज करना होता है, जिससे शरीर के अंगों को शक्ति मिल सके।

मालिश करने वाले बिजली के इन यंत्रों को `मसाजर´ या `वाइब्रेटर´ कहा जाता है। इन यंत्रों से मालिश करते समय बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है तथा इनसे मालिश करने के नियम भी अलग-अलग होते हैं। वैसे घर में प्रयोग किए जाने वाले `मसाजर´ बाजर में शीघ्र ही प्राप्त हो जाते हैं।

बिजली के इन यंत्रों में अलग-अलग आकार के 4 से 5 प्रकार के पुर्जे लगे होते हैं, जिनसे शरीर की मालिश की जाती है। एक पुर्जा कंघी की शक्ल का होता है, जिससे सिर की मालिश की जाती है। दूसरा पुर्जा स्पंज की तरह नर्म होता है, जिससे चेहरे की मालिश की जाती है। तीसरा पुर्जा जोड़ों और हडि्डयों पर चलाने के लिए होता है, जिसका आकार `टल्ली´ की तरह होता है। यह अंगों के कोमल और मांसपेशियों पर चलाने के लिए होता है। बिजली की मालिश लाभ तो देती है, साथ ही शरीर पर गहरा प्रभाव भी डालती है, कहने का अभिप्राय है कि जो लाभ हम हाथ की मालिश से प्राप्त कर सकते हैं वह बिजली के इन यंत्रों से नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि हाथ की मालिश द्वारा जो शक्ति तथा शुद्ध विचार हम रोगी को देते हैं वह शक्ति और विचार बिजली के ये निर्जीव यंत्र उसे नहीं दे सकते।

गुलाबी मौसम में मक्खन-सी त्वचा

गुलाबी मौसम में मक्खन-सी त्वचा

हमारी संपूर्ण त्वचा रोम छिद्रों द्वारा निर्मित होती है। त्वचा प्रतिपल इन छिद्रों के माध्यम से बाहरी वातावरण के संपर्क में रहती है व ऑक्सीजन, विटामिन आदि की पूर्ति करती रहती है। शरीर को कई प्रकार के रासायनिक तत्वों की पूर्ति त्वचा द्वारा ही होती है। जिनमें प्रमुख हैं।

विटामिन डी -सूर्य द्वारा
ऑक्सीजन -हवा द्वारा
मैग्नेशियम मैग्नीज -धूल कणों द्वारा
लोहा, जिंक, ब्रोमिन -मिट्टी द्वारा
12 तरह के रासायनिक तत्व -जल द्वारा

स्त्री व पुरुषों की त्वचा में अंतर होता है और इस अंतर का कारण हार्मोनों के स्राव में परिवर्तन होता है। हार्मोनों द्वारा मेलोनिन का स्राव त्वचा को सुंदर व मुलायम बनाने के लिए जिम्मेदार होता है। त्वचा को निम्न उपायों द्वारा चिकना व सुंदर बनाया जा सकता है।

त्वचा के लिए ऑलिव ऑइल सबसे फायदेमंद तेल है। मालिश करने पर यह तेल सीधे आंतरिक त्वचा में जाकर वहाँ उपस्थित तेल ग्रन्थियों के स्राव को बढ़ाता है। फलस्वरूप त्वचा धीरे-धीरे मुलायम व स्वस्थ होने लगती है।

कच्चे सलाद के ऊपर हल्का ऑलिव ऑइल डालकर मक्खन की तरह इस्तेमाल करने पर सीधे पेट में जाकर वहाँ की पीएच वैल्यू को संतुलित करता है और त्वचा को स्वस्थ बनाता है। जब तेल को आग पर पकाया जाता है तो उसमें उपस्थित विटामिन ई नष्ट हो जाता है। जबकि यही विटामिन ई त्वचा में कसाव पैदा करता है। इसलिए कच्चा ऑलिव ऑइल अधिक फायदेमंद है।

अत्यधिक सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग त्वचा को नुकसान पहुँचा सकता है। संपूर्ण शरीर पर ऑलिव ऑइल, गंधक नीम, चंदन व नमक से तैयार की गई मिट्टी का लेप त्वचा की ऑक्सीजन दर बढ़ाकर त्वचा में कसाव पैदा करता है। त्वचा पर मिट्टी का लेप सबसे स्वस्थ व सुंदर उपाय है।

हमेशा ताजे व ठंडे जल से नहाने पर शरीर को 12 प्रकार के रासायनिक तत्व प्राप्त होते हैं। पानी में उपस्थित हानिकारक रासायनिक तत्वों को त्वचा स्वयं बाहर कर देती है या शरीर उन्हें पसीने के द्वारा बाहर निकाल देता है। स्नान से पहले घर्षण स्नान त्वचा के रोम छिद्रों को खोलकर उन्हें सशक्त व मजबूत बनाता है ताकि स्नान करने पर त्वचा द्वारा पानी अधिक मात्रा में अंदर जा सके। स्नान के बाद तोलिए से शरीर को पोछना नहीं चाहिए शरीर का पानी यूँ ही सूखने दीजिए ताकि त्वचा पानी के साथ-साथ ऑक्सीजन भी ले सके।

आयरनयुक्त आहार खून में लौहतत्व की मात्रा बढ़ाकर त्वचा को कोमल बनाता है। आहार में फल व कच्ची सब्जी सबसे फायदेमंद हैं, जैसे -चुकंदर, गाजर, लीची, शहद, खीरा, टमाटर, पपीता, अनन्नास, लौकी आदि।

मालिश की कुछ विधियां

परिचय-

भारतीय प्राचीन ऋषि-मुनियों और साधु-संतों के बारे में यह धारणा मानी जाती है कि वे किसी भी रोगी को सिर्फ स्पर्श करके रोगमुक्त कर देते थे। ऐसा करना उनके लिए मामूली बात थी और यह बात है भी ठीक। ईसा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने असाध्य यानी बिगड़ी हुई बीमारी से ग्रस्त रोगियों को अपने हाथ के स्पर्श मात्र से रोगमुक्त किया था। यह भी मालिश का ही दूसरा रूप है।

बहुत-से महात्मा, साधु-संत दूसरों के रोगों को देखकर इतना द्रवित हो जाते थे कि उनका रोग अपने ऊपर ले लेते थे और स्वयं रोगी हो जाते थे। उदाहरण के लिए बाबर ने हुमायू का रोग अपने ऊपर ले लिया था, जिससे हुमायूं ठीक हो गया और बाबर रोगी होकर मर गया। जो साधु-संत वास्तविकता का ज्ञान प्राप्त कर चुके हों, त्यागी हो और केवल मानवता के भले के लिए जी रहे हों, वे ही इस प्रकार की चिकित्सा से लाभ उठा सकते हैं।

मालिश का भी यही सिद्धान्त है कि आप जितना ध्यान लगाकर रोगी के स्वास्थ्य की कामना करते हुए शान्त वातावरण में मालिश करेंगे, रोगी उतना ही जल्दी अपने रोग से छुटकारा पा लेगा। मन में अच्छी भावना हो तो आप शरीर के मुर्दा अंग को भी जीवित कर सकते हैं। मालिश करने वाला, मालिश के द्वारा अपनी शक्ति और भावनाओं का प्रभाव रोगी पर छोड़ता है और उसकी गर्मी खुद ग्रहण कर लेता है।

ऐसा आत्मबल कोई भी व्यक्ति अपने अन्दर पैदा करके अपने जीवन को भगवान को अर्पित कर नि:स्वार्थ भाव से जीवन व्यतीत कर सकता है। अगर आपके मन में केवल समाज की सेवा करना ही हो, किसी से कुछ लेने की आशा न हो, तो आप भी ऐसा आत्मबल प्राप्त कर सकते हैं। यदि आप जीवन के किसी कोने में भटके, आपके मन में स्वार्थ की भावना आ गई तो वहीं आपको असफलता का सामना होता हैं। ऐसे में यदि आपके स्पर्श से किसी रोगी को लाभ हुआ तो वह मनोवैज्ञानिक होगा, आत्मिक नहीं। इससे रोगी का रोग कुछ समय के लिए तो ठीक हो जाएगा, परन्तु हमेशा के लिए नहीं। कुछ पर इसकी प्रतिक्रिया बुरी भी होगी और कुछ पर कोई प्रभाव नहीं पडे़गा। हमारे कुछ रोग ऐसे भी होते हैं, जो मन से पैदा हो जाते हैं या अगर कोई रोग नाममात्र का हो भी जाता है तो हम वहम में पड़कर उसका भयानक रूप बना देते हैं और अधिक दु:खी हो जाते हैं, जबकि हकीकत यह है कि बात कुछ और ही होती है। ऐसा भी देखा गया है कि कई बार रोगी अपने मामूली रोग को बड़ा भयानक रोग समझकर धबरा जाता है तथा उस पर दहशत सवार हो जाती है, जिस कारण उसकी मृत्यु तक हो जाती है। हमारी इसी मानसिक कमजोरी के कारण भी कुछ रोग भयंकर रूप धारण कर लेते हैं।

पिछले 60-70 साल से सम्मोहन द्वारा रोगी को प्राकृतिक रूप से नींद में लाकर चिकित्सा करने की एक नई चिकित्सा-पद्धति प्रकाश में आई है जिसका नाम है सम्मोहन क्रिया (हिप्नाटिज्म)। यह भी मालिश का ही एक रूप है। इसमें रोगी पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालकर उसे केवल विचारों से ही ठीक किया जाता है। यह स्पर्श करके रोगों को ठीक करने की विधि के समान है। स्पर्श में आत्मिक बल से रोग दूर किए जाते हैं। परन्तु सम्मोहन द्वारा चिकित्सा करने वालों में वह आत्मिक बल नहीं होता और वे प्राकृतिक रूप से प्राप्त अपना बल दिखाता है। दूसरों पर अपनी बातों का प्रभाव डालते हैं तथा अपनी आंखों से कृत्रिम तेज पैदा करके रोगी को अपने मोह जाल में फंसा लेते हैं।

वैसे सम्मोहन से चिकित्सा करने वालों ने भी मालिश को अपनी चिकित्सा पद्धति में स्थान दिया है। वे मालिश को सम्मोहन के मुकाबले कम अच्छा मानते हैं परन्तु फिर भी मालिश की उपयोगिता को स्वीकार करते हैं।

वास्तव में देखा जाए ताप सम्मोहन-चिकित्सा रोगी की मनोभावना पर अपनी भाव-भंगिमा और अपनी आकृति के आकर्षण का प्रभाव डालती है। इससे रोगी वही सोचने लगता हैं, जो चिकित्सक उससे चाहता है। कुछ रोगी राहत भी महसूस करते हैं, परन्तु उनका यह प्रभाव अधिक कमजोर मन वाले, भ्रंम में पडे हुए और डरपोक रोगियों पर अधिक पड़ता हैं। साहसी, बलशाली और आत्मविश्वासी रोगियों पर इस पद्धति का प्रभाव नहीं के बराबर पड़ता है और इसके ठीक विपरीत मालिश का प्रभाव हर प्रकार के मनुष्य पर पड़ता है। मालिश चाहे तेल से की जाए या पॉउडर से, मालिश बिजली से हो या पानी से, वह अपना प्रभाव अवश्य छोड़ती है। मालिश द्वारा हम अपने सारे रोग दूर करके स्वस्थ और सुन्दर शरीर प्राप्त कर सकते हैं। इससे जीवन में उत्साह बढता है और व्यक्ति दिमागी रूप से पहले की अपेक्षा बेहतर होता जाता हैं।

मालिश करने की विधि-

मालिश करते समय उंगलियों के पोरों यानी ऊपरी भाग से मालिश करना ठीक नहीं है। सबसे पहले तेल को हल्का गर्म करके बालों को थोड़ा-थोड़ा हटाकर सिर की पूरी त्वचा पर लगा लें। दोनों हाथों के अंगूठे को गुद्दी के गड्ढे पर टिकाएं। उंगलियों को माथे तक फैलाकर रखें। फिर उंगलियों को अपने स्थान पर टिकाते हुए अंगूठे को गोलाकार रूप में घुमाते हुए कनपटी तक लाएं। फिर उंगलियों को सिर के मध्य भाग में सीधा खिसकाते हुए कनपटी तक ले जाएं। इस प्रकार नीचे गर्दन से लेकर ऊपर सिर तक की मालिश करें।

  • उंगलियों को एक-दूसरे में फंसाए और सिर पर हल्का-सा दबाव डालते हुए मालिश करें। सिर के पिछले भाग में इसी प्रकार अंगूठों को ऊपर से नीचे खिसकाते हुए 10 बार मालिश करें।
  • उंगलियों को सिर पर टिकाएं। कोहनी पर बाजुओं को ढीला छोड़कर उंगलियों से दबाव डालते हुए हाथों द्वारा कम्पन करें। रक्त संचार तेज करने के लिए यह सबसे उत्तम तरीका है।
  • हथेलियों को सिर के दोनों किनारों और कनपटियों पर रखकर कम्पन्न करते हुए तेजी से रगड़ें। इस तरह की मालिश से तनाव दूर होता है।
  • उंगलियों को सिर पर सीधा खड़ा रखकर तेजी से सिर के अगले, पिछले और बीच वाले भाग में चलाएं।
  • तेल बालों की जड़ों तक पहुंचे तथा बन्द रोम-कूप खुल जाएं, इसके लिए गर्म पानी में तौलिया भिगोकर निचोड़ें तथा सिर पर लपेट लें। तौलिए को देर तक गर्म रखने के लिए सिर पर प्लास्टिक की टोपी भी पहन सकते हैं।

जानकारी : ठीक ढंग से मालिश करने पर बाल स्वस्थ और चमकदार बनते हैं तथा उनका गिरना और टूटना भी कम हो जाता है।

आंखों की मालिश

आंखों के भीतरी और ऊपरी कोनों से आंखों के चारों ओर बाहर की ओर हल्की मालिश करें। हाथ की तीसरी उंगली का प्रयोग करते हुए नाक के दोनों किनारों और कनपटी पर हल्का दबाव देते हुए मालिश करें। आंख के आस-पास की त्वचा अत्यंत कोमल होती है, अत: वहां की त्वचा को खींचना नहीं चाहिए। नाक से आरम्भ करके ऊपर की ओर भौहों पर चुटकी काटते हुए मालिश करें। तर्जनी और अंगूठे की सहायता से भौंहों पर हल्की ऐंठन दें। 5 बार ऐसा करने से आंखों की थकान दूर होती हैं। भौहों पर सीजर मालिश से भी आंखों की थकान दूर होती है।

मुंह, नाक और गालों की मालिश

परिचय-

चेहरे के दोनों ओर हाथों से हल्का दबाव डालते हुए चेहरे पर ऊपर माथे तक मालिश करें। चेहरे पर दोनों हाथों से हल्का दबाव डालते हुए बालों के किनारे तक, भौंहों के बालों को उंगलियों से दबाकर उठाते हुए नाक और मुंह के दोनों छोरों तक लाएं। उंगलियों को होठों पर फेरते हुए ठोड़ी, गालों पर तथा मुंह के कोनों से होते हुए नाक तक मालिश करें और भौहों पर हाथ फेरें। इस प्रकार की मालिश से चेहरे की रौनक बढ़ती हैं।

चेहरे और माथे पर पैटिंग मालिश

मालिश की यह एक हल्की क्रिया है, जो ठोड़ी से कानों की लौ तक, मुंह से कान और माथे तक की जाती है। चेहरे के इन भागों की थपथपाकर मालिश की जाती है।

फुलफेस ब्रेस

अपने हाथों की हथेलियों को इस प्रकार गालों पर रखें कि उंगलियां ठोड़ी को नीचे तक ढक लें। अब चेहरे पर हल्का दबाव बनाते हुए हाथों को ऊपर की ओर लाएं।

ठोड़ी तथा गालों पर चुटकी काटना

ठोड़ी और गालों की शिराओं तथा मांसपेशियों को चुटकी काटते हुए ऊपर उठाएं तथा फिर हल्का सा दबाते हुए मालिश करें।

क्रिस क्रॉसिंग

  • अपने दोनों हाथों को कमर के दोनों ओर रखें। दोनों हाथ के अंगूठे शरीर के ऊपर न होकर दूसरी दिशा में होने चाहिए।
  • दोनो हाथों से कमर पर हल्का दबाव डालते हुए ऊपर की ओर खींचें। कमर को थोड़ा खींचते हुए हाथों को पीठ पर फिसलाएं।
  • अब हाथों को एक-दूसरे के पास रखें। अब एक हाथ को ऊपर तथा दूसरे हाथ को नीचे की ओर ले जाते हुए मालिश करें। साइड में खिंचाव रखते हुए मालिश करें तथा पीठ पर हल्के हाथों से स्पर्श करें। इस प्रकार, नीचे और पीठ पर हाथ फिराकर मालिश करने का क्रम कुछ देर जारी रखें।

स्ट्रोकिंग से मालिश समाप्त कैसे करें

मालिश को खत्म करते समय भी स्ट्रोकिंग का तरीका प्रयोग में लाएं। माथे के मध्य भाग से आरम्भ कर कनपटियों तक लाएं। इसके बाद चेहरे पर मालिश करते हुए कानों के नीचे गर्दन के दोनों ओर तथा नाक के दोनों किनारों से होकर गालों तथा फिर ठोड़ी पर मालिश करते हुए गर्दन पर चारों ओर मालिश करें। मालिश खत्म करने के बाद चेहरे पर बची हुई चिकनाई साफ कर दें। एस्ट्रेंजेन्ट या स्किन टॉनिक में रूई भिगोकर चेहरे पर थपकाने से त्वचा मुलायम तथा चमकदार बन जाती है। मालिश क्रिया के बाद स्टीमिंग या भाप का भी प्रयोग कर सकते हैं। स्टीमिंग के लिए गर्म तौलिया या जड़ी-बूटियां मिले हुए गर्म पानी के बर्तन पर झुककर भाप लें। यदि आपकी त्वचा तैलीय है तो आप स्टीमर का प्रयोग कर सकती हैं। स्टीमिंग से त्वचा के रोमछिद्र खुल जाते हैं ओर त्वचा की गदंगी बाहर निकल जाती है। रक्तसंचार (खून का बहाव) बढ़ने से पसीना आता है तथा शरीर के दूषित तत्व बाहर निकल जाते हैं।

ब्यूटी पार्लर में ब्यूटीशियन द्वारा समय-समय पर मालिश कराने से लाभ अधिक होता है क्योंकि सौन्दर्य चिकित्सक गर्दन, छाती तथा पीठ पर अपने हाथों या इस काम के लिए इस्तेमाल होने वाले तकनीकी उपकरणों यानी मशीनों के द्वारा ऐसी क्रियाएं करते हैं जिन्हें खुद करना सम्भव नहीं होता।

अच्‍छा-अच्छा सोचें, स्वस्थ रहें

अच्‍छा-अच्छा सोचें, स्वस्थ रहें

सकारात्मक लोगों के साथ रहें- सबसे ज्यादा जरूरी है आप के आस-पास के लोग सकारात्मक सोच वाले हों।

दयालुता- इसकी शुरुआत भी आप अपने आप से करें। खुद के प्रति दयालु रहें आपकी सोच पॉजिटिव हो जाएगी।

विश्वास- जी हाँ, फरेब की इस दुनिया में विश्वास के साथ चलें। आपका विश्वास आपको दिशा देगा।

प्रेरणा लें- जिस व्यक्ति का काम अच्छा लगे उससे प्रेरणा लें। अखबार के अलावा किताबें पढ़ने की आदत डालें।

स्माइल- सबसे अधिक जरूरी है आपका मुस्कुराना।

रिलैक्स्ड रहें- दिन भर में पचासों ऐसे कारण सामने आते है जिनसे खीज होती है, स्वस्थ रहने के लिए बेहतर है कि यह खीज आपके साथ क्षण भर ही रहे। तुरंत नियंत्रण पाने की कोशिश करें।

ध्यान बाँटें- जो बात आपको ज्यादा परेशान कर रही है उससे अपना ध्यान हटा कर उन बातों की तरफ रूख कीजिए जो आपको अच्छी लगती है।

प्यार के बारे में सोचें- हम सभी अपने जीवन में एक बार प्यार अवश्य करते हैं। स्वस्थ रहने के लिए वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है प्यार की मधुर स्मृतियाँ आपको ताकत देती है। याद रहे, प्यार की अच्छी और सुखद बातें ही सोचें ना कि तकलीफदेह बातें।

मालिश के कुछ नियम

परिचय-

मालिश के बारे में अक्सर लोगों की सोच होती है कि शरीर के किसी अंग पर तेल लगाकर रगड़ लिया और हो गई मालिश लेकिन अभी तक वे यह नहीं समझ पाए कि मालिश का कोई वैज्ञानिक रूप भी हो सकता है तथा इससे कई तरह के रोगों को भी ठीक किया जा सकता है। तेल को शरीर पर लगाकर रगड़ देना ही मालिश नहीं होती है। यदि हम मालिश के विज्ञान को समझकर तथा उसके नियमों का पालन करके मालिश करें तभी मालिश का पूरा-पूरा लाभ उठाया जा सकता है। नहीं तो मालिश करने का कोई फायदा नहीं होता। ध्यान रहें कि जब हम किसी अन्य व्यक्ति से मालिश करवाते है तो उस व्यक्ति शरीर की शक्ति और गर्मी हमारे शरीर में पहुंचती है। कंपन क्रिया से मालिश करने वाले की शक्ति सबसे अधिक नष्ट होती है क्योंकि इसमें पूरे शरीर को संतुलित रखना पड़ता है और मालिश करने वाले की शक्ति उसकी अंगुलियों से निकलकर रोगी के शरीर में प्रविष्ट होती है।

मालिश करते समय हमें ध्यान रखने वाले कुछ जरूरी नियम-

  • मालिश करने के दौरान मालिश करने वाले के अन्दर दिमागी प्रवृत्ति और एकाग्रता होनी चाहिए क्योंकि मालिश करने वाला जितना शान्त और ध्यान करने वाली प्रवृत्ति का होगा वह उतना ही लाभ रोगी को दे सकेगा। यदि एकाग्र मन से मालिश की जाए तो शरीर के बेजान से बेजान भाग को भी जीवित किया जा सकता है। शुद्ध विचारों को मन में रखकर मालिश करने से आश्चर्यजनक लाभ उठाया जा सकता है। मां की ममतामयी थपथपाहट से बच्चे को असीम आनन्द मिलता है और जब बच्चें को ऐसा सुख मिलता है तो वह आराम से सो जाता है।
  • यदि मालिश करने वाले के विचार शुद्ध नहीं होते तो उसका लक्ष्य सिर्फ पैसे बटोरना होता है और इससे रोगी को किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं होता तथा उसे लाभ की अपेक्षा हानि ही होती है।
  • मालिश करने के लिए सबसे पहले मालिश का स्थान स्वच्छ और शान्त होना चाहिए। साथ ही वो स्थान खुला और वहां पर प्रकाश के आने का रास्ता भी होना चाहिए। मालिश करते समय रोगी से बिल्कुल भी बात नहीं की जानी चाहिए। यह आवश्यक है कि मालिश करने वाला रोगी के शरीर के जिस भाग पर मालिश कर रहा हैं, उसका ध्यान उसी भाग पर रहना चाहिए।
  • मालिश रोगी को लिटाकर की जानी चाहिए। रोगी को जमीन पर चटाई, गद्दा आदि बिछाकर या बड़ी मेज आदि पर लिटाकर मालिश करनी चाहिए। मालिश चारपाई आदि पर नहीं करनी चाहिए। अगर रोगी स्वयं अपनी मालिश करता है तो यह उसे हमेशा बैठकर करनी चाहिए खड़े होकर नहीं।
  • मालिश करने वाले का शरीर और हाथ-पांव बिल्कुल ढीले होने चाहिए। मालिश करने वाले के हाथ जितने ढीले होगें, रोगी पर उसका उतना ही अच्छा प्रभाव पड़ेगा। मालिश कराने वाले को भी शवासन में अपने शरीर को ढीलेपन की अवस्था यानी अचेतन स्थिति में रखना चाहिए।
  • मालिश नीचे से शुरु करके ऊपर हृदय की तरफ की जानी चाहिए। मालिश के द्वारा शरीर की नसों को शक्ति मिलती है तथा उन्हे तेज चलने के लिए प्रभावित करती हैं, जिससे वे दूषित रक्त को ले जाए तथा वहां से स्वच्छ रक्त धमनियों द्वारा शरीर को पहुंचाए, ताकि शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आए, परन्तु यह नियम ठण्डी मालिश में लागू नहीं होता। ठण्डी मालिश में मालिश सिर से आरम्भ की जाती है और हाथों को ऊपर से नीचे की ओर लाते हैं। ठण्डी मालिश धमनियों को तेज चलाने में सहायता करती है।
  • मालिश हमेशा धीरे-धीरे और दबाव डालकर करनी चाहिए। मालिश में आपके हाथ का जितना सन्तुलन रहेगा तथा जितनी आपकी क्रियाएं रोगी की शक्ति के अनुसार दबाव डालकर होंगी, उतना ही जल्दी रोगी को लाभ मिलेगा।
  • कमजोर रोगी की आधे घण्टे से ज्यादा समय तक मालिश नहीं की जानी चाहिए, परन्तु एक स्वस्थ व्यक्ति की 45 मिनट से 1 घण्टे तक मालिश की जा सकती है। मालिश करते समय रोगी की अनुकूलता को भी ध्यान में रखना चाहिए। यदि रोगी अधिक समय तक न लेट सके, या लेटे-लेटे थक जाए या फिर वह घबराहट का अनुभव करने लगे या उसका मन मालिश में न लगे तो भले ही समय पूरा हुआ हो या नहीं उसकी मालिश करना तुरन्त बन्द कर देनी चाहिए। चाहे आपने उसकी मालिश करनी अभी-अभी शुरू ही क्यों न किया हो, उसके बाद रोगी को थोड़ा विश्राम देकर और स्नान कराकर लिटा देना चाहिए।
  • सामान्य तौर पर लोग अपनी मालिश तेल से करते हैं। तेल से मालिश ही सबसे अच्छा माना जाता है। वैसे मालिश पॉउडर और सूखे हाथ चलाकर भी की जाती है। पानी के टब में बैठकर किसी तौलिए से रगड़कर भी शरीर की मालिश की जाती है। बेसन या आटे का उबटन लगाकर भी मालिश की जाती है परन्तु विभिन्न प्रयोगों से मालिश के अलग-अलग तरीके हैं जिन्हें अच्छी तरह समझकर तथा उचित ढंग अपनाकर ही मालिश करनी चाहिए।
  • मालिश करने के लिए सरसों या नारियल का तेल सबसे अच्छा माना जाता है। इन तेलों का अच्छा लाभ लेने के लिए इनको किसी शीशी में बन्द करके कुछ दिन तक सूरज की रोशनी में रखना चाहिए। इससे सूरज की किरणों का प्रभाव तेल में मिल जाता है जिससे तेल का लाभ और अधिक बढ़ जाता है।
  • शारीरिक रूप से पीड़ित रोगी की मालिश यदि मछली के तेल से की जाए तो रोगी को बहुत लाभ पहुंचता है। जैतून के तेल की मालिश भी लाभदायक होती है। बादाम रोगन भी कमजोरी व्यक्तियों के लिए काफी अच्छा होता है। बादाम रोगन सिर की मालिश में भी विशेष लाभदायक होता है वैसे सिर की मालिश के लिए कद्दू रोगन भी अच्छा माना जाता है परन्तु ये तेल सरसों के तेल की अपेक्षा बहुत महंगे पड़ते हैं।
  • मालिश में यह आवश्यक है कि मालिश करने वाले का स्वास्थ्य अच्छा हो। यदि मालिश करने वाला किसी रोग से पीड़ित हो तो उससे कभी भी मालिश नहीं करवानी चाहिए। कमजोर व्यक्ति भी मालिश के लिए सही नहीं होता हैं। अच्छा हो यदि मालिश कराने वाले को मालिश करने वाले का स्वभाव पता हो कि वह क्रोधी है या शान्त स्वभाव वाला, लालची है या सन्तोष करने वाला, मीठे स्वभाव वाला है या कड़वे स्वभाव वाला, वासनामयी है या संयम करने वाला, ईश्वर पर विश्वास करता है या नहीं इन सभी बातों का मालिश कराने वाले पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
  • यदि रोगी कमजोर है तो मालिश करते समय उसे लिटाने के लिए नीचे गद्दा बिछाकर ही उसे लिटाना चाहिए और यदि रोगी मोटापे से पीड़ित है तो दरी, चादर और रबड़ क्लॉथ बिछाना ही उपयुक्त है। यदि रोगी की मालिश घास पर करनी है तो वहां चटाई ही काम दे सकती हैं। लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि ये सभी वस्तुएं साफ होनी चाहिए।
  • रोगी को मेज पर लिटाकर मालिश करना सबसे अच्छा होता है क्योंकि इससे मालिश करने वाले के हाथ आसानी से चलते हैं। मालिश करने के लिए मेज का आकार इस प्रकार का होना चाहिए। लम्बाई 6 फुट, चौड़ाई 30 इंच, ऊंचाई 2 से सवा 2 फुट। मेज का 2 फुट ऊपर का फट्टा कब्जों से लगा रहना चाहिए ताकि वह ऊपर उठ सके जिसका सहारा लेकर रोगी बैठना चाहे तो आसानी से बैठ सके।
  • मालिश करने वाले को मालिश करने से पहले किसी क्रिया द्वारा अपने हाथों को गर्म कर लेना चाहिए क्योंकि गर्म हाथ नर्म रहते हैं जिससे मालिश करते समय रोगी को आराम मिलता है। ठण्डे हाथों से सिर्फ मुख की मालिश करनी चाहिए और वह भी तब जब आप बाकी शरीर की मालिश कर चुके हो। उस समय यदि आपके हाथ गर्म हों तो उन्हें ठण्डे पानी में डालकर ठण्डा कर ले।
  • मालिश पैर की अंगुलियों और टांगों से आरम्भ करके ऊपर की ओर करनी चाहिए। पहले टांगों की, फिर दोनों बाजुओं की, उसके बाद पेट और छाती की मालिश करनी चाहिए। इसके बाद पीठ की मालिश करे और अन्त में सिर तथा चेहरे की मालिश करने से लाभ मिलता है। ध्यान रहें कि यदि रोगी रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) रोग से ग्रस्त है तो उसकी मालिश ऊपर से नीचे की तरफ करनी चाहिए और यह मालिश बहुत धीर-धीरे और सावधानी के साथ करनी चाहिए।
  • यदि रोगी बहुत कमजोर या तपेदिक (टी.बी.) रोग से पीड़ित हो तो उसकी मालिश तेल से ही करनी चाहिए। पॉउडर के द्वारा सूखीया पानी से मालिश नहीं करनी चाहिए और मालिश बहुत धीरे-धीरे से ही की जानी चाहिए।
  • मालिश के बारे में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि यदि ठण्ड का मौसम है तो मालिश का स्थान गर्म होना चाहिए और यदि मौसम गर्मी का है तो मालिश का स्थान ठण्डा होना चाहिए। जिस कमरे में मालिश की जा रही हो उस कमरे में ताजी हवा के आने-जाने का प्रबंध अवश्य होना चाहिए। गर्म कमरे से कहने का अभिप्राय यह है कि कमरे की सब खिड़कियां और दरवाजे बन्द होने चाहिए। यदि रोगी धूप बर्दाश्त करने की शक्ति रखता हो तो अच्छा रहेगा कि उसकी मालिश धूप में ही की जाए क्योंकि धूप में मालिश करने से सबसे अधिक लाभ होता है। मालिश करते समय इस बात का भी विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि कहीं रोगी को सर्दी तो नहीं लग रही या धूप तेज तो नहीं है।
  • गर्मियों के मौसम में सुबह-सुबह हल्की धूप में मालिश उचित है, नहीं तो मालिश छाया में या कमरे में करें जहां हवा अच्छी आती हो।
  • मालिश पूरी हो जाने के बाद रोगी को स्नान कराना बहुत अच्छा होता है। यदि रोगी के कमजोर होने के कारण उसे स्नान कराना सम्भव नहीं है तो तेल से उसकी मालिश न करके पॉउडर से सूखी मालिश करनी चाहिए। यदि ठण्डे पानी से स्नान कराना सम्भव नहीं हो तो रोगी को गर्म पानी से ही स्नान कराना चाहिए।
  • जहां तक हो सके रोगी को स्नान हमेशा ताजे पानी से ही कराना चाहिए क्योंकि इससे शरीर में ताजगी आती है।
  • यदि रोगी गर्म पानी से स्नान करना चाहता हो तो उसे बन्द कमरे में स्नान कराना चाहिए। बाद में थोड़े-से ठण्डे पानी से स्नान कराकर या फिर गीले तौलिए से अच्छी तरह स्पंज कराकर, फिर सूखे तौलिए से उसके शरीर को पोंछकर और सुखाकर आवश्यकतानुसार उसे कपड़ा ओढ़ाकर 15 मिनट के लिए सुला देना चाहिए। इसके बाद उसे कुछ खाने को देना चाहिए।
  • रोगी के अलावा स्वस्थ व्यक्ति भी मालिश के बाद गर्म पानी से स्नान कर सकता है, यदि उसकी गर्म पानी से स्नान करने की इच्छा हो रही हो, परन्तु बाद में ठण्डे पानी से भी स्नान आवश्यक है क्योंकि इससे शरीर खुलता है तथा हवा या सर्दी लगने का भी डर नहीं रहता। स्नान के बाद सूखे तौलिए से शरीर को पोंछकर सुखा लेना चाहिए।
  • रोगी के शरीर को किसी कपड़े से ढककर मालिश करनी चाहिए। यदि सर्दी अधिक हो, तो उसे कंबल भी उढ़ाया जा सकता है। मालिश में शरीर के जिस भाग पर मालिश की जा रही हो, केवल उसी अंग को खुला रखने की आवश्यकता होती है।
  • यदि रोगी व्रत यानी उपवास रखे हुए है तो उसके लिए तेल की मालिश अधिक लाभदायक रहती है। तेल की मालिश से शरीर को त्वचा द्वारा सीधे खुराक पहुंचती है। इससे रोगी को अधिक कमजोरी अनुभव नहीं होती और उसकी शारीरिक शक्ति बनी रहती है। उपवास का भी रोगी को पूरा-पूरा लाभ मिलता है।
  • जो व्यक्ति मालिश करा रहा हो, मालिश के दौरान उसे गहरी लम्बी सांसे लेनी चाहिए, ताकि शरीर का जो विकार युक्त रक्त शिराओं द्वारा हृदय से फेफड़ों में आता है, वह शुद्ध होकर शरीर में पूरे वेग से जाए, जिससे शरीर में चेतना पैदा हो जाए।
  • मालिश सुबह स्नान से पहले या रात को सोने से पहले कराना लाभदायक होता है। वैसे मालिश का कोई निश्चित समय नहीं है वह किसी भी समय कराई जा सकती है परन्तु ध्यान रहे कि मालिश करवाते समय पेट भरा नहीं होना चाहिए। यदि आप स्नान नहीं करना चाहते हैं, तो रात के समय मालिश कराकर स्पंज करके भी सो सकते हैं। रात के समय मालिश सूखी या पॉउडर से करनी चाहिए। विशेष स्थिति में आप रात को तेल से मालिश कराकर स्पंज करके भी सो सकते हैं। रात को मालिश करवाना विशेषत: अनिद्रा (नींद का न आना), नाड़ी-दौर्बल्य आदि में बहुत लाभदायक होती है। मालिश करवाने के बाद रोगी को तुरन्त ही नींद आ जाती है।
  • यदि रोगी ने कुछ खाया-पिया हुआ हो तो ऐसे में उसके पेट की मालिश नहीं करनी चाहिए। भोजन करने के बाद पेट की मालिश कराने से पेट में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होने की संभावना रहती हैं, जिससे लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है।
  • बुखार या सूजन होने पर मालिश कभी भी नहीं करानी चाहिए।
  • रोगी को जिस चादर, चटाई या रबड़ क्लॉथ पर लिटाकर मालिश की गई हो, उसे मालिश करने से पहले डिटॉल के पानी मे कपड़ा भिगोकर अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।
  • मालिश करने वाले के हाथ का दबाव, बच्चा, युवा, मोटा, पतला, स्त्री, पुरुष, निर्बल और हष्ट-पुष्ट आदि पर अलग-अलग ढंग का होना चाहिए। उनकी स्थिति के अनुसार ही मालिश करने वाले को अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। बच्चों की अधिक दबाव से तथा स्वस्थ व्यक्तियों की सामान्य ढंग से मालिश करनी चाहिए।
  • मालिश करने वाले को मालिश करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि वह किस अंग की मालिश कर रहा है और क्यों कर रहा है तथा वह इस मालिश के द्वारा क्या लाभ पहुंचा रहा है। यदि मालिश करते समय ऐसे विचार मन में होंगे तो रोगी को अवश्य लाभ मिलेगा।
  • मालिश करने के बाद मालिश करने वाले को अपने हाथ शुद्ध मिट्टी या साबुन से अच्छी तरफ साफ करने चाहिए। मालिश करने के कपड़े भी अलग होने चाहिए जिनका प्रयोग भोजन करने और अन्य कार्यों में बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए। इससे रोगी के शरीर के मैल, कीटाणु और अन्य विकार उसके शरीर पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकेंगे तथा उसे किसी प्रकार का रोग होने की संभावना नहीं रहेगी। मालिश के बाद डॉक्टर या मालिश करने वाले व्यक्ति को स्नान कर लेना चाहिए ताकि शरीर में पैदा हुई गर्मी शान्त हो जाए।
  • मालिश करने वाले को एक बात का ध्यान रखना चाहिए एक रोगी की मालिश करने के बाद उन्हीं हाथों से किसी अन्य रोगी की मालिश नहीं करनी चाहिए। अपने हाथों तथा बाजुओं को अच्छी तरह धोने से पहले किसी अन्य रोगी को हाथ तक नहीं लगाना चाहिए, चाहे मालिश सूखी, तेल से या पॉउडर से ही क्यों न की गई हो। इससे जहां रोगों के कीटाणुओं से छुटकारा मिलेगा, वहीं आप दूसरे रोगियों को भी एक-दूसरे के विकारो से बचाने की आवश्यकता होती है।

स्त्रियों की मालिश के आवश्यक नियम :-

  • गर्भावस्था और मासिकधर्म के दिनों में पेट तथा गर्भाशय को छोड़कर पूरे शरीर की मालिश की जा सकती है।
  • स्त्री की मालिश केवल स्त्री से ही कराई जानी चाहिए क्योंकि स्त्री से वह बिना किसी संकोच के अपने पूरे शरीर को ढीला छोड़कर मालिश करा सकती है। जरूरत पड़ने पर स्त्री का पति भी उसकी मालिश कर सकता है।
  • स्त्रियों की छाती की मालिश विशेष ढंग से करनी चाहिए। उनके स्तनों को चारों तरफ से धीरे-धीरे हाथ से घर्षण करना चाहिए।
  • बच्चे के जन्म के बाद स्त्री को दाई से या किसी अन्य स्त्री से मालिश अवश्य करानी चाहिए क्योंकि प्रसव के बाद स्त्री का पूरा शरीर ढीला पड़ जाता है तथा उसमे कमजोरी आ जाती है। गर्भावस्था में विशेषकर पेट, कमर और जांघों की त्वचा फैल जाती है। मालिश से उसकी त्वचा को उत्तेजना प्राप्त होती है तथा वह त्वचा पुन: अपनी स्वाभाविक अवस्था में आ जाती है। इससे अंगों में मजबूती आती है तथा कमजोरी भी जल्दी दूर हो जाती है।
  • स्त्रियों के हिस्टीरिया, बांझपन आदि रोगों में मालिश बहुत ही लाभदायक होती है।

स्त्रियों कें पेट, पेड़ू और वक्ष की मालिश :-

त्वचा पर अत्याधिक खिंचाव पड़ने के कारण उस पर निशान पड़ जाते हैं। इसी कारण से त्वचा का लचीलापन समाप्त हो जाता है। मोटापा बढ़ने के बाद जब कम होता है या बच्चा पैदा होने के बाद महिलाओं के पेट, पेड़ू पर धारीदार निशान पड़ जाते है और त्वचा लटकी हुई दिखाई पड़ती है।

त्वचा पर निशान केवल ऊपरी तौर पर नहीं बल्कि उसके नीचे के लचीले तंतुओं के चटकने से पड़ते है। ये निशान पेट के अलावा स्तनों, जांघों और बांहों के ऊपरी हिस्सें में भी पड़ते है। इस प्रकार के निशानों को समाप्त करने के लिए प्राकृतिक उपचार का इस्तेमाल किया जा सकता है। पेट और स्तनों पर प्रीबॉथ क्रीम की मालिश करना फायदेमन्द होता है। मालिश निशान पड़ने से पहले ही शुरू कर देनी चाहिए। इससे त्वचा की कोमलता और लचक बनी रहती है और त्वचा खुद अपनी सुरक्षा करने में सक्ष्म होती है। प्रसव होने के बाद भी मालिश कुछ महीने जारी रखनी चाहिए। मालिश के लिए ऐसी क्रीम का चुनाव करना चाहिए जिसमें ऐसे तत्व हों जो आसानी से त्वचा में घुल-मिल जाएं। हल्दी, नींबू और खुबानी के तत्व इसके लिए लाभकारी सिद्ध हुए है। खुबानी का त्वचा पर एस्ट्रिंजेंट के समान प्रभाव होता हैं। यह त्वचा को नमी प्रदान करने में भी सहायक सिद्ध हुई है। गर्भावस्था के अखिरी दिनों में त्वचा रूखी पड़ जाती है और उसमें खुजली व जलन बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में खुजली करने से त्वचा को और नुकसान पहुंच सकता है। प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग से खुजली, जलन आदि समस्याओं से मुक्ति मिलती है। त्वचा के रंग में भी रोनक आ जाती है। प्रोटीनयुक्त क्रीमों से त्वचा के ऊतकों को लाभ मिलता है। बॉडी पैक क्रीम लगाने से त्वचा का लचीलापन कायम रहता है।

प्रसव के बाद पड़ने वाले निशान नियमित मालिश से समाप्त हो जाते हैं। हल्के गुनगुने पीले सरसों के तेल से मालिश करनी चाहिए। सर्दियों के दिनों में प्रसव के बाद सरसों के तेल में अजवायन पकाकर शीशी में भर लेनी चाहिए। मालिश से पहले इस मिश्रण को गुनगुना कर लेना लाभदायक होता है।