परिचय-
प्राचीनकाल से ही मनुष्य मालिश को अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिए इस्तेमाल करता आ रहा है। भारत में ही नहीं, विश्व के अन्य देशों में भी मालिश का उपयोग बहुत पहले से होता आ रहा है। कई हजार साल पहले चीन मे मालिश को बहुत महत्त्व दिया जाता था तथा इसे रोगों को दूर करने की अचूक पद्धति माना जाता था। चीन के लोगों का मानना था कि शरीर को स्वस्थ और सुन्दर रखने में मालिश बहुत सहायक सिद्ध होती है। जो लोग मालिश करते थे, उन्हें समाज में बड़ा आदर-सम्मान मिलता था। आज जो आदर व सम्मान डॉक्टरों को प्राप्त है, वही आदर-सम्मान उस समय मालिश-विशेषज्ञों को प्राप्त था।
जापान ने चीन से यह विद्या सीखी तथा उसे अपने देश के कोने-कोने तक पहुंचाया। इन देशों में आज भी मालिश का विशेष स्थान है। जापान में मालिश करने का ढंग सबसे अलग है। वहां चिकोटी भरना, मुक्के मारना और कसकर हाथ से रगड़ना आदि अनेकों प्रकार से मालिश की जाती है। आराम से या हल्के से मालिश करना न उन्हें आता है और न ही उन्हें इस प्रकार से मालिश करने से कोई सुख मिलता है।
भारत, चीन और जापान के अलावा यूनान, रोम, तुर्की, मिस्त्र और फारस जैसे देश भी मालिश की महत्ता को जानते थे तथा उसका उपयोग करते थे। ईसा से 500 साल पहले जिम्नास्टिक का आविष्कार करने वाले `हीरोडिक्स´ अपने रोगियों को मालिश कराने का सुझाव देते थे। ईसा से 460 साल पहले यूनान के पास स्थित कासद्वीप में जन्मे तथा कुछ आधुनिक दवाइयों के आविष्कारक हिप्पोकेटीज ने भी अपने ग्रंथों में मालिश के गुणों को बढ़ चढ़कर बताया है। उन्होंने मालिश द्वारा कई प्रकार के रोगों को दूर करने के उपचार भी बताए है। यूनानियों के प्राचीन साहित्य, उनके बुतों और चित्रों को देखकर आसानी ही अनुमान लगाया जा सकता है कि वे मालिश के किस कदर शौकीन रहें होगे। मालिश और व्यायाम ही उनके अच्छे और स्वस्थ शरीर का राज था। यह भी कहा जाता है कि उन्हें मालिश तथा व्यायाम का बहुत शौक था। बाद में स्त्रियों से मालिश कराने की प्रथा चल पड़ी। यूनान के होमर नामक एक प्रसिद्व कवि ने अपने `ओडिसी´ नामक महाकाव्य में मालिश की लोकिप्रयता का वर्णन किया है तथा लिखा है कि उस समय जब योद्धा युद्ध के मैदान से लौटकर आते थे, तो उनकी पत्नियां तथा दासियां उनके शरीर की मालिश किया करती थीं। शरीर की थकावट और कसावट को दूर करने के लिए हल्की थपकी के रूप में उनकी मालिश की जाती थीं।
इतिहास में देखने से पता चलता है कि इन देशों में जब योद्धा युद्ध के बाद वापस घर लौटते थे तो स्त्रियों से अपने शरीर की मालिश कराते थे। उस समय इन देशों में दास-प्रथा का भी प्रचलन था। राजा-महाराजा अपने शरीर को सुन्दर और बलिष्ठ बनाने के लिए अपनी खूब मालिश कराया करते थे। जिससे उनका शरीर सुन्दर और सुडौल यानी आकर्षक हो जाता था। सुन्दर और स्वस्थ शरीर को गर्व का प्रतीक माना जाता था।
एक यूनानी चिकित्सक ने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम के साथ मालिश करने की आवश्यकता के बारे में काफी विस्तार से बताया था।
ईसा से काफी साल पहले इस मशहूर राजा न्यूरेल्जिया (नाड़ी-संस्थान का एक रोग) से पीड़ित था। वह इस रोग से निजात पाने के लिए प्रतिदिन अपने शरीर पर एक खास किस्म की मालिश कराया करता था।
एक रोमन डॉक्टर ने बताया था कि सूरज के प्रकाश में खड़ें होकर मालिश कराने से पुराने दर्द और बीमारियों आदि से छुटकारा पाया जा सकता है। साथ ही उसने यह भी बताया था कि अधंरग (शरीर के आधे भाग में लकवा आना) आदि रोगों से ग्रस्त टांगों, बाजुओं आदि को शक्ति देने तथा उनमे जान पैदा करने के लिए मालिश करना बहुत लाभदायक होता है। उसका मानना था कि इससे रोग जल्दी ठीक हो जाते हैं।
तुर्क लोग स्नान करने से पहले अपने शरीर की मालिश किया करते थे, परन्तु यह मालिश वैज्ञानिक ढंग की न होकर साधारण होती थी। प्राचीनकाल में अफ्रीकी लोगों में विवाह से 1 महीने पहले से वर-वधू की प्रतिदिन मालिश करने की प्रथा थी। उनका मानना था कि इससे यौवन फूट पड़ता है, जो सच भी है। हमारे देश में भी ऐसी ही एक प्रथा पाई जाती है, जिसे हल्दी की रस्म कहते है। काफी हजार साल पहले मेडागास्कर नामक अफ्रीकी जंगली जाति के लोग रोगियों के शरीर में खून के दौरे (रक्त-संचार) के लिए मालिश का उपयोग किया करते थे।
पुराने समय में मिस्रवासियों को मालिश का बहुत बड़ा विशेषज्ञ माना जाता था। मिस्रवासियों ने ही रोमनों तथा यूनानियों को मालिश की कला सिखाई थी। मिस्र की एक बहुत प्रसिद्ध रानी अपने बालों में जैतून के तेल की मालिश कराया करती थी जिस कारण उसके बाल अपने समय के बहुत ही आकर्षक तथा सौन्दर्य-सम्पन्न बाल थे। एक बहुत ही महान विद्वान ने लिखा है कि आधुनिक शब्द `मसाज´ अरबी शब्द `मास´ से बना है, जिसका अर्थ मांसपेशियों को हाथ से दबाने तथा जोड़ों पर मालिश करने की एक कला है। यह अंगों को लचीला और कर्मशील बनाने तथा आलस्य को समाप्त करके शरीर में फुर्ती का संचार करता है।
फ्रांसीसियों ने मालिश करने की कला अरबवासियों से सीखी थी, जिसे उन्होंने अपने देश और अन्य यूरोपीय देशों तक पहुंचाया।
इतिहास से यह भी पता चलता है कि हीरोनिमस फेबरीक्स ए.बी. एक्यूपेण्डट (1537-1619) ने यूरोप में मालिश के चिकित्सात्मक पहलू के महत्त्व को दोबारा जीवित किया था। पेरासेल्सस नामक एक लेखक ने अपनी पुस्तक द मेडिसिन अगियपशन -1591 में मालिश करने की अनेक विधियों को विभिन्न प्रयोगों के द्वारा समझाने की कोशिश की है।
उसके यह अनुभव मिस्र में प्रचलित मालिश की पद्धति पर आधारित थे। इसके अलावा अनेक फ्रांसीसी लेखकों ने भी मालिश को अपने साहित्य में स्थान दिया है। सन् 1818 में प्रकाशित फ्रांस के पहले विश्व-कोष में पियोरे ने मालिश के गुणों पर एक विस्तृत विवेचना की है।
इंग्लैण्ड के इतिहास से पता चलता है कि वहां मालिश का प्रयोग प्राय: चिकित्सा की दृष्टि से ही होता रहा है तथा वहां मालिश मेडिकल रबिंग नाम से जानी जाती है। कहा जाता है कि वहां मालिश करने वाले वेतन पर काम किया करते थे और धनी और बड़े जमींदारों के यहां स्थाई तौर पर मालिश करते थे।
सन् 1863 में मालिश पर आधारित एक पुस्तक प्रकाशित हुई थी जो लोगों द्वारा बहुत पसन्द की गई तथा बहुत अधिक संख्या में बिकी भी थी। परगैमस के `स्कूल ऑफ ग्लेडियेटर´ के एक डॉक्टर गैलेन, 1830 ने व्यायाम से पहले शरीर को तैयार करने के लिए तब तक रगड़ने का नियम निकाला था, जब तक कि शरीर लाल न हो जाए।
एक महान चिकित्सक ने लगभग सन 1575 में मोटापा दूर करने, रक्त-संचार (खून का बहाव) बढ़ाने और जोड़ों के स्थानांतरित हो जाने पर उन्हें उनके स्थान पर लाने आदि के लिए हल्की और तेज मालिश का आविष्कार किया था, जिसके परिणाम उनकी आशा के साथ ठीक मिले थे।
फारस के बादशाह का डॉक्टर हॉफमैन ने भी मालिश और व्यायाम करने पर बहुत जोर दिया करता था। उसका मानना था कि इससे शरीर स्वस्थ रहता है, रोगों से छुटकारा मिलता है तथा शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति में बढ़ोत्तरी होती है।
ऑक्सफोर्ड के सर्जन ग्रासवेनर ने मालिश द्वारा जोड़ों के दर्द तथा अकड़न का सफल इलाज करके ख्याति प्राप्त की थी। उन्हीं दिनों लगभग 1800 ई. में एडिनबरा के मिस्टर बॉलफोर ने मालिश, ठोकना और दबाव क्रिया से गठिया, जोड़ों के दर्द और अनेक प्रकार की बीमारियों को ठीक किया था।
सन् 1813 में स्टॉकहोम में रॉयल इंस्टीट्यूट स्थापित की गई और डॉक्टर पीटर हैनरी लिंग ने मालिश करने के लिए एक नए ढंग की खोज की। बाद में यह पद्धति मालिश के नाम से प्रसिद्ध हुई। उन्होंने मालिश को वैज्ञानिक रूप दिया तथा शरीर-रचना के अनुसार उपयुक्त मालिश करने की पद्धति आरम्भ की। कहा जाता है कि हैनरी लिंग ने मालिश करने के नए ढंग की खोज निकालने में चीनी ग्रंथ कांग फो से सहायता ली थी और हैनरी लिंग ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने स्वदेशी जिमनास्टिक पद्धति का आविष्कार किया था। हैनरी लिंग ने मालिश को मुख्य रूप से 3 भागों में बांटा गया है।
पहला- सक्रिय अंग-विक्षेप (एक्टिव मूवमेंट्स), दूसरा- निष्क्रिय अंग-विक्षेप (पैसिव मूवमेंट्स) और तीसरा- दुष्क्रिय अंग-विक्षेप (रेजिस्टिव मूवमेंट्स)।
- सक्रिय अंग-विक्षेप :- तेल से या सूखे हाथों से पूरे ‘शरीर की मालिश की जाती है या मांसपेशियों को रगड़कर कोमल बनाया जाता है।
- निष्क्रिय अंग-विक्षेप :- हल्की थपकी, कंपन और ताल आदि क्रियाओं के माध्यम से जोड़ों, रक्त की नलिकाओं और नाड़ी-तन्त्र पर प्रभाव डाला जाता है।
- दुष्क्रिय अंग-विक्षेप :- इसमें दबाव डालकर धीरे-धीरे मालिश करनी होती है। इससे शरीर के रोगों को दूर करने में विशेष सहायता मिलती है तथा गठिया (जोड़ों का दर्द), अधरंग (शरीर के आधे भाग में लकवा आना) और दर्द आदि बीमारियों में भी इस क्रिया का लाभ मिलता है।
वर्णन-
डॉक्टर मज्गर के शिष्यों प्रोफेसर मोनसन जिल, बेरहम तथा हेलडे आदि ने भी मालिश की नई-नई तकनीके निकालीं और उनसे अनेक प्रकार के रोगियों को रोग से मुक्त किया। इसके बाद हर तरफ मालिश को अपनाया जाने लगा।
सन् 1877 में अमरीकी डॉक्टर वेयर मिचेल ने भी मालिश को एक लाभदायक पद्धति साबित करने में खासा योगदान दिया था। उन्होने `न्युरस्थिनियां´ के रोगियों को मालिश से ठीक करके इसकी उपयोगिता सिद्ध की। उसके बाद मालिश का चिकित्सा के रूप में प्रयोग किया जाने लगा तथा सभी देशों के प्रसिद्ध डॉक्टरों तथा सर्जनों ने इसे अपनाना शुरू कर दिया।
इसके अलावा मालिश के बारे में अनेक विदेशी डॉक्टर हुए, जिन्होंने मालिश के बारे में अनेक साहित्य लिखे और मालिश की उपयोगिता को समझाया। एक प्रसिद्ध पश्चिमी लेखक `मैकन्जी´ ने अपनी लोकिप्रय किताब शिक्षा और औषधियों के प्रयोग´ में मालिश के गुणों की विस्तृत रूप से व्याख्या की। मैकन्जी का कहना था की स्नायु-संस्थान के लिए मालिश सबसे उपयोगी कसरत है, जिससे शरीर में होने वाले चार प्रधान कार्य होते हैं जैसे (रक्त-संचालन (खून का उचित बहाव), श्वास-क्रिया (सांस लेना), पाचन और मल को त्यागने में सहायक होना।
म्युनिक विश्वविद्यालय के प्लास्टिक सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉक्टर केलर ने मालिश और सर्जरी को सगी बहनें बताया है। एक बार मालिश के बारे में समझाते हुए केलर ने कहा कि जिस प्रकार सर्जरी द्वारा हम शरीर के अन्दर के गंदे भाग को काटकर बाहर फेंक देते हैं, उसी प्रकार मालिश भी शरीर के विकारों को रक्त के द्वारा फेंक देती है। सामान्य शब्दों में कहने से तात्पर्य यह है कि मालिश से स्वास्थ्य और सौन्दर्य दोनों में ही काफी बढोत्तरी होती है। डॉक्टर केलर ने खुद भी मालिश के कई प्रयोगों द्वारा अनेक बदसूरत महिलाओं को सुन्दरता प्राप्त करते हुए देखा है।
1 टिप्पणी:
jitendra ji aapkey article ko kya mai kisi site per aapkey nam sey laga sakta hun. yadi aapko koi aaptti na ho to to aap hamey email kareyn.
rajeevkumar905@gmail.com
sath mei apna pic aur profile bhi.
Rajeev
09911850406
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