सोमवार, 15 अगस्त 2011

मालिश के कुछ नियम

परिचय-

मालिश के बारे में अक्सर लोगों की सोच होती है कि शरीर के किसी अंग पर तेल लगाकर रगड़ लिया और हो गई मालिश लेकिन अभी तक वे यह नहीं समझ पाए कि मालिश का कोई वैज्ञानिक रूप भी हो सकता है तथा इससे कई तरह के रोगों को भी ठीक किया जा सकता है। तेल को शरीर पर लगाकर रगड़ देना ही मालिश नहीं होती है। यदि हम मालिश के विज्ञान को समझकर तथा उसके नियमों का पालन करके मालिश करें तभी मालिश का पूरा-पूरा लाभ उठाया जा सकता है। नहीं तो मालिश करने का कोई फायदा नहीं होता। ध्यान रहें कि जब हम किसी अन्य व्यक्ति से मालिश करवाते है तो उस व्यक्ति शरीर की शक्ति और गर्मी हमारे शरीर में पहुंचती है। कंपन क्रिया से मालिश करने वाले की शक्ति सबसे अधिक नष्ट होती है क्योंकि इसमें पूरे शरीर को संतुलित रखना पड़ता है और मालिश करने वाले की शक्ति उसकी अंगुलियों से निकलकर रोगी के शरीर में प्रविष्ट होती है।

मालिश करते समय हमें ध्यान रखने वाले कुछ जरूरी नियम-

  • मालिश करने के दौरान मालिश करने वाले के अन्दर दिमागी प्रवृत्ति और एकाग्रता होनी चाहिए क्योंकि मालिश करने वाला जितना शान्त और ध्यान करने वाली प्रवृत्ति का होगा वह उतना ही लाभ रोगी को दे सकेगा। यदि एकाग्र मन से मालिश की जाए तो शरीर के बेजान से बेजान भाग को भी जीवित किया जा सकता है। शुद्ध विचारों को मन में रखकर मालिश करने से आश्चर्यजनक लाभ उठाया जा सकता है। मां की ममतामयी थपथपाहट से बच्चे को असीम आनन्द मिलता है और जब बच्चें को ऐसा सुख मिलता है तो वह आराम से सो जाता है।
  • यदि मालिश करने वाले के विचार शुद्ध नहीं होते तो उसका लक्ष्य सिर्फ पैसे बटोरना होता है और इससे रोगी को किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं होता तथा उसे लाभ की अपेक्षा हानि ही होती है।
  • मालिश करने के लिए सबसे पहले मालिश का स्थान स्वच्छ और शान्त होना चाहिए। साथ ही वो स्थान खुला और वहां पर प्रकाश के आने का रास्ता भी होना चाहिए। मालिश करते समय रोगी से बिल्कुल भी बात नहीं की जानी चाहिए। यह आवश्यक है कि मालिश करने वाला रोगी के शरीर के जिस भाग पर मालिश कर रहा हैं, उसका ध्यान उसी भाग पर रहना चाहिए।
  • मालिश रोगी को लिटाकर की जानी चाहिए। रोगी को जमीन पर चटाई, गद्दा आदि बिछाकर या बड़ी मेज आदि पर लिटाकर मालिश करनी चाहिए। मालिश चारपाई आदि पर नहीं करनी चाहिए। अगर रोगी स्वयं अपनी मालिश करता है तो यह उसे हमेशा बैठकर करनी चाहिए खड़े होकर नहीं।
  • मालिश करने वाले का शरीर और हाथ-पांव बिल्कुल ढीले होने चाहिए। मालिश करने वाले के हाथ जितने ढीले होगें, रोगी पर उसका उतना ही अच्छा प्रभाव पड़ेगा। मालिश कराने वाले को भी शवासन में अपने शरीर को ढीलेपन की अवस्था यानी अचेतन स्थिति में रखना चाहिए।
  • मालिश नीचे से शुरु करके ऊपर हृदय की तरफ की जानी चाहिए। मालिश के द्वारा शरीर की नसों को शक्ति मिलती है तथा उन्हे तेज चलने के लिए प्रभावित करती हैं, जिससे वे दूषित रक्त को ले जाए तथा वहां से स्वच्छ रक्त धमनियों द्वारा शरीर को पहुंचाए, ताकि शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आए, परन्तु यह नियम ठण्डी मालिश में लागू नहीं होता। ठण्डी मालिश में मालिश सिर से आरम्भ की जाती है और हाथों को ऊपर से नीचे की ओर लाते हैं। ठण्डी मालिश धमनियों को तेज चलाने में सहायता करती है।
  • मालिश हमेशा धीरे-धीरे और दबाव डालकर करनी चाहिए। मालिश में आपके हाथ का जितना सन्तुलन रहेगा तथा जितनी आपकी क्रियाएं रोगी की शक्ति के अनुसार दबाव डालकर होंगी, उतना ही जल्दी रोगी को लाभ मिलेगा।
  • कमजोर रोगी की आधे घण्टे से ज्यादा समय तक मालिश नहीं की जानी चाहिए, परन्तु एक स्वस्थ व्यक्ति की 45 मिनट से 1 घण्टे तक मालिश की जा सकती है। मालिश करते समय रोगी की अनुकूलता को भी ध्यान में रखना चाहिए। यदि रोगी अधिक समय तक न लेट सके, या लेटे-लेटे थक जाए या फिर वह घबराहट का अनुभव करने लगे या उसका मन मालिश में न लगे तो भले ही समय पूरा हुआ हो या नहीं उसकी मालिश करना तुरन्त बन्द कर देनी चाहिए। चाहे आपने उसकी मालिश करनी अभी-अभी शुरू ही क्यों न किया हो, उसके बाद रोगी को थोड़ा विश्राम देकर और स्नान कराकर लिटा देना चाहिए।
  • सामान्य तौर पर लोग अपनी मालिश तेल से करते हैं। तेल से मालिश ही सबसे अच्छा माना जाता है। वैसे मालिश पॉउडर और सूखे हाथ चलाकर भी की जाती है। पानी के टब में बैठकर किसी तौलिए से रगड़कर भी शरीर की मालिश की जाती है। बेसन या आटे का उबटन लगाकर भी मालिश की जाती है परन्तु विभिन्न प्रयोगों से मालिश के अलग-अलग तरीके हैं जिन्हें अच्छी तरह समझकर तथा उचित ढंग अपनाकर ही मालिश करनी चाहिए।
  • मालिश करने के लिए सरसों या नारियल का तेल सबसे अच्छा माना जाता है। इन तेलों का अच्छा लाभ लेने के लिए इनको किसी शीशी में बन्द करके कुछ दिन तक सूरज की रोशनी में रखना चाहिए। इससे सूरज की किरणों का प्रभाव तेल में मिल जाता है जिससे तेल का लाभ और अधिक बढ़ जाता है।
  • शारीरिक रूप से पीड़ित रोगी की मालिश यदि मछली के तेल से की जाए तो रोगी को बहुत लाभ पहुंचता है। जैतून के तेल की मालिश भी लाभदायक होती है। बादाम रोगन भी कमजोरी व्यक्तियों के लिए काफी अच्छा होता है। बादाम रोगन सिर की मालिश में भी विशेष लाभदायक होता है वैसे सिर की मालिश के लिए कद्दू रोगन भी अच्छा माना जाता है परन्तु ये तेल सरसों के तेल की अपेक्षा बहुत महंगे पड़ते हैं।
  • मालिश में यह आवश्यक है कि मालिश करने वाले का स्वास्थ्य अच्छा हो। यदि मालिश करने वाला किसी रोग से पीड़ित हो तो उससे कभी भी मालिश नहीं करवानी चाहिए। कमजोर व्यक्ति भी मालिश के लिए सही नहीं होता हैं। अच्छा हो यदि मालिश कराने वाले को मालिश करने वाले का स्वभाव पता हो कि वह क्रोधी है या शान्त स्वभाव वाला, लालची है या सन्तोष करने वाला, मीठे स्वभाव वाला है या कड़वे स्वभाव वाला, वासनामयी है या संयम करने वाला, ईश्वर पर विश्वास करता है या नहीं इन सभी बातों का मालिश कराने वाले पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
  • यदि रोगी कमजोर है तो मालिश करते समय उसे लिटाने के लिए नीचे गद्दा बिछाकर ही उसे लिटाना चाहिए और यदि रोगी मोटापे से पीड़ित है तो दरी, चादर और रबड़ क्लॉथ बिछाना ही उपयुक्त है। यदि रोगी की मालिश घास पर करनी है तो वहां चटाई ही काम दे सकती हैं। लेकिन एक बात का ध्यान रखें कि ये सभी वस्तुएं साफ होनी चाहिए।
  • रोगी को मेज पर लिटाकर मालिश करना सबसे अच्छा होता है क्योंकि इससे मालिश करने वाले के हाथ आसानी से चलते हैं। मालिश करने के लिए मेज का आकार इस प्रकार का होना चाहिए। लम्बाई 6 फुट, चौड़ाई 30 इंच, ऊंचाई 2 से सवा 2 फुट। मेज का 2 फुट ऊपर का फट्टा कब्जों से लगा रहना चाहिए ताकि वह ऊपर उठ सके जिसका सहारा लेकर रोगी बैठना चाहे तो आसानी से बैठ सके।
  • मालिश करने वाले को मालिश करने से पहले किसी क्रिया द्वारा अपने हाथों को गर्म कर लेना चाहिए क्योंकि गर्म हाथ नर्म रहते हैं जिससे मालिश करते समय रोगी को आराम मिलता है। ठण्डे हाथों से सिर्फ मुख की मालिश करनी चाहिए और वह भी तब जब आप बाकी शरीर की मालिश कर चुके हो। उस समय यदि आपके हाथ गर्म हों तो उन्हें ठण्डे पानी में डालकर ठण्डा कर ले।
  • मालिश पैर की अंगुलियों और टांगों से आरम्भ करके ऊपर की ओर करनी चाहिए। पहले टांगों की, फिर दोनों बाजुओं की, उसके बाद पेट और छाती की मालिश करनी चाहिए। इसके बाद पीठ की मालिश करे और अन्त में सिर तथा चेहरे की मालिश करने से लाभ मिलता है। ध्यान रहें कि यदि रोगी रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) रोग से ग्रस्त है तो उसकी मालिश ऊपर से नीचे की तरफ करनी चाहिए और यह मालिश बहुत धीर-धीरे और सावधानी के साथ करनी चाहिए।
  • यदि रोगी बहुत कमजोर या तपेदिक (टी.बी.) रोग से पीड़ित हो तो उसकी मालिश तेल से ही करनी चाहिए। पॉउडर के द्वारा सूखीया पानी से मालिश नहीं करनी चाहिए और मालिश बहुत धीरे-धीरे से ही की जानी चाहिए।
  • मालिश के बारे में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि यदि ठण्ड का मौसम है तो मालिश का स्थान गर्म होना चाहिए और यदि मौसम गर्मी का है तो मालिश का स्थान ठण्डा होना चाहिए। जिस कमरे में मालिश की जा रही हो उस कमरे में ताजी हवा के आने-जाने का प्रबंध अवश्य होना चाहिए। गर्म कमरे से कहने का अभिप्राय यह है कि कमरे की सब खिड़कियां और दरवाजे बन्द होने चाहिए। यदि रोगी धूप बर्दाश्त करने की शक्ति रखता हो तो अच्छा रहेगा कि उसकी मालिश धूप में ही की जाए क्योंकि धूप में मालिश करने से सबसे अधिक लाभ होता है। मालिश करते समय इस बात का भी विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए कि कहीं रोगी को सर्दी तो नहीं लग रही या धूप तेज तो नहीं है।
  • गर्मियों के मौसम में सुबह-सुबह हल्की धूप में मालिश उचित है, नहीं तो मालिश छाया में या कमरे में करें जहां हवा अच्छी आती हो।
  • मालिश पूरी हो जाने के बाद रोगी को स्नान कराना बहुत अच्छा होता है। यदि रोगी के कमजोर होने के कारण उसे स्नान कराना सम्भव नहीं है तो तेल से उसकी मालिश न करके पॉउडर से सूखी मालिश करनी चाहिए। यदि ठण्डे पानी से स्नान कराना सम्भव नहीं हो तो रोगी को गर्म पानी से ही स्नान कराना चाहिए।
  • जहां तक हो सके रोगी को स्नान हमेशा ताजे पानी से ही कराना चाहिए क्योंकि इससे शरीर में ताजगी आती है।
  • यदि रोगी गर्म पानी से स्नान करना चाहता हो तो उसे बन्द कमरे में स्नान कराना चाहिए। बाद में थोड़े-से ठण्डे पानी से स्नान कराकर या फिर गीले तौलिए से अच्छी तरह स्पंज कराकर, फिर सूखे तौलिए से उसके शरीर को पोंछकर और सुखाकर आवश्यकतानुसार उसे कपड़ा ओढ़ाकर 15 मिनट के लिए सुला देना चाहिए। इसके बाद उसे कुछ खाने को देना चाहिए।
  • रोगी के अलावा स्वस्थ व्यक्ति भी मालिश के बाद गर्म पानी से स्नान कर सकता है, यदि उसकी गर्म पानी से स्नान करने की इच्छा हो रही हो, परन्तु बाद में ठण्डे पानी से भी स्नान आवश्यक है क्योंकि इससे शरीर खुलता है तथा हवा या सर्दी लगने का भी डर नहीं रहता। स्नान के बाद सूखे तौलिए से शरीर को पोंछकर सुखा लेना चाहिए।
  • रोगी के शरीर को किसी कपड़े से ढककर मालिश करनी चाहिए। यदि सर्दी अधिक हो, तो उसे कंबल भी उढ़ाया जा सकता है। मालिश में शरीर के जिस भाग पर मालिश की जा रही हो, केवल उसी अंग को खुला रखने की आवश्यकता होती है।
  • यदि रोगी व्रत यानी उपवास रखे हुए है तो उसके लिए तेल की मालिश अधिक लाभदायक रहती है। तेल की मालिश से शरीर को त्वचा द्वारा सीधे खुराक पहुंचती है। इससे रोगी को अधिक कमजोरी अनुभव नहीं होती और उसकी शारीरिक शक्ति बनी रहती है। उपवास का भी रोगी को पूरा-पूरा लाभ मिलता है।
  • जो व्यक्ति मालिश करा रहा हो, मालिश के दौरान उसे गहरी लम्बी सांसे लेनी चाहिए, ताकि शरीर का जो विकार युक्त रक्त शिराओं द्वारा हृदय से फेफड़ों में आता है, वह शुद्ध होकर शरीर में पूरे वेग से जाए, जिससे शरीर में चेतना पैदा हो जाए।
  • मालिश सुबह स्नान से पहले या रात को सोने से पहले कराना लाभदायक होता है। वैसे मालिश का कोई निश्चित समय नहीं है वह किसी भी समय कराई जा सकती है परन्तु ध्यान रहे कि मालिश करवाते समय पेट भरा नहीं होना चाहिए। यदि आप स्नान नहीं करना चाहते हैं, तो रात के समय मालिश कराकर स्पंज करके भी सो सकते हैं। रात के समय मालिश सूखी या पॉउडर से करनी चाहिए। विशेष स्थिति में आप रात को तेल से मालिश कराकर स्पंज करके भी सो सकते हैं। रात को मालिश करवाना विशेषत: अनिद्रा (नींद का न आना), नाड़ी-दौर्बल्य आदि में बहुत लाभदायक होती है। मालिश करवाने के बाद रोगी को तुरन्त ही नींद आ जाती है।
  • यदि रोगी ने कुछ खाया-पिया हुआ हो तो ऐसे में उसके पेट की मालिश नहीं करनी चाहिए। भोजन करने के बाद पेट की मालिश कराने से पेट में अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न होने की संभावना रहती हैं, जिससे लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है।
  • बुखार या सूजन होने पर मालिश कभी भी नहीं करानी चाहिए।
  • रोगी को जिस चादर, चटाई या रबड़ क्लॉथ पर लिटाकर मालिश की गई हो, उसे मालिश करने से पहले डिटॉल के पानी मे कपड़ा भिगोकर अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए।
  • मालिश करने वाले के हाथ का दबाव, बच्चा, युवा, मोटा, पतला, स्त्री, पुरुष, निर्बल और हष्ट-पुष्ट आदि पर अलग-अलग ढंग का होना चाहिए। उनकी स्थिति के अनुसार ही मालिश करने वाले को अपनी शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। बच्चों की अधिक दबाव से तथा स्वस्थ व्यक्तियों की सामान्य ढंग से मालिश करनी चाहिए।
  • मालिश करने वाले को मालिश करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि वह किस अंग की मालिश कर रहा है और क्यों कर रहा है तथा वह इस मालिश के द्वारा क्या लाभ पहुंचा रहा है। यदि मालिश करते समय ऐसे विचार मन में होंगे तो रोगी को अवश्य लाभ मिलेगा।
  • मालिश करने के बाद मालिश करने वाले को अपने हाथ शुद्ध मिट्टी या साबुन से अच्छी तरफ साफ करने चाहिए। मालिश करने के कपड़े भी अलग होने चाहिए जिनका प्रयोग भोजन करने और अन्य कार्यों में बिल्कुल नहीं किया जाना चाहिए। इससे रोगी के शरीर के मैल, कीटाणु और अन्य विकार उसके शरीर पर कोई प्रभाव नहीं डाल सकेंगे तथा उसे किसी प्रकार का रोग होने की संभावना नहीं रहेगी। मालिश के बाद डॉक्टर या मालिश करने वाले व्यक्ति को स्नान कर लेना चाहिए ताकि शरीर में पैदा हुई गर्मी शान्त हो जाए।
  • मालिश करने वाले को एक बात का ध्यान रखना चाहिए एक रोगी की मालिश करने के बाद उन्हीं हाथों से किसी अन्य रोगी की मालिश नहीं करनी चाहिए। अपने हाथों तथा बाजुओं को अच्छी तरह धोने से पहले किसी अन्य रोगी को हाथ तक नहीं लगाना चाहिए, चाहे मालिश सूखी, तेल से या पॉउडर से ही क्यों न की गई हो। इससे जहां रोगों के कीटाणुओं से छुटकारा मिलेगा, वहीं आप दूसरे रोगियों को भी एक-दूसरे के विकारो से बचाने की आवश्यकता होती है।

स्त्रियों की मालिश के आवश्यक नियम :-

  • गर्भावस्था और मासिकधर्म के दिनों में पेट तथा गर्भाशय को छोड़कर पूरे शरीर की मालिश की जा सकती है।
  • स्त्री की मालिश केवल स्त्री से ही कराई जानी चाहिए क्योंकि स्त्री से वह बिना किसी संकोच के अपने पूरे शरीर को ढीला छोड़कर मालिश करा सकती है। जरूरत पड़ने पर स्त्री का पति भी उसकी मालिश कर सकता है।
  • स्त्रियों की छाती की मालिश विशेष ढंग से करनी चाहिए। उनके स्तनों को चारों तरफ से धीरे-धीरे हाथ से घर्षण करना चाहिए।
  • बच्चे के जन्म के बाद स्त्री को दाई से या किसी अन्य स्त्री से मालिश अवश्य करानी चाहिए क्योंकि प्रसव के बाद स्त्री का पूरा शरीर ढीला पड़ जाता है तथा उसमे कमजोरी आ जाती है। गर्भावस्था में विशेषकर पेट, कमर और जांघों की त्वचा फैल जाती है। मालिश से उसकी त्वचा को उत्तेजना प्राप्त होती है तथा वह त्वचा पुन: अपनी स्वाभाविक अवस्था में आ जाती है। इससे अंगों में मजबूती आती है तथा कमजोरी भी जल्दी दूर हो जाती है।
  • स्त्रियों के हिस्टीरिया, बांझपन आदि रोगों में मालिश बहुत ही लाभदायक होती है।

स्त्रियों कें पेट, पेड़ू और वक्ष की मालिश :-

त्वचा पर अत्याधिक खिंचाव पड़ने के कारण उस पर निशान पड़ जाते हैं। इसी कारण से त्वचा का लचीलापन समाप्त हो जाता है। मोटापा बढ़ने के बाद जब कम होता है या बच्चा पैदा होने के बाद महिलाओं के पेट, पेड़ू पर धारीदार निशान पड़ जाते है और त्वचा लटकी हुई दिखाई पड़ती है।

त्वचा पर निशान केवल ऊपरी तौर पर नहीं बल्कि उसके नीचे के लचीले तंतुओं के चटकने से पड़ते है। ये निशान पेट के अलावा स्तनों, जांघों और बांहों के ऊपरी हिस्सें में भी पड़ते है। इस प्रकार के निशानों को समाप्त करने के लिए प्राकृतिक उपचार का इस्तेमाल किया जा सकता है। पेट और स्तनों पर प्रीबॉथ क्रीम की मालिश करना फायदेमन्द होता है। मालिश निशान पड़ने से पहले ही शुरू कर देनी चाहिए। इससे त्वचा की कोमलता और लचक बनी रहती है और त्वचा खुद अपनी सुरक्षा करने में सक्ष्म होती है। प्रसव होने के बाद भी मालिश कुछ महीने जारी रखनी चाहिए। मालिश के लिए ऐसी क्रीम का चुनाव करना चाहिए जिसमें ऐसे तत्व हों जो आसानी से त्वचा में घुल-मिल जाएं। हल्दी, नींबू और खुबानी के तत्व इसके लिए लाभकारी सिद्ध हुए है। खुबानी का त्वचा पर एस्ट्रिंजेंट के समान प्रभाव होता हैं। यह त्वचा को नमी प्रदान करने में भी सहायक सिद्ध हुई है। गर्भावस्था के अखिरी दिनों में त्वचा रूखी पड़ जाती है और उसमें खुजली व जलन बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में खुजली करने से त्वचा को और नुकसान पहुंच सकता है। प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग से खुजली, जलन आदि समस्याओं से मुक्ति मिलती है। त्वचा के रंग में भी रोनक आ जाती है। प्रोटीनयुक्त क्रीमों से त्वचा के ऊतकों को लाभ मिलता है। बॉडी पैक क्रीम लगाने से त्वचा का लचीलापन कायम रहता है।

प्रसव के बाद पड़ने वाले निशान नियमित मालिश से समाप्त हो जाते हैं। हल्के गुनगुने पीले सरसों के तेल से मालिश करनी चाहिए। सर्दियों के दिनों में प्रसव के बाद सरसों के तेल में अजवायन पकाकर शीशी में भर लेनी चाहिए। मालिश से पहले इस मिश्रण को गुनगुना कर लेना लाभदायक होता है।

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