परिचय-
शरीर की मालिश कई विधियों से की जाती है। जिस तरह पूरे शरीर की मालिश के लियें कुछ नियम व विधियां बनाई गई है उसी तरह शरीर के कुछ अंगों की मालिश के लियें भी नियम व विधियां बनाई गई है। इन क्रियाओं का लाभ मालिश करने के तरीके व मालिश करने वाले चिकित्सक के ऊपर पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार से मालिश करता है।
सिर की मालिश के लिए :-
- सिर की मालिश हमेशा हल्के रूप में ही करनी चाहिए।
- मालिश करने की क्रियाएं थोड़ी-थोड़ी देर के बाद बदलते रहनी चाहिए।
- सिर की मालिश कुछ इस प्रकार करें कि बालों की जड़ों को शक्ति मिल सके। मालिश करते समय तेल बालों की जड़ों तक जाना चाहिए न कि सिर्फ ऊपर-ऊपर ही रह जाए।
- मालिश का अधिक लाभ लेने के लिए सिर की मालिश रात को करनी चाहिए क्योंकि रात की मालिश से दिमाग पर चढ़ी दिनभर की थकावट दूर हो जाती है और सिर हल्का हो जाता है। मालिश सोने से ठीक पहले करनी चाहिए ताकि मालिश के बाद नींद अच्छी आ सके।
- यदि प्रतिदिन सिर की मालिश करवाना सम्भव न हो तो कम-से-कम सप्ताह में 1 बार तो अवश्य करनी चाहिए। इससे बुद्धि का अच्छा विकास होता है तथा जुकाम और सिर के दर्द में आराम मिलता है। और बाल भी जल्दी सफेद नहीं होते।
मालिश करने की विधियां :-
- हाथों की अंगुलियों की कंघी के रूप में बनाकर पूरे सिर के बालों की जड़ों तक मालिश करें।
- अपने हाथों को दाईं-बाईं तरफ खोलकर अन्दर-बाहर और आगे-पीछे पूरे सिर की मालिश करें।
- मालिश करते समय सिर को थपथपाना चाहिए।
- दोनों हाथों की सहायता से सिर के पिछले भाग की ऊपर-नीचे कई बार मालिश करनी चाहिए।
- दोनों हाथों को चूड़ी का आकार देकर और माथे के ऊपर सिर के भाग को घुमाकर मरोड़ें।
- दोनों हाथों को इस प्रकार जोड़ें कि आपकी सभी अंगुलियां खुली हों। अब हाथों से सिर को ठोकें और दोनों हाथों से सिर को चारों तरफ से दबाएं।
आंखों की मालिश-
आंखों के भीतरी और ऊपरी कोनों से आंखों के चारों ओर बाहर की ओर हल्की मसाज करें। हाथों की तीसरी उंगली का प्रयोग करते हुए नाक के दोनों किनारों और कनपटी पर हल्का दबाव देते हुए मसाज करें। आंखों के आस-पास की त्वचा बहुत कोमल होती है इसलिए ध्यान रखें कि त्वचा को खिंचने न दे। नाक से शुरू करके ऊपर की ओर भौंहों पर चुटकी काटते हुए मसाज करें। तर्जनी और अंगूठे की सहायता से भौंहों पर हल्की ऐंठन दें। 5 बार ऐसा करने से आंखों की थकान दूर होती है। भौंहों पर सीजर मसाज से भी आंखों की थकान दूर होती है।
चेहरे की मालिश :-
चेहरे की मालिश की शुरूआत गालों से करनी चाहिए। इससे जबड़े को विश्राम मिलता है तथा गाल सुडौल होते हैं। अपने दोनों अंगूठों को ठोढ़ी के बीच में रखकर बाहर की ओर जबड़े के अन्त तक मसलते हुए ले जाएं। अंगुलियों के पोरों को मिलाकर गालों को हल्के से कानों की ओर दबाएं। दोनों हाथों को क्रमबद्ध तरीके से मुंह के किनारों से कान की ओर धीरे-धीरे सरकाने का प्रयास करें।
आंखों के नीचे वाले हिस्से की मालिश नहीं करनी चाहिए। यह बेहद नाजुक स्थान होता है। जिसकी मांसपेशियां कमजोर होती है। भौहों के बीच से लेकर आंखों के चारों ओर गोलाई की दिशा में नाक के ऊपरी सिरे तक मालिश करें। माथे की सलवटें (भृकुटि) को दो पद्धतियों द्वारा तनाव से छुटकारा दिलाया जा सकता है। भौहों के बीच के भाग से दोनों तरफ अंगुलियों की पोरों को सरकाते हुए दोनों कानों के ऊपरी भाग तक लाएं और धीरे-धीरे अंगुलियों को ऊपर के भाग में बढ़ाते हुए माथे पर यही प्रक्रिया दोहराएं और कनपटी तक ले जाएं। इसके बाद वर्टिकल यानी खड़ी दिशा में मालिश करें। इसमें अंगुलियों को भौहों के बीच से बालों की तरफ ऊपर ले जाएं। सलवटें (भृकुटि) लाइन को कभी नीचे की दिशा में न खींचे। हमेशा ऊपर की ओर या तिरछी दिशा में मालिश करें। कनपटी का तनाव दूर करने के लिए गोलाई में हल्के-हल्के अंगुलियां चलाएं। धीरे-धीरे दबाव बढ़ाएं। इसके बाद में 10 से 15 मिनट तक आराम करने से लाभ होगा।
मुंह की मालिश के लिए :-
मुंह की मालिश यदि सिर की मालिश के साथ ही की जाए तो बहुत अच्छा रहता है। सबसे पहले थोड़ा-सा तेल हाथों पर चुपड़कर पूरे चेहरे पर मलें। उसके बाद माथे पर हाथ से सिर की तरफ तेल मलें। गर्दन ऊपर करके ठोढ़ी के नीचे भी तेल मलें। अंगुलियों तथा अंगूठे की सहायता से आंखों के चारों तरफ हल्का-हल्का घर्षण दें। नाक के दोनों तरफ अंगुलियों से मालिश करते हुए हाथ कानों तक ले जाएं। गालों पर हाथ गोलाकार नीचे की तरफ चलाएं।
आंखों को सहलाएं, कंपन दें तथा गालों पर भी गोलाई से घर्षण देकर कंपन दें। कानों में 2-2 बूंद तेल डालें तथा उनके ऊपर हाथ से कंपन दें। नाक में भी दोनों तरफ 2-2 बूंद तेल डालें तथा नाक की बाहरी ओर मालिश करें तथा जोर से सांस लें। यह क्रिया आंखों की रोशनी तथा जुकाम के लिए काफी लाभकारी होती है।
वैसे सरसों के तेल को अंगुलियों की मदद से गुदा में लगाना बहुत लाभदायक है। अण्डकोष और गुदा के बीच पौरूष ग्रंथि (प्रोस्टेट ग्लैण्ड) पर भी तेल की मालिश करनी चाहिए। अण्डकोष के आस-पास के भाग पर मालिश करने से पेशाब सम्बंधी रोगों से बचा जा सकता है। गुदा में तेल लगाने की क्रिया को `गणेश क्रिया´ कहा जाता है। इससे कब्ज रोग नहीं होता और बवासीर नामक बीमारी से भी बचा जा सकता है।
मुख की मालिश करते आंखों पर अधिक दबाव नहीं देना चाहिए, क्योंकि आंखे कोमल अंग होती हैं। यदि भोजन के बाद अपनी हथेलियों से आंखों को सहलाया जाए, आंखों को चारों तरफ से मसला जाए तथा पूरे चेहरे पर हाथ फेरा जाए तो इन क्रियाओं द्वारा बहुत लाभ उठाया जा सकता है। इससे आंखों की रोशनी में बढोत्तरी होती है। चेहरे पर भी यदि हम स्नान से पहले प्रतिदिन सूखे हाथों से मालिश करें तो भी लाभ उठा सकते हैं, क्योंकि इससे चेहरे पर मुहांसे नहीं निकलते और चेहरे की सुन्दरता बनी रहती है।
महिलाओं को अपनी सुन्दरता बनाए रखने के लिए मालिश का सहारा लेना चाहिए।
हाथों की मालिश के लिए :
हाथों की मालिश करने के लिए सबसे पहले हाथों पर तेल लगाकर दोनों हथेलियों को आपस में रगडे़। हाथ के ऊपरी भाग को दूसरे हाथ के अंगूठे से मसलें। गांठें घुमाएं, जोड़ों को चलाएं तथा दूसरे हाथ की मदद से हाथ की प्रत्येक अंगुली को पकड़कर हल्का झटका दें। अंगुलियों के ऊपर की मांसपेशियों को घर्षण दें। कलाई को दूसरे हाथ की मदद से गोलाकार मसलें और घुमा दें।
बाजू की मालिश :-
- सबसे पहले अपनी बाजुओं पर अच्छी तरह से तेल मलकर नीचे दिखाई गई आकृति की तरह बैठकर अपना आधा हाथ अन्दर से दूसरे पांव के नीचे दबा लें। अब दूसरे हाथ को उसी हाथ के पास गोलाई में टिका लें और टांग का दबाव डालते हुए हाथ से मालिश करते हुए नीचे से ऊपर की ओर चलें। ध्यान रहे कि दूसरी टांग को भी बाजू को पूरा सहारा मिलना चाहिए तभी दबाव अच्छा पड़ेगा।
- अपनी अंगुलियों और हथेली की अच्छी तरह मालिश करके घुमाएं। फिर कोहनी से बाजू को कई बार घुमाएं। इसी तरह कंधे को भी इसी तरह घुमाएं।
- अब अपना वह हाथ जो आपने पांव के नीचे दबा रखा है निकाल लें तथा हाथ उल्टा करके फिर वहीं दबा लें। इससे आपका बाजू उल्टा हो जाएगा। जिस प्रकार आपने बाजू के दूसरे भाग पर मालिश की है, उसी प्रकार इस भाग पर भी मालिश करें। इस भाग पर भी वही क्रिया 3 से 4 बार ही करें।
- अपने हाथ को टांग से बाहर निकाल लें और नीचे दी गई आकृति की तरह एक हाथ की चूड़ी बनाकर दूसरी बाजू पर घुमाते हुए चलें। जिस बाजू की आप मालिश कर रहे हैं, चूडी के साथ-साथ उसे भी घुमाते रहें।
- टांगों की भांति बाजू को भी झकझोरें। ताल से हाथ चलाना, खड़ी ठोक देना, मुक्का मारना और कंपन देना आदि क्रियाओं का प्रयोग करें। इस तरह आपकी एक बाजू की मालिश हो जाएगी। इसी प्रकार दूसरी बाजू की भी मालिश करें।
गर्दन की मालिश :-
हर व्यक्ति के शरीर के कंधे और गर्दन पर सबसे अधिक तनाव रहता है क्योंकि गर्दन पर सिर का भार रहता है। इसके अलावा कंधे अधिक झुकाकर बैठने से भी गर्दन के दोनों ओर की मांसपेशियां तन जाती हैं। गर्दन की मालिश करने के लिए रोगी को पेट के बल लिटाकर दोनों कंधों पर `नीडिंग´ क्रिया करनी चाहिए। यह `नीडिंग´ क्रिया गर्दन से खोपड़ी के नीचे तक करने से लाभ होता है।
गर्दन और चेहरे की मालिश के लिए :-
- गर्दन पर तेल लगाकर दोनों हाथों से गर्दन को पकड़ें और दबाव देकर चारों तरफ हाथ घुमाते हुए मालिश करें।
- अपना दायां हाथ बाईं ओर से घुमाकर गर्दन के पीछे के भाग से थोड़ा ऊपर रखें तथा वहां से दबाव डालते हुए हाथों को कंठ तक लाएं। अच्छा हो, यदि हाथ के साथ ही गर्दन को भी घुमाते जाएं, इससे दबाव ठीक बनेगा व हाथ आसानी से चलेगा। ठीक इसी तरह बाएं हाथ से गर्दन के पिछले भाग से कंठ तक मालिश करें।
- हाथ को ठोड़ी के नीचे रखें तथा ऊपर से नीचे की तरफ गर्दन और गले पर मालिश करें। यह क्रिया 4 से 5 बार होनी चाहिए।
- अपने दोनों हाथों की सहायता से पूरे चेहरे को ढक लें। फिर चेहरे को हाथों से धीरे-धीरे मसलते हुए मालिश करें। ध्यान रखें कि इस क्रिया में आपकी आंखों पर किसी प्रकार का कोई दबाव न पड़ने पाए। आंखों को हथेली की मदद से हल्का-हल्का मसल लें। अंगुलियों से आंखों के चारों तरफ मालिश करें।
गर्दन और कंधों की मालिश-
मालिश की शुरूआत गर्दन और कंधों से करें, जहां ज्यादा तनाव उत्पन्न होता है। दाहिने हाथ को छाती पर बीच में रखकर ऊपर तक मसलते हुए गर्दन और कंधे के बाई तरफ ले जाएं। इसी प्रकार बाएं हाथ को छाती पर रखकर दाईं ओर ले जाएं। इस प्रक्रिया को बारी-बारी से दोहराएं। इसी तरह दोनों हाथों से गर्दन के पीछे का तनाव दूर करें। अपने दोनों हाथों को कटोरा आकार बनाकर एक हाथ गर्दन के निचले हिस्से पर तथा दूसरा जबड़े के नीचे रखें। फिर दोनों हाथों को हल्के दबाव के साथ जबड़े के पीछे ले जाएं। इसी प्रकार हाथ नबदलकर प्रक्रिया दोहराएं तथा हाथों को गर्दन के चारों ओर घुमाएं। गर्दन के अगले हिस्से पर अंगुलियों के नीचे से ऊपर जबड़े तक मालिश करें।
छाती की मालिश :-
मनुष्य की छाती में 2 अंग काफी महत्त्वपूर्ण होते है। फेफड़े और हृदय। जिगर और आमाशय छाती के निचले भाग में होते हैं। जिगर दाईं तरफ और आमाशय बाईं तरफ, जो आधा पसलियों के नीचे और आधा पेट में होता है।
सबसे पहले तेल लगाकर रोगी की छाती की मालिश करें। फिर दोनों तरफ की बगलों की तरफ की मांसपेशियों को पकड़कर मसलें। उसके बाद बारी-बारी से प्रत्येक को रगड़ें। स्तनों और हृदय पर गोलाकार मालिश करें। उसके बाद दोनों हाथों को छाती के बीच रखकर बगल की तरफ से हृदय की ओर मालिश करें। और छाती को थपथपाएं। कटोरी थपकी क्रिया का प्रयोग करें। पूरी छाती पर अच्छा घर्षण दें, हल्की-हल्की मुक्कियां मारें और कंपन दें।
पेट की मालिश करने के लिए :-
पेट की मालिश करने के लिए सबसे पहले रोगी को अपना पेट बिल्कुल ढीला छोड़ देना चाहिए। जिस समय पेट की मालिश की जा रही हो, उस समय पेट एकदम खाली होना चाहिए, यानी रोगी ने कुछ खाया-पीया नहीं होना चाहिए। यदि कुछ खाया-पिया भी हो, तो वह कम-से-कम 4 से 5 घण्टे पहले खाया हो।
यदि पेट भरा हो, तो मालिश बिल्कुल भी नहीं करानी चाहिए। इसके अलावा मालिश करने वाले को इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि यदि रोगी के पेट पर सूजन या घाव हो तो ऐसी अवस्था में पेट की मालिश बिल्कुल नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे रोगी को लाभ के स्थान पर हानि ही पहुंचेगी। पेट की मालिश बहुत महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि हमारा पेट पोषण-संस्थान होता है तथा इसमें यकृत (जिगर), प्लीहा (तिल्ली), आमाशय, पक्वाशय, क्लोम ग्रंथि, छोटी-बड़ी आंतें आदि होती हैं इसलिए पेट की मालिश को बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
मालिश के शुरू करने से पहले पेट पर तेल लगाकर मालिश करनी चाहिए। पेट की बड़ी आंत से मालिश आरम्भ करके हाथ को धीरे-धीरे दबाते हुए जिगर तक ले जाना चाहिए। फिर हाथ को बाईं तरफ मोड़कर आमाशय के पास ले जाएं, उसके बाद हाथ को प्लीहा पर दबाते हुए नीचे की तरफ लाएं, फिर वहां से दाईं तरफ चलें, इसके बाद हाथ को दबाव के साथ ऊपर ले जाकर बीच में लाएं तथा नीचे की तरफ पेड़ू के निचले भाग पर दबाव समाप्त करें। पेट के जिस-जिस भाग पर हमारा हाथ चलता है, बड़ी आंत भी इसी प्रकार चलती है जो दाईं तरफ पेट के निचले कोने से होकर जिगर के नीचे से होती हुई आमाशय की तरफ बढ़ती है। फिर वहां से दाईं तरफ को नीचे जाती है, फिर थोड़ा दाएं जाकर ऊपर को बढ़ती है, उसके बाद दाएं से नीचे मुड़कर सीधी गुदा से जा मिलती है।
पहले 5 से 6 बार मालिश का हाथ पीछे बताए अनुसार चलाना चाहिए। एक बार इस क्रिया से हाथ चलाने के बाद पेट पर थोड़ा घर्षण दें तथा झकझोरें, फिर दोबारा हाथ चलाएं। पेट की मांसपेशियों को मसलें और बेलन क्रिया का प्रयोग करें।
इस क्रिया के बाद अपने हाथ को पेट की नाभि पर रखें तथा वहीं से हाथ दाएं से बाएं चक्राकार घुमाएं। धीरे-धीरे उस चक्र को घुमाते हुए बड़ा करते जाएं तथा बड़ी आंत तक आ जाएं। बड़ी आंत पर भी यह चक्र चलाएं। यह क्रिया 2 से 3 बार करें। उसके बाद पेट को रगड़ें, इससे आपके हाथ के साथ रोगी का पेट भी ढीला हो जाता है।
अपने दाहिने हाथ की पांचों उंगुलियों को आपस मे मिलाकर नाभि पर रखें तथा रोगी की स्थिति के अनुसार कंपन देते हुए अपनी उंगुलियों को दबाव देकर नीचे पेट के अन्दर ले जाएं, फिर ढीला छोड़कर हल्के हाथ से दाएं से बाएं और चलाएं। उसके बाद दोबारा अपनी उंगुलियों को आपस में मिलाकर हाथ पसलियों के बीच में खाली जगह पर रखें। फिर दबाव देते हुए अपने हाथ को वहां से सीधे नीचे की तरफ ले जाएं और पेड़ू के निचले भाग पर आकर दबाव समाप्त करें।
यदि आप जरूरत महसूस करें तो अपने दूसरे हाथ का दबाव भी उस हाथ पर डाल सकते हैं। इस क्रिया का प्रयोग 2 से 3 बार ही करना चाहिए। हाथों का दबाव उतना ही रखें, जितना कि रोगी सहजता से सहन कर सके। बाद में पेट पर हल्की थपकी देकर झकझोर दें। बेलना, थपथपाना, दलना, और कंपन देना आदि क्रियाएं बारी-बारी से करते रहें।
पेट और छाती की मालिश के लिए :-
पेट और छाती की मालिश करने के लिए मालिश करने वाले को निम्न प्रकार की बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है जैसे-
पहला :- सबसे पहले पेट और छाती पर अच्छी तरह तेल लगा लें। उसके बाद नीचे दिखाई आकृति की भांति अपने दोनों हाथों को बड़ी आंत के ऊपर दाएं-बाएं रखकर दाएं से बाएं घुमाएं। पहले दाईं ओर का हाथ थोड़ा ऊपर ले जाएं, फिर बाई ओर का हाथ ऊपर ले जाएं। फिर वहां से वापस नीचे ले जाएं। ऐसा 4 से 5 बार करें। हाथों को धीरे-धीरे और दबाव के साथ चलाएं। पेट की मालिश उसी प्रकार करें।
दूसरा :- अपने हाथों को एक-दूसरे के ऊपर रखकर पसलियों के बीच पेट के ऊपर से दबाव के साथ नीचे की तरफ लाएं। इस क्रिया में आप अपने हाथों को सीधे या लम्बे आकार में दोनों तरह चला सकते हैं।
तीसरा :- अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को नाभि यानी पेट के बीच के केन्द्र पर रखें तथा दाएं से बाएं चक्राकार चलाएं। फिर धीरे-धीरे इस चक्र को बड़ा करते चले जाएं।
चौथा :- अपने पेट पर थोड़ा दबाव डालें तथा नीचे से ऊपर, दाएं से बाएं धीरे-धीरे मसलें, झकझोरे तथा बेलन क्रिया और कंपन क्रिया करें।
पांचवा :- अपना दायां हाथ बाएं कंधे पर रखकर दबाव के साथ नीचे छाती की ओर लाएं, फिर बायां हाथ दाएं कंधे पर रखकर दबाव के साथ नीचे छाती पर लाएं। यह क्रिया भी कई बार करें।
छठा :- अब नीचे दिखाई गई आकृति की भांति अपने हाथ को छाती पर रखें तथ दबाव डालते हुएं अन्दर की ओर इस प्रकार लाएं कि आपके दोनों हाथ मिल जाएं। हाथों को ऊपर-नीचे करके छाती की मालिश करें और पसलियों पर घर्षण दें। फिर हाथों को अन्दर-बाहर करके पूरी छाती पर मालिश करें। हृदय और स्तनों पर गोलाकार मालिश करें।
पीठ की मालिश :-
कमर के ऊपर के भाग को पीठ के नाम से जाना जाता है। मालिश के द्वारा शरीर की थकावट को कम किया जा सकता है क्योंकि नाड़ी-जाल मेरुदण्ड (रीढ़ की हडि्डयों) से होकर हमारे शरीर में फैलता है, अत: पीठ की मालिश में इन नाड़ियों को शक्ति देकर शरीर की थकान दूर की जा सकती है।
- पीठ की मालिश करने के लिए सबसे पहले पीठ पर तेल लगाएं तथा फिर मालिश शुरू करें। दलन और ताल से हाथ चलाना आदि क्रियाओं का प्रयोग करे। पीठ के ऊपरी भाग की नीचे की तरफ और नीचे वाले भाग की ऊपर की तरफ मालिश करें। ध्यान रहें कि नीचे से ऊपर की तरफ जो मालिश हो, वो दिल की तरफ होनी चाहिए।
- बाद में रोगी की पीठ पर सवार हो जाएं तथा अपने दाएं हाथ को सीधा रीढ़ की हड्डी पर रखें। अब अपने दूसरे हाथ को भी पहले हाथ के ऊपर रख लें तथा रोगी की शारीरिक स्थिति के अनुसार अपने शरीर का दबाव डालकर हाथों को सीधा ऊपर की तरफ गर्दन तक ले जाएं। रोगी के लेटने की अवस्था में उसका माथा जमीन पर टिका होना चाहिए तथा मुंह नीचे की ओर और गर्दन सीधी होनी चाहिए। ऊपर बताई गई क्रिया को 2 से 3 बार किया जाना चाहिए। उसके बाद पीठ पर घर्षण दें तथा उसे झकझोरें तथा अपने हाथ और पीठ को ढीला छोड़ दें।
- दूसरी क्रिया :- अपने दोनों हाथों को पीठ के नीचे की तरफ रीढ़ से मिलाकर दाएं-बाएं रखें। दोनों हाथों के अंगूठे इस प्रकार रहने चाहिए कि वे रीढ़ को मसलते हुए चल सकें। अंगुलियों तथा हथेलियों का दबाव एक साथ रहना चाहिए। अब अपने हाथों को दबाव के साथ ऊपर की तरफ फिसलाते हुए ले जाएं। हाथ कंधों तक ले जाकर, कंधों की मांसपेशियों को पकड़कर मसल लें। इस प्रकार मसलने पर रोगी को दर्द महसूस होता है। इस क्रिया में सिर सीधा रखने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि रोगी चाहे तो अपना सिर एक तरफ रख सकता है। इस मालिश में रोगी के बाजू मुड़े हुए, बगल से थोड़ा हटकर, जमीन पर टिके होने चाहिए और हथेलियां रोगी के मुंह के पास नीचे की तरफ रहनी चाहिए। इस प्रकार लेटने से पीठ की मांसपेशियों पर तनाव नहीं पड़ता है।
- तीसरी क्रिया :- अपने दोनों हाथों को रीढ़ के दाएं-बाएं इस प्रकार रखें कि आपके दोनों अंगूठे रीढ़ पर मालिश करते हुए चल सकें तथा हथेलियां बगल की तरफ से पूरी पीठ की मालिश करते हुई कंधों तक जा सकें। हाथों को इस प्रकार रखने के बाद अपने शरीर का दबाव देते हुए ऊपर की तरफ मालिश करें। कंधों तक हाथों को कोहनियों तक ले जाएं। इस क्रिया को भी 3 से 4 बार करना चाहिए। एक बार क्रिया करने के बाद पीठ पर घर्षण करें और शरीर को झकझोरें। अपनी अंगुलियों को भी बार-बार रीढ़ की हड्डी (मेरुदण्ड) पर चलाना चाहिए।
- चौथी क्रिया :-अपने दोनों हाथ रीढ़ की हड्डी के दाएं-बाएं रखें जिसे कि अंगुलियां नीचे की तरफ रहें तथा हथेलियां रीढ़ के ऊपर एक-दूसरे से मिली हुई हों। हाथों को ऐसा आकार देने के बाद पहले कुल्हों (नितंबो) पर हथेलियों की मदद से दलन-क्रिया का प्रयोग करें। उसके बाद अपने हाथों को शरीर के दबाव से बगल की तरफ फिसलाते हुए चलें। रीढ़ से बगल की तरफ मांसपेशियों को मसलते हुए हाथों को ऊपर की तरफ लेकर चलें।
उसके बाद रोगी की पीठ से उतरकर बाई तरफ पुरानी बताई गई आकृति की तरह बैठ जाएं। इस स्थिति में बैठने पर आपका हाथ पूरी सुगमता के साथ रोगी के सिर से पांव की तरफ चलेगा।
पांचवीं क्रिया :-
इस क्रिया में हाथ को रीढ़ के ऊपर लम्बे आकार में रखा जाता है। इस प्रकार हाथ रखने के बाद अपने शरीर के दबाव से हाथ को फिसलाते हुए ऊपर की तरफ ले जाएं। पेट के ठीक ऊपर एक झटके के साथ डालें, फिर आगे चलें और 4 से 5 इंच ऊपर जाकर फिर झटके के साथ दबाव डालें। ऐसे दबाव से रोगी की सांस तेजी से बाहर निकलेगी। हाथ को उसी प्रकार से आगे बढ़ाते हुए छाती के ऊपर ठीक पीठ पर जाकर दोबारा झटके से दबाव डालें, इससे फेफड़ें सिकुडेंगे तथा सांस बाहर निकलेगी। ऐसा करते हुए अपने हाथ गर्दन तक ले जाएं। नाभिचक्र, फुफ्फुस और पसलियों को इस प्रकार के दबाव से बहुत लाभ पहुंचता है।
अब पीठ की मांसपेशियों को मसलें तथा बेलन क्रिया का प्रयोग करें। खड़ी थपकी का प्रयोग पीठ, नितम्बों (कुल्हों), जांघों और पिण्डलियों पर करें। सभी अंगों पर अंगुलियों से ठोक दें तथा कटोरी थपकी, थपथपाना, मुक्की मारना, कंपन देना आदि क्रियाओं का प्रयोग बारी-बारी से करें।
कमर की मालिश के लिए :-
वैसे तो मानव शरीर में सभी अंगों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं होती हैं, परन्तु कमर की योग्यता को नजर अदांज नहीं किया जा सकता क्योंकि उठने, बैठने, झुकने आदि से सम्बंधित सभी क्रियाओं में कमर का उपयोग किया जाता है। इसके लिए कमर लचीली बनी रहनी चाहिए, मगर इसकी ही सबसे अधिक उपेक्षा की जाती है। इसी कारण से 10 में से 8 व्यक्ति कमरदर्द से पीड़ित रहते हैं। उन्हें किसी न किसी प्रकार की कमर में तकलीफ होती रहती है। केवल कमर की सही देखभाल न करने के कारण बाद में यही छोटी-छोटी तकलीफें भंयकर दर्द या बीमारी का रूप धारण कर लेती है, तब उन्हें अपनी कमर के बारे में ध्यान न देने का अर्थ समझ में आता है। कमर से शरीर का तंत्रिकातंत्र (नर्वस सिस्टम) जुड़ा रहता है इसलिए कमर की कमर की मालिश से पूरे शरीर को लाभ पहुंचता है।
पांव की मालिश के लिए :-
सामान्य रूप से तेल की मालिश की शुरूआत पांवों से करनी चाहिए। पहले पांवों की अंगुलियों पर अच्छी तरह तेल लगाएं फिर उन्हें अंगूठे से मसलें, जोड़ों को थोड़ा बहुत हिलाएं, ताकि उनमें हलचल सी हो जाए। पांव को पूरी तरह से ढीला छोड़ दें उसके बाद बारी-बारी से पांवों की 1-1 अंगुली को पकड़कर झटका दें। उसके बाद तलवे पर तेल की मालिश करें, फिर हाथ और अंगूठे की सहायता से पांव से ऊपर तेल मसलें। टखनों को गोलाई से मलें, गांठों को घुमाएं और जोड़ों को कसरत दें तथा उंगुलियों मे हल्की-हल्की ठोक लगाएं।
बिजली से मालिश
इस प्रकार की बिजली की मालिश बिजली के छोटे-बड़ें कई प्रकार के यंत्रों से की जाती है और इसका प्रयोग शरीर के अवयवों पर गहरा प्रभाव डालने के लिए किया जाता है। वैसे ये यंत्र बाजार में उपलब्ध हो जाते हैं, जो कि बहुत महंगे हैं। इन यंत्रों में शरीर के अलग-अलग अंगों की मालिश के लिए अलग-अलग पुर्जे लगे होते हैं। यंत्र में एक पुर्जे को उतारकर दूसरा पुर्जा लगाया जा सकता है। इस मालिश का उद्देश्य भी शरीर में रक्तसंचार तेज करना होता है, जिससे शरीर के अंगों को शक्ति मिल सके।
मालिश करने वाले बिजली के इन यंत्रों को `मसाजर´ या `वाइब्रेटर´ कहा जाता है। इन यंत्रों से मालिश करते समय बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है तथा इनसे मालिश करने के नियम भी अलग-अलग होते हैं। वैसे घर में प्रयोग किए जाने वाले `मसाजर´ बाजर में शीघ्र ही प्राप्त हो जाते हैं।
बिजली के इन यंत्रों में अलग-अलग आकार के 4 से 5 प्रकार के पुर्जे लगे होते हैं, जिनसे शरीर की मालिश की जाती है। एक पुर्जा कंघी की शक्ल का होता है, जिससे सिर की मालिश की जाती है। दूसरा पुर्जा स्पंज की तरह नर्म होता है, जिससे चेहरे की मालिश की जाती है। तीसरा पुर्जा जोड़ों और हडि्डयों पर चलाने के लिए होता है, जिसका आकार `टल्ली´ की तरह होता है। यह अंगों के कोमल और मांसपेशियों पर चलाने के लिए होता है। बिजली की मालिश लाभ तो देती है, साथ ही शरीर पर गहरा प्रभाव भी डालती है, कहने का अभिप्राय है कि जो लाभ हम हाथ की मालिश से प्राप्त कर सकते हैं वह बिजली के इन यंत्रों से नहीं प्राप्त कर सकते क्योंकि हाथ की मालिश द्वारा जो शक्ति तथा शुद्ध विचार हम रोगी को देते हैं वह शक्ति और विचार बिजली के ये निर्जीव यंत्र उसे नहीं दे सकते।
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