सोमवार, 15 अगस्त 2011

गर्म-ठंडी मसाज

परिचय-

किसी भी व्यक्ति के शरीर पर गर्म-ठंडी मालिश करने से पहले उसके शरीर को गर्म कर लिया जाता है। इसके बाद शरीर को ठंडा करके मालिश की जाती है। यह मालिश उन रोगियों के लिए विशेष लाभदायक है, जो नाड़ी की कमजोरी के रोग से पीड़ित हों या जिनकी नस-नाड़ियां बहुत कमजोर हो गई हों, जिस कारण वे सर्दी-गर्मी सहन न कर सकते हों। ऐसे रोगियों के लिए यह मालिश काफी लाभदायक होती है। जुड़े हुए जोड़ों, गठिया, वात रोगों तथा अधरंग आदि रोगों में भी यह मालिश विशेष लाभकारी होती हैं।

यदि आप किसी रोगी की यह मालिश करने जा रहे हैं, तो सबसे पहले रोगी के शरीर को गर्म पानी की बोतल से सेंक कर गर्म कर लें। फिर इसके बाद ठंडी मालिश आरम्भ करें। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि ठंडी-गर्म मालिश में ठंडी मालिश की तरह जोर से घर्षण नहीं दिया जाता, बल्कि ये घर्षण बहुत धीरे-धीरे देने चाहिए। इसमें बाकी सभी नियम ठंडी मालिश से मिलते-जुलते हैं। रोगी को सूखे तौलिए से अच्छी तरह रगड़कर व अच्छी तरह गर्म करके भी ठंडी मालिश दी जाती है, परन्तु इस क्रिया का प्रयोग किसी कमजोर रोगी पर कभी भी नहीं करना चाहिए। उनके अंगों को गर्म बोतल की सेंक देकर ही उनकी ठंडी मालिश करनी चाहिए। गठिया तथा जुड़े हुए जोड़ों वाले रोगियों के शरीर पर हाथ चलाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि आपके घर्षण से उन्हें पीड़ा का एहसास न होने पाए, इसलिए ठंडी मालिश को काफी सावधानी से करना चाहिए।

स्वस्थ व्यक्ति भी घर बैठे-बैठे इस मालिश का लाभ उठा सकते हैं, जैसे कि हर व्यक्ति सुबह स्नान करता है तो स्नान करते समय वह अपनी मालिश थोड़े समय में ही कर सकता है। सुबह स्नान करने से पहले अपने शरीर को हाथों से या किसी सूखे तौलिए से घर्षण देकर गर्म कर लें। घर्षण मात्र 5-7 मिनट तक ही दें, उसके बाद ठंडे पानी से स्नान कर लें। ठंडे पानी से भी अपने शरीर को रगड़कर मल लें। इस प्रकार की मालिश और स्नान से शरीर के रोमकूप खुल जाते हैं। शरीर का मैल धुल जाता है तथा चर्मरोग से सम्बंधी रोग दूर हो जाते हैं। त्वचा में शुद्ध खून का संचार तेजी से होता है, जिससे किसी तरह के चर्मरोग नहीं हो सकते। यह भी एक प्रकार की गर्म-ठंडी मालिश करने का ढंग है।

तेल मालिश-

तेल मालिश एक ऐसा उपचार है, जिसमें पूरे शरीर पर तेल मलकर सिलसिलेवार ढंग से गूंथा जाता है। मरीज को आराम की अवस्था में इस तेल मालिश के लिए विशेष रूप से बनाई गई एक गद्देदार मेज पर लिटाया जाता है। मालिश करने का यह काम हाथों से किया जाता है। मालिश शरीर के उस भाग में की जाती है, जिसका इलाज किया जाना होता है। आधे घंटे तक शरीर को थपका जाता है, रगड़ा जाता है, एक प्रकार से गूंथा जाता है, हल्के-हल्के दबाया जाता है तथा हिलाया-डुलाया जाता है।

ये क्रियाएं खून के बहने की दिशा से की जाती है। मालिश की शुरुआत शरीर में दाहिनी ओर दाहिने पैर के साथ होती है और अन्त में सिर और गर्दन की बारी आती है।

असली मालिश तो असल में तेल से ही की जा सकती है। तेल की सहायता से हम अपना हाथ पूरे शरीर पर आसानी से चला सकते हैं। तेल मालिश मांसपेशियों को ढीला करती है, त्वचा को सीधी खुराक पहुंचाती है तथा शरीर में लचक पैदी करती है। रोगों में अधिकतर तेल की मालिश ही करनी चाहिए। वात रोगों, अधरंग (आधे शरीर में लकवा होना), पोलियो, चोट, हड्डी टूटने आदि रोगों में तेल की मालिश काफी लाभकारी होती है।

ठंडी मालिश

ठंडी मालिश तेल से की जाती है। तेल की मालिश से कहने का अभिप्राय यह है कि हम खून को दिल की तरफ ले जाएं, इसलिए यह मालिश नीचे से ऊपर की ओर करते हुए चलते हैं और नसों को तेज करते हैं, परन्तु ठीक इसके विपरीत ठंडी मालिश में हमें धमनियों को तेज करना होता है और उन्हें चलाना होता है। इसलिए यह नीचे से ऊपर की ओर की जाती है। तेल मालिश दिल से नीचे की तरफ की जाती है। कहने का अभिप्राय हैं कि शरीर का यह नियम है कि शरीर के जिस अंग को ठंडा कर दिया जाएगा, रक्त वहां तेजी से भागकर आएगा तथा ठंडे अंग को गर्म करेगा।

उदाहरण के लिए आपने सुना या देखा ही होगा कि बुखार यानी ज्वर से पीड़ित रोगी के माथे पर ठंडे पानी की पटि्टयां रखी जाती हैं तथा पेट पर भी ठंडी पटि्टयां रखी जाती है तो वह गर्म हो जाती है क्योंकि जब वे पटि्टयां अंग को ठंडा करती हैं, तो रक्त उन अंगों को गर्म कर देता है, जिससे पटि्टयां भी गर्म हो जाती है। यदि हम गीले कपड़े को अपने किसी अंग से लगाकर रखते हैं, तो वह गीला कपड़ा गर्म हो जाता है। इसका भी कारण यही है कि जब अंग ठंडा हो जाता है तो धमनियों का खून वहां तेज हो जाता है और खून उस अंग को अधिक गर्मी देकर जल्दी गर्म कर देता है। इसलिए ठंडी मालिश हमेशा धमनियों को तेज करती है। जब शुद्ध रक्त एक स्थान पर जाएगा तो उस अंग को शक्ति मिलेगी, उस अंग में छिपे विकार को वहां से हटना पड़ेगा। इसी को ठंडी मालिश कहते हैं।

तेल मलना :-

इस क्रिया में तेल को रोग वाले अंग पर लगाकर धीरे-धीरे नीचे से ऊपर की ओर दबाव डालकर मलना होता है। तेल सभी अंगों पर लगाना चाहिए, परन्तु दबाव केवल मांसपेशियों पर ही देना चाहिए, हडि्डयों पर नहीं।

लाभकारी-

तेल मलने से शरीर में समा जाता है, त्वचा नर्म होती है, रक्त-संचार में वृद्वि होती है तथा मांसपेशियों शिथिल होती है। इससे मालिश के आधुनिक तरीकों को अपनाने के लिए आपका शरीर तैयार हो जाता है।

मर्दन करना, टांगों की मालिश

परिचय-

मालिश करना एक प्रकार की क्रिया होती है, जो विशेषज्ञों की देखरेख में ही करनी चाहिए परन्तु यहां पर हम `स्वयं अपनी मालिश के ढंग´ या तरीको को समझा रहे हैं जैसे हाथों, पैरो और टांगों आदि की मालिश जो इस प्रकार से हैं।

  • सबसे पहले टांगों पर तेल मलने के बाद जमीन पर बैठ जाएं। अब अपना दायां हाथ दोनों टांगों के बीच ले जाकर बाएं पांव के टखने पर गोलाई में जमाएं। अब अपनी दाई टांग का दबाव दाएं हाथ की कोहनी पर तथा बाएं हाथ का दबाव बाएं घुटने पर डालें। इससे टांग एक अवस्था में स्थिर रहेगी। अब अपना दायां हाथ ऊपर की तरफ घुटनों तक धीरे-धीरे मालिश करते हुए ले जाएं। आपका हाथ बाई टांग के स्थान पर रहने दें। बाजू पर दाई टांग का दबाव होने के कारण हाथ खुद ही फिसलता जाएगा। यह क्रिया 4-5 बार करें।
  • अब अपने बाएं हाथ को बाईं टांग के घुटने से हटा लें तथा उसी टांग के टखने पर जमाएं। अब दबाव डालकर हाथ से मालिश करते हुए घुटने तक ले जाएं। इस समय आप बाई टांग के दूसरे भाग की मालिश कर रहे हैं, इस क्रिया को भी 2-3 बार करें।
  • हर क्रिया के बाद अपने दोनों हाथ ढीले रखकर पूरी टांग पर ऊपर-नीचे घर्षण करें। इससे आपके हाथ और टांगों में ढीलापन आ जाता हैं।
  • अब पहले वाली स्थिति में आ जाएं। फिर अपने हाथों को एक दूसरे के ऊपर रखकर बाएं घुटने के पास जांघ पर रखें। उसके बाद दबाव डालते हुए अपने हाथों से जांघों पर मालिश करते हुए नीचे की तरफ ले जाएं। अपने हाथों को थोड़ा दाएं-बाएं करके भी यह क्रिया करें। ऐसा केवल आप 3 से 4 बार कर सकते हैं।
  • अब बाई टांग को सामने की तरफ ऊंची करके फैलाएं। उसके बाद अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसाकर हाथ बांध लें तथा अब अपने हाथों को टांग के नीचे से पांव के तलवे पर रखें। हाथ इस प्रकार गोल होने चाहिए कि वे टांग के नीचे से पांव के तलवे पर बैठ जाएं। अब जोर लगाते हुए धीरे-धीरे हाथों को जांघों की तरफ लाएं। हाथों को पीछे खींचते समय आपको थोड़ा लेटना भी पड़ेगा, तथा आप अच्छी तरह जोर लगा सकेंगें तथा आपका हाथ भी टांगों पर ठीक प्रकार चल सकेगा। इस क्रिया को 3 से 4 बार कर सकते हैं।
  • अब फिर से पहले की तरह बैठ जाएं। इस क्रिया में आपको अपना हाथ घुटने के पास जांघों पर नहीं रखना है बल्कि अपनी बाईं बाजू को जांघों के नीचे से निकालकर अन्दर-बाहर रखें। दूसरी बाजू भी इसी प्रकार निकालें। अब अपने दोनों बाजुओं को अन्दर-बाहर करते हुए जांघों के निचले भाग की मालिश करें।
  • इस क्रिया में भी पहले की ही तरह बैठे रहें। फिर अपने एक हाथ को चूड़ी का आकार देकर टखने को पकड़ लें। उसके बाद हाथ की चूड़ी को दबाकर घुमाते हुए घुटनों तक लाएं। इस क्रिया को `मरोड़ना क्रिया´ के नाम से भी जानते हैं। अब घुटनों पर चारों तरफ से मालिश करें फिर दोबारा अपने हाथ की चूड़ी बनाकर दबाव के साथ पूरी जांघ पर चलाएं। यह क्रिया भी 4-5 बार करें। इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि पिण्डलियों के ऊपर की हड्डी पर दबाव नहीं पड़ना चाहिए बल्कि केवल पिंडली और आस-पास की मांसपेशियों पर ही दबाव पड़ना चाहिए। एक स्थान पर चूड़ी चलाते समय उसी स्थान पर 2 से 3 बार अन्दर-बाहर चूड़ी घुमाएं और उसके बाद आगे बढ़ें।
  • पूरी टांग पर एक ही तरह से हाथ चलाना चाहिए।
  • जब टांगों की मालिश पूरी हो जाए, तो आखिर में आकृति 3 की भांति खड़ी ठोक, मुक्का मारना और कंपन आदि क्रियाओं को करना चाहिए।

इस प्रकार से आपकी एक टांग की मालिश पूरी हो जाएगी। इसके बाद आप दूसरी टांग की मालिश भी इसी तरह से कर सकते हैं।

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